Vijayanand Singh

Inspirational Others

3  

Vijayanand Singh

Inspirational Others

खुलती गाँठें

खुलती गाँठें

3 mins
124


" पापा ! पापा ! देखो न ! स्वीटी को क्या हो गया... ? " चार वर्षीया बेटी घबड़ाकर दौड़ती हुई उसके पास आई और हाथ पकड़कर उसे गार्डेन की ओर ले जाने लगी...गुड़हल के उस पेड़ के पास.... जहाँ स्वीटी अक्सर रहा करती थी....अपने चारों बच्चों के साथ।

" पापा, देखो, स्वीटी कैसे सो गयी है ? उठ ही नहीं रही....। " कहते हुए बेटी सुबकने लगी। 

उसने पास बैठकर धीरे से बिल्ली को सहलाया। मगर, आह ! वह तो मर चुकी थी !

" ओ माई गॉड ! ये तो....। " शब्द उसके मुँह में ही अटक गये। मगर, बेटी शायद समझ गयी।

" मम्मी..ई...ई......।" बेटी जोर से चिल्लाई और पापा से चिपट गई। बेटी का करुण-क्रंदन उसके अंतर्मन को बेध गया।

रोते-रोते बेटी ने पूछा - " पापा, स्वीटी के बच्चे मम्मी के बिना अब कैसे रहेंगे...? इनके तो पापा भी नहीं हैं। " अनुभूति और दर्द से उपजे बेटी के इस सहज स्वाभाविक प्रश्न ने उसके वजूद तक को झकझोर दिया। लगा जैसे अंदर कुछ ' छनाक ' से टूटकर बिखर गया हो। मगर, खुद को सँभालते हुए उसने कहा - " नहीं बेटा। हम हैं न ? " और प्यार से उसे गोद में उठा लिया।

" हम हैं न ! " कितनी आसानी से बेटी को कह दिया था उसने। 

मगर, उसे पता था कि वह झूठ बोल रहा है। श्वेता के मम्मी-पापा इसी शहर में रहते थे। ऑफिस से लौटते वक्त अक्सर वो उनके पास चली जाया करती थी।कभी-कभी तो वहीं रूक भी जाती थी। बस फोन पर उसे " सारी " कह देती। उस दिन बस इतना ही तो कहा था उसने कि माँ-बाबूजी और अपनी बेटी के प्रति भी उसके कुछ दायित्व हैं। उसे इस बारे में भी सोचना चाहिए। बस, इतनी-सी बात पर वह सबकुछ छोड़कर अपने मम्मी-पापा के पास चली गयी थी।कई बार उसने फोन किया, मगर श्वेता ने उठाया ही नहीं। ऑफिस के काम में इतना व्यस्त रहा कि फिर कोशिश भी नहीं की उसने ? 

मगर, इसमें गलती श्वेता की भी नहीं थी। छोटा भाई राकेश जब अमेरिका जाकर बस गया, तो बूढ़े मम्मी-पापा की देखरेख करने वाला श्वेता के सिवा था भी कौन ? 

आखिर वह भी अपने माँ-बाबूजी की देखभाल तो कर ही रहा है न ? अगर श्वेता कर रही है, तो इसमें गलत क्या है ? गलती दरअसल उसी की है। उसे ही श्वेता से माफी माँग लेनी चाहिए......।

सोचते-सोचते बेटी को गोद में लेकर वह मुड़ा और उसकी पनीली आँखों में उतरते हुए कहा - " मम्मा को लाने चलें....? "

" हाँ...पापा ? " बेटी ने चहकते हुए कहा और पापा से लिपटकर उनके गाल पर एक मीठा-सा ' पुच्चू ' दे दिया और मुस्कुराने लगी। उसकी मुस्कुराहट से जैसे सारा जहाँ मुस्कुरा उठा था।

कार श्वेता के घर की ओर जा रही थी। उसके मन पर पड़ा बोझ अब उतर चुका था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational