परी और टूटू
परी और टूटू
" देखो, मैं आगे....। "
" नहीं। मैं तुमसे आगे....। "
परी मछली और टूटू कछुआ में बहुत ही अच्छी दोस्ती थी। वे चंपकवन के बगल से होकर बहने वाली चंदन नदी में रहते थे। चंदन नदी का पानी बहुत ही साफ और स्वच्छ था। दूर तक फैले तट और किनारे की चट्टानों से टकराती हुई चंदन नदी अपनी मंद - मंद गति से बहती जाती थी। चंपकवन के सभी जीव - जंतु चंदन नदी का ही पानी पीने आते थे - शेर राजा, हंपू हाथी, सोनी हिरण, चंपू बंदर आदि सभी। गर्मियों में तो हंपू हाथी का अधिकांश समय नदी में ही बीतता था। और चंपू बंदर तो पेड़ों पर चढ़ जाता था और ऊपर से ही नदी में छलांग लगाता था - " छपाक ", और किनारे खड़े जानवर जोर - जोर से तालियाँ बजाने लगते थे। उन्हें खूब मजा आता था।
परी और टूटू भी चंपकवन के सभी जानवरों से खूब घुल - मिल गये थे। वे सबसे चंपकवन का हालचाल पूछते थे और चंपकवन वाले भी उनसे नदी और नदी में रहने वाले जीव - जंतुओं के बारे में पूछते। परी और टूटू अक्सर नदी में तैरते हुए दूर - दूर तक चले जाया करते थे। परी तेज तैरती थी, तो टूटू भी कोई कम नहीं था। कभी - कभी दोनों में रेस लग जाती - तेज तैरने की। रेस में कभी परी आगे होती, तो टूटू पीछे। कभी टूटू आगे, तो परी पीछे। परी तैरते-तैरते खुशी के मारे पानी के ऊपर उछल जाती और ऊँचाई से " छपाक " से पानी में गिरती। टूटू खिलखिलाकर हँस देता। वह भी परी की तरह उछलने की कोशिश करता, पर नहीं उछल पाता। परी उसे खूब चिढ़ाती। इसी तरह हँसते - खेलते उनका सारा दिन बीत जाता। तैरते - तैरते जब टूटू थक जाता, तो तट पर थोड़ा आराम कर लेता। परी उसके इंतज़ार में किनारे पर तैरती रहती।
एक दिन इसी तरह परी और टूटू नदी में तैरते हुए जा रहे थे। टूटू ने सोच लिया था कि आज वह परी से तेज तैरकर दिखा देगा। इसलिए अपने हाथ और पैर तेजी से हिलाते हुए वह परी के आगे - आगे चलने लगा। परी उसी तरह तैरते - उछलते मस्ती में उसके साथ हो ली। वह देख रही थी, आज टूटू सचमुच बहुत तेज तैर रहा है। तैरते - तैरते नदी में टूटू बहुत दूर चला आया। अचानक उसे लगा कि परी उसके साथ नहीं है। टूटू वहीं रूक गया और अगल - बगल देखने लगा। जब परी कहीं दिखाई नहीं पड़ी, तो उसे चिंता होने लगी। वह घबरा गया और वापस पीछे मुड़ गया। उसने सोचा, शायद कहीं पीछे ही रह गयी होगी। बेचैन होकर वह " परी.…परी " पुकारता हुआ उसे खोजने लगा। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आज इतनी तेजी से उसे तैरने की क्या जरूरत थी ? पता नहीं कहाँ गयी परी ? कहीं किसी बड़ी मछली ने उसे...! सोचकर टूटू काँप गया और उसका जी रोने - रोने को हो आया। पीछे लौटते हुए वह परी को जोर - जोर से पुकारने लगा - " परी..परी। "
अचानक दूर से उसे एक हल्की - सी आवाज सुनाई पड़ी। वह और तेजी से उस आवाज की ओर तैरने लगा। जैसे - जैसे वह नजदीक आता जा रहा था, कराहने की आवाज साफ होती जा रही थी। पास पहुँचकर, वह दाएँ - बाएँ, ऊपर - नीचे चारों ओर देखने लगा। आवाज नदी किनारे की चट्टानों की ओर से आ रही थी। टूटू आवाज की दिशा में बढ़ गया। पानी से निकलकर वह एक चट्टान पर चढ़ने लगा। मगर चट्टान ऊँची और चिकनी थी, इसलिए वह बार - बार फिसलकर गिर जाता था। फिर वह चट्टान की दूसरी ओर गया। उधर कुछ झाड़ियाँँ थीं और ढाल भी थी। इस ओर से उसने ऊपर चढ़ने की कोशिश की। धीरे - धीरे सँभलकर वह ऊपर चढ़ने लगा। आखिरकार टूटू ऊपर पहुँच ही गया। ऊपर जाकर देखा, तो परी चट्टान पर पड़ी हुई थी और बुरी तरह हाँफ रही थी। टूटू को उस पर बहुत गुस्सा आया - बहुत उछलने की आदत थी न तुम्हें पानी में ? उसी उछलने में...! मगर कुछ कहा नहीं उसने। पास जाकर देखा, परी की साँस चल रही थी। टूटू ने परी की पूँछ को अपने मुँह में दबाया और खींचते हुए उसे चट्टान के किनारे ले आया। और फिर एक ही झटके में परी को पानी में ढकेल दिया। " छपाक " की आवाज़ के साथ परी पानी में गयी, तो टूटू ने भी वहीं से पानी में छलाँग लगा दी।
नदी में आते ही परी की जान - में - जान आ गयी। उसे नयी ज़िंदगी मिल गयी थी। वह खुश हो गयी। उसने आँखें खोलीं और पास तैरते हुए टूटू को देखकर प्यार से कहा - " थैंक्यू दोस्त। आज तुमने मेरी जान बचा ली। " टूटू खुश होकर तेजी से पानी में हाथ - पैर मारते हुए तैर रहा था। परी ने फिर कहा - " सॉरी, मैं अब पानी में उछलने वाला खेल कभी नहीं करूँगी। "
" और मैं भी अब पानी में रेस नहीं लगाऊँगा। "- टूटू ने भी कहा और दोनों हँसते - खिलखिलाते चंपकवन की ओर चल पड़े।