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varsha Gujrati

Romance Classics

3  

varsha Gujrati

Romance Classics

अनकहा सच

अनकहा सच

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हाँ ... प्रिये ,

आज वो अनकहा तुम्हें कुछ कहना चाहती हूँ , बताना चाहती हूँ मैं वो तुम्हें .... क्या हो तुम मेरे लिए , तुम बिन कितनी अधुरी हूँ मैं .... इस अधुरे पन में भी कितनी पूर्ण हूँ मैं ....

हर पहर किस तरह तुम्हारे आंचल से बंधी हूँ मैं ..... इन बहती हवाओं में पाती हूँ तुम्हें .... इन रात की रागिनी में गुनगुनाती हूँ तुम्हें ... इन तारों की खामोशी में तुम्हारे शब्दों को जीती हूँ मैं

दिल कहता है ... हर जज्बात से इन कोरे पन्नों की किस्मत बदल दूँ .... रंग दूँ इन्हें तुम्हारे ही रंग से ... और लबों से इनको चुम लूँ ..... बिखेर दूँ अक्स तुम्हारा इन बहती हवाओं में .... और नशे में तुम्हारे छुम लूँ .... खनकती पायल को ... तुम्हारी ह्रदय की आहट पर थिरकना सीखा दूँ .... मेरी निगाहों को दुरियों मे भी तुम्हें देखना सीखा दूँ ..... 

मेरी सांसो की वो साज .... सरगम तुम्हारे प्रेम गीत के ... उन शब्दों की धुन पर हमारे सपनों का एक घर बना दूँ ....

इसके आंगन मे बीज विश्वास के गुलमोहर लगा दूँ .... गहराते श्यामल साँझ की बाँहो में .... तुम्हारी तमन्ना के बिछोने पर .... इन सांसो की सिलवटों पर ... हर पहर इन रातों का बीता दूँ ..

अलसाई आंखों से सवेरा तुम्हारी बांहों में देखुँ .... सुरज की निकलती किरणों को तुम्हारी आँखो में देखुँ .... खुद को फिर धरती सा बैचेन में पाऊँ .... आसमां सा तरसता ... तुम्हें अपने दामन में सजाऊँ .... स्वयं को तेरे एहसास से सजाऊँ ....

दिल कहता है अब भी बहुत कुछ अनकहा सा रहने दूँ .... खुद को तुम्हारे बिन अधुरा सा छोड़ दूँ .... कुछ शब्दों की माला को अधुरा छोड़ दूँ .... कंपकपाते लबों की सरसराहट को अनकहा ही रहने दूँ ..... दिल की किताब के कुछ पन्ने कोरे ही रहने दूँ 

ये प्रेम की अमृत बेल को अपने ही एहसास से बड़ा होने दूँ .....

खत के एहसास से कविता तुम्हें समर्पित करती हूँ ,

तुम किस कदर बसे हो मुझमे कविता से कहती हूँ .....


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