अनकही कहानी
अनकही कहानी
" मैं यहाँ हास्पिटल में कैसे आया ? मुझे क्या हुुुआ था ? " - अपने पास बैठे दोस्त अवि को झकझोरते हुए उसने पूछा।
" बस, तुम्हारी तबीयत थोड़ी खराब हो गयी थी। चक्कर आ गया था तुम्हें और तुम गिरकर बेहोश होकर गिर गये थे। तो हास्पिटल में एडमिट कराया गया है।पर...कुछ नहीं हुआ, तुम ठीक हो। " अवि ने उसे बताया।
" उँहूँ...।ना..ना...नहीं।तू मुझसे कुछ छुपा रहा है। "
" नहीं यार।कुछ भी तो नहीं। " - उसकी ओर देखते हुए अवि ने कहा।
" मगर...मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि मैं यहाँ बहुत दिनों से हूँ ? " - अपने अगल - बगल देखते हुए उसने अवि से पूछा।
" देख यार...अच्छा, तू बता, मैं तेरे साथ हूँ न ? ये टॉमी है न ? तू बस इतने से मतलब रख। " - उसके कंधे थपथपाते हुए अवि ने कहा।
" मैं तुझे कैसे भूल सकता हूँ यार ? तू तो मेरे बचपन का दोस्त है।मेरा जाने जिगर है, अवि। मगर मेरे घर वाले, बेटा-बहू ....वे सब कहाँ गये ? " - यह प्रश्न कब से उसके दिलो-दिमाग को मथे हुए था।
" वे सभी आये, और चले गये। "
" चले गये ? लेकिन क्यों ? कब आये और कब चले गये ? मुझसे मिले बिना ? मुझे पता भी नहीं चला। " - उसे आश्चर्य हुआ। विश्वास नहीं हो रहा था उसे कि ऐसा भी हो सकता है।
" तुमसे मिलकर और तुम्हारी हालत देखकर सभी चले गये, मेरे दोस्त। " - उसका हाथ अपने हाथों में लेकर प्यार से सहलाते हुए अवि ने कहा। उसका भी जी भर आया था।
" ह्वाट....! "
" येस। तुम्हें याद है...उस दिन एक जनवरी को मसानजोर डैम पर हमारा पिकनिक का प्रोग्राम था ? और, मैं वहाँ तुम्हारा इंतजार कर रहा था ? " - अवि ने उसे टटोलने और याद दिलाने की कोशिश की।
" हाँ..हाँ। बिल्कुल याद है। मैं ठीक दस बजे निकला था घर से, अपनी बाईक से ? " - उसने अपने आप को स्थिर करते हुए अवि की आँखों में देखते हुए उसके प्रश्न का जवाब दिया।
" एग्जैक्टली।मगर तुम वहाँ पहुँचे नहीं थे। " आवाज मानो सन्नाटे में गूँजी।
" ह्वाट... ? मैं पहुँचा नहीं था ? क्यों ? कैसे
? " एक ही साथ कई प्रश्न दाग दिए थे उसने।
" हाँ, तुम पहुँचे ही नहीं थे वहाँ। " - अवि बताने लगा - " हाइवे पर तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया था। एक साल पहले। " धड़कते दिल से अवि ने सच उसके सामने रख दिया और उसके चेहरे पर आने-जाने वाले भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा।
" एक्सीडेंट ? एक साल पहले ? यह क्या कह रहे हो तुम ? मतलब, एक साल से मैं यहाँ...इस हास्पिटल में ? तुम झूठ बोल रहे हो। " - उसके मन में उथल-पुथल मच गयी थी।
" नहीं मेरे दोस्त, यही सच है। एक्सीडेंट के बाद तुम एक साल से कोमा में थे।तुम्हारे अंग-प्रत्यंगों ने काम करना बंद कर दिया था।कुछ दिनों तक तो तुम्हारे बेटा और बहू आते रहे। फिर वे भी तुम्हें हास्पिटल के हवाले छोड़ कर अपनी ज़िंदगी में मशरूफ़ हो गये। " अवि ने एक ही साँस में सारा सच उसके सामने बयान कर दिया था।उसकी आँखों में आँसू थे।
" ओ माई गॉड ! " उसकी आँखों से अश्रुधार बह चली।
" तुम तब से, इसी कमरे में, इन मशीनों के सहारे, यहीं थे। सबने उम्मीद छोड़ दी थी। मगर ये टॉमी कभी तुम्हें अकेला नहीं छोड़ता था। हमेशा तुम्हारे साथ रहा।तुम्हारे सीने से लिपटा रहा।ये तुम्हें मौत के दरवाजे से वापस खींच लाया ? " दरवाजे के पास बैठे पालतू कुत्ते टॉमी की ओर इशारा करते हुए अवि ने कहा।
" सचमुच, यही वो फरिश्ता था, जो लगातार मेरे कान में फुसफुसाता रहा कि सब ठीक हो जाएगा।सब ठीक हो जाएगा। " स्मृतियाँ उसके अवचेतन से निकलकर चेतन में आने लगी थीं।
" ओ माई गॉड ! " अश्रुपूरित आँखों से उसने टॉमी की ओर देखा और अपनी बाहें फैलाईं। " कूँ..कूँ.. कूँ..." करता हुआ टॉमी आकर उसके सीने से लिपट गया। उसने टॉमी को जोर से भींच लिया। टॉमी के आँसुओं से उसकी हथेली भींग गयी। बेजान ईंट-पत्थरों से बने और असंख्य यंत्रों से भरे उस कमरे में इंसान और बेजुबान के नि:स्वार्थ प्रेम का समंदर उमड़ पड़ा था। स्वार्थ में डूबी निष्ठाओं और छिजती संवेदनाओं से भरी दुनिया में, समय की कठोर शिला पर निश्छल प्रेम, अटूट विश्वास और समर्पण की अनकही कहानी लिखी जा चुकी थी....।