Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

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Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता

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रमेशचंद्र मिश्रा, जो की पुरे प्रदेश का जाने माने समाजसेबी है और उनकी पुरे जिन्देगी वो गरीब और अनाथ बच्चों की सेबा मे बिता दिया है। आज हस्पताल मे भर्ती है। उनको दिल का दौरा पड़ा था। उनकी पत्नी सुनीता देबी उनको लाकार इस हस्पताल मे भर्ती किए है। उनको अभी 80 साल हो गया है। सुनीता देबी को भी 75 साल के आस पास की उम्र है। उनकी दोनों बेटे अब पढ़ लिख कर अपने परिबार के साथ बिदेश मे रहेते है। दोनों बेटे बिजय और अजय अपने अपने परिबार और कार्य मे बहुत ब्यस्त है।रमेशचंद्र जी ने समाज के लिए बहुत कुछ त्याग किये है। उनकी एक वसूल रहा है की जितने अनाथ बच्चों को उन्होंने पढ़ाया और सब कोई डाक्टर, कोई इंजीनियर और कोई बड़ा सरकारी अधिकारी बनगए है, वो उन सबसे उनकी नाम छुपाके रखे है। समाज के लिए काम करते करते उन्होंने होनी सारे कमाई को लुटा दिए है। उसके साथ साथ अपने बच्चों को भी काबिल बनाने के लिए भरपूर प्रयास करके उनको काबिल बना दिए है। बिजय आज एक बड़ा बैज्ञानिक है और अजय के नामी संस्था मे इंजीनियर के हिसाब से काम करते है। यहीं शहर मे वो और उनकी पत्नी सुनीता देबी अकेले रहेते है।

अब जब वो इस हस्पताल मे आये तो यहाँ की बहुत कर्मचारी उनको देख के बड़ा दुःखी हो गये है। सबको उनकी कुछ ना कुछ सहायता मिला है। उधर सुनीता देबी फोन करके दोनों बेटे को ये खबर भी दे दिए है। बड़ा बेटा बिजय बोला है अब एक जरुरी काम के साथ जुडा है और थोड़ा समय लगेगा उसको आनेके लिए। तबतक रामेचंद्र जी के चिकिस्चा चालु रखने के लिए। छोटा बेटा अजय भी बोला है वो सारे प्रक्रिया को शेष करके आने मे कम से कम 15 से 20 दिन लग जायेंगे। सुनीता देबी ये सब सुनके बहुत दुःखी हुई पर हिम्मत नहीं हारी। अपने पास जितने पूंजी था वो अब अपनी पति को ठीक करने लगा देगी। जरुरत पड़ने पर अपना घर भी वो बेच देगी। अब हस्पताल मे सुनीता देबी बैठी है और आँखों से आँसू लेकर उपरवाले से दुआएं मांग रही है। इधर हॉस्पिटल ने सबसे बड़े दिल के डाक्टर सत्यजीत जी को भी बुला लिया है। सत्यजीत जी एक अनाथ है और उन्होंने भी गरीबों के इलाज मुफ्त मे करते है। अभीतक डाक्टर सत्यजीत ढूंढ रहे है उस भगवान के रूप वाले महान इन्सान को जिनकी वजह से आज वो इतना काबिल बन सके, पर उनकी अनाथ आश्रम के संचालक उनको कभी बताते नहीं। बोलते है की उनको उस महान इन्सान ने मना किये है। डाक्टर सत्यजीत हॉस्पिटल मे पहुँच कर रामेचंद्र जी को पूरा निरिक्षण करने मे लग गये। इस बिच रामेचंद्र जी के मित्र और अनाथ आश्रम के संचालक बिकाश दूबे आकर पहुँच गये और सुनीता देबी के पास बैठकर इंतजार कर रहे है की डाक्टर क्या बोलते है। उन्होंने सुनीता देबी से उनकी बेटों के बात भी सुने। बहुत उदास हो गये। अब वो फिर सोचने लगे की वो अपनी दिए हुए बचन आज तोड़ देंगे और सत्यजीत को बता देंगे।

उनकी आँखों मे भी आँसू था। तब डाक्टर सत्यजीत बाहर आये और बिकाश जी को देख के आश्चर्य हो गये। वो उनको प्रणाम किये। तब बिकाश जी ने उन्हें बोले सुनीता देबी को दिखाके, "ये रमेश जी के पत्नी है। तुम्हारी माँ समान।" तब सत्यजीत ने सुनीता देबी को भी प्रणाम किये। और तब बड़ी आबेग के साथ बिकाश जी ने फिर बोले, " आज मे चुप नहीं रहूँगा। सत्यजीत तुम जिन्हे अभी भी ढूंढ रहे हो, वो और कोई नहीं रामेचंद्र जी है। आज वो बिलकुल अकेला पड़ गये। कुछ करो बेटा। " ये सुनके सत्यजीत के आँखों मे आँसू आगये और वो बोले, "मे मेरा भगवान को कुछ होने नहीं दूंगा। ऊपर बैठा भगवान से बिनती करूँगा। अब मुझे उनकी ऑपरेशन की तैयारी करना है। अब आपलोग भी सब मिलके उपरवाले को बिनती कीजिये।" इतना बोलकर सत्यजीत रामेचंद्र जी के पास गये और उनकी पैरो मे शर रखकर बोले, " आपने मुझे सबकुछ दिए। अब मे आपको कुछ होने नहीं दूंगा। " फिर डाक्टर सत्यजीत ने रमेश जी के ऑपरेशन की तैयारी की। ऑपरेशन करीब चार घंटे चला। डाक्टर सत्यजीत के हिसाब से सब ठीक रहा। वो बाहर आकर बिकाश जी और सुनीता देबी को बताये।

फिर उन्होंने सुनीता देबी के पैरों के पास बैठकर बोले, " माजी मेरा कोई नहीं। आज मे जोकुछ हूं सिर्फ आपके पति और मेरी भगवान के सारी प्यार और सहायता के लिए। वो मेरे लिए पिता, गुरु और भगवान है। मेरा एक बिनती है की आप उनको मेरे और उनकी रिश्ते के बारे मे नहीं बताईयेगा। उनको दुःख होगा। और आप मुझे आप दोनों की सेवा करने का एक मौका देने से मेरा जीबन सार्थक हो जायेगा। अब एक सप्ताह के बाद वो पुरे ठीक हो जायेंगे। मेरे पत्नी भी आकर यहाँ आपके साथ रहेगी। वो भी एक डाक्टर है। " तब आँखों मे आँशु लेकर सुनीता देबी बोले, " बेटा कौन बोलता है तुम्हारे कोई नहीं? मे हूं ना। तुम तो हमारे बेटों से भी बढकर हो बेटा। सायद हम कुछ पुण्य काम किये थे की तुम हमें मिले हो। " इतने मे डाक्टर सत्यजीत के पत्नी डाक्टर सपना आगयी। उनको देख के सत्यजीत ने बोला, " सपना ये माजी है और तुम बाबूजी (बिकाश जी को देखाके ) को तो जानते हो। "तब सपना ने बिकाश और सुनीता देबी को प्रणाम की और बोली,"मुझे सत्यजीत ने सब कुछ बता दिए है। माजी मे यहाँ आपके साथ रहूंगी और सत्यजीत आनेके बाद घर जाउंगी। आप मेरे साथ अगर बुरा ना माने तो चलकर थोड़ा फ्रेश हो जायेंगे तो अच्छा लगेगा। मे तो आपकी बेटी जैसी हूं।" सुनीता देबी सपना को गले लगाकर बहुत रोइ और बोली, "हाँ इसीलिए भगवान ने मूझे कोई बेटी नहीं दिए। आज से तुम मेरी बेटी हो। जैसी कहोगी मे करुँगी।"

एक सप्ताह के बाद रामेचंद्र ठीक हुए। फिर भी और तीन दिन उनको हॉस्पिटल मे रहना होगा। सुनीता देवी सपना और बिकाश जी के साथ उनको मिले। उन्होंने सपना को अपनी बेटी बोलकर पहचान करवाई। और बोली, " मे आपको सपना के बारे मे नहीं बताया था। उसको मे बचपनसे जानती हूं। वो मेरी सहेली की बेटी है।" तब सपना रमेश जी के पास जाकर बोलती है, " आप बिलकुल ठीक होगये है। आपके दामाद ने आपकी ऑपरेशन किये। अब अस्पताल से निकल के आप मेरे पास एक महीने रहेंगे। उसके बाद आप अपने मर्जी के हिसाब से जो करना है करेंगे। तबतक आपकी नहीं मेरी मर्जी। ये मेरी एक छोटी सी बिनती है आपको। आप मना नहीं करना। " तब रमेश जी ने सपना के आँखों से आँशु पोछ कर सुनीता देबी के और देखा और बोले, " जो तुम्हारी इच्छा बेटी। पर दामाद जी मतलब मेरा डाक्टर साहब कहाँ है। " तब सत्यजीत आकर रमेश जी को प्रणाम करते है और सपना को मन ही मन बहुत धन्यवाद करते है। फिर तीन दिनों के बाद रामेचंद्र हस्पताल से डाक्टर सत्यजीत और सपना के साथ उनके घर जाते है। सुनीता देबी फोन करके बिजय और अजय को रमेश जी के अच्छे होने का सुचना देकर बोलती है, " अब हम अपनी बेटी के घर मे है। अगर आओगे तो यहाँ ढूंढ लेना। " दोनों बेटा ये सुनकर सोचते रहेते है उनकी माता पिता के इस अनोखा रिश्ते के बारे मे। रामेचंद्र और सुनीता देबी खुशी के साथ सत्यजीत और सुनीता के घर मे उनकी छोटा बेटा करन के साथ समय बिताते है।


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