बहिष्कृत (लघुकथा)
बहिष्कृत (लघुकथा)


सूर्यास्त होते ही चिड़ियों का एक जोड़ा उसकी बालकनी में कपड़े सुखाने की अलगनी पर आकर बैठ जाता। सुबह होते ही वे दोनों उड़ जाते। उसे आश्चर्य होता कि आहट मात्र से उड़ जाने वाली ये चिड़िया हमारे नज़दीक आकर इतनी निश्चिंत कैसे रह जाती हैं ! देखा, तो वे दोनों मिलकर रोशनदान में अपना घोंसला बना रहे थे। धीरे-धीरे पूरे परिवार को उनसे लगाव हो गया था। शाम में हम जब तक उन्हें अपनी अलगनी पर बैठे न देख लेते, हमें सुकून नहीं मिलता।
एक दिन शाम को एक ही चिड़िया आई। सबने सोचा कि एक चिड़िया शायद कहीं रह गयी होगी, दूसरे दिन आ जाएगी। मगर जब दो दिन बीत गये, तो सबको चिंता होने लगी। तीसरे दिन शाम में वह बालकनी में ही बैठा हुआ था कि एक चिड़िया आकर अपने घोंसले में बैठ गयी। उसे आज फिर अ
केला देख अनायास उसके मुँह से निकल गया - " अरे !आज फिर अकेले ही आ गयी ? "तभी बगल में गुड्डे-गुड़िया से खेल रही उसकी छ: वर्षीया बेटी ने कहा - " पापा मुझे पता चल गया है कि चिड़िया अकेली क्यों आती है।" " बताओ बेटी, क्यों ? " - बेटी की ओर मुड़कर उसने उत्सुकता से पूछा।" चिड़ी ने घोंसले में अंडे दिए होंगे। तो घोंसले में चिड़े के रहने की जगह नहीं होगी। इसलिए वह रात में सोने के लिए चिड़े को बाहर भेज देती है, जिस तरह घर में जगह कम पड़ जाने के कारण हम दादाजी को बाहर बरामदे में सोने भेज देते हैं। " -बेटी ने उसकी ओर देखते हुए कहा। " छनाक..." किचन से बर्त्तन के गिरने की आवाज़ सुनाई पड़ी। बच्ची के जवाब ने उसके कलेजे पर हथौड़े की मानिंद चोट की थी।अब वह अपनी बेटी से ही आँखें नहीं मिला पा रहा था !