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आज स्टॉप पर कुछ जल्दी पहुँच गई थी,तो सोचा पास की फुटकर वाली से ही घर का कुछ सामान खरीद लू। कुछ एक कदम चलकर वहां पहुंची तो देखा वो अभी समान जमा ही रही थी। और उसके चार छोटे छोटे बच्चे उसके इस काम मे उसकी मदद कर रहे थे। मैंने उससे पूछा ये सभी बच्चे तुम्हारे है,तो उसने स्वीकृति में बस अपना सर हिला दिया। फिर मैने पूछा ये सब बेचकर कितना कमा लेती हो। वो बोली दो सौ रुपये तक हो जाते है मेमसाब। ओर तुम्हारा पति?,वो भी मजूरी करता है। मैंने उसपर तंज कसते हुए कहा, इतनी महंगाई में इतने बच्चे आखिर तुम कैसे पालती होगी। तुम अनपढ़ लोग परिवार बढाने से पहले उसे पालने के विषय मे जरा भी नही सोचते क्या?। तब उसने कहा सब सोच का अंतर है, मेरे विचार से मेरा परिवार और यह सारा संसार राम जी पालते है। हर बच्चा अपना भाग्य ख़ुद लेकर पैदा होता है। यहां परमात्मा ही सबकी व्यवस्था करते है।
तभी तो बच्चा इस संसार मे बाद में आता है,ओर भगवान माँ की छाती पहले दूध से भर देते है। उस लीलाधर की लीला बड़ी निराली है मेमसाब। और हम जीवन भर यही सोचते है कि ये सारा संसार हम ही चला रहे है। उसकी कही बात ने आज मेरे पढ़ी लिखी व समझदार होने का मिथक तोड़ दिया। ओर मैं उसके चहरे को गौर से देखने लगी।
