नजरों से दिल का सफर अंतिम भाग
नजरों से दिल का सफर अंतिम भाग
आरु सुनकर जैसे मेरे पैर जमीन से चिपक गए थे,रुक तो गई थी पर तुम्हारे तरफ़ पलटकर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी,उस पर में घबरा गई थी जाने तुम क्या कहोगे, क्या पुछना चाहते हो दिमाग में एक साथ कई सवाल आ रहे थे।
पर हिम्मत करके पलटी पर तुम्हारे तरफ़ देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी पर पलटना तो था। तुमने बोला
Tension मत लो कुछ नहीं कह रहा बस ये कह रहा था की ये नम्बर है बात कर लेना उससे तुम्हारे लिए पुछ रहा था और मैं ने वो नम्बर ले लिया
उस दिन बहुत कुछ ना बोलकर भी बोल गए थे तुम,
कितना कुछ था तुम्हारे सिर्फ एक वाक्य में मेरे लिए समझने को और सच कहूं तो समझी भी।
हां तुम्हारे नाम लेकर बुलाने में ये था तुम आज भी वो ही हो बदले नहीं हो ना तुम्हारी feeling बदली है
और नम्बर देने से मतलब था मैं तुम्हारी बहुत इज्जत करता हू मुझसे नहींं बात करनी मत करो पर वापस अपने दोस्तों से जुड़ जाओ।
बहुत कुछ कह गए थे तुम अपनी नजरों से और बहुत कुछ अनकहा भी छोड़ गए थे तुम।
पर मुझमें उस वक्त ज़िद थी अपने पैरों पर खड़े होने की अपना नाम बनाने की कुछ कर दिखाने की,
मैं एक बार हार देख चुकी थी इसलिए मैंने खुद को फिर अपने काम के तरफ़ मोड़ लिया
पर भगवान ने मेरे हाथों में तुम्हारा नाम लिखने की कसम खा रखी थी, मैं जितना तुम से दूर रहने की कोशिश करती उतना ही तुम्हारे सामने आ जाती
हम दोनों ही अपने पैर जमाने की कोशिश करने लगे थे
और तुम तो पहले पायदान पर चढ़ भी गए थे।
ऐसे ही हम एक दिन Department में टकराएं तुमने फिर आवाज दी पर इस बार वर्षा कहकर रोका
तुमने कहा मेरे पास एक case आया है तुम करोगी वो
क्योंकि मेरे पास time' नहीं है और मैं उन्हें मना भी नहीं कर सकता और तुम्हारे अलावा भरोसा भी किसी और पर कर नहीं सकता और सबसे अच्छी बात ये है तुम्हें बहुत कुछ सिखने मिलेगा।
मैंने कहा " मैं " तुम हंस दिए थे मेरे इस मैं पर और सच कहूं तो मैं खुद हंस दी थी अपने stupid question पर फिर तुमने कहा कर लो मैं तो हूं ही साथ कोई problem होती है तो निपट लेंगे साथ में
वो मेरा पहला case था जिसे मैंने individual solve किया था और फिर ये ही case हमें फिर से दोस्त बना गया था,अब हम दोनों कोई case साथ में कोई case individually solve करते थे
अब हमारे बीच बात तो होने लगी थी
एक दिन बाजार में फिर हम आमने-सामने आ गए
पर इस बार तुम अपनी mom के साथ थे, तुमने हम दोनों को मिलवाया और सच जब भी कहा था तुमसे और आज भी कहुंगी ur mom is best
हम दोनों के बीच बात हुई और तुम्हारी mom ने मुझसे मेरा नम्बर लिया और तुम्हारे घर पर आने का वादा भी।
हमारी अपने काम पर अच्छी gripping होने के कारण हमें बहुत काम मिलने लगा और मैंने भी खुद का office खोलने की हिम्मत कर डाली।
अब हम लोग बहुत कुछ share करने लग गए थे एक-दूसरे से, मेरा तुम्हारे घर आना-जाना लगा ही रहता था और मेरी मम्मी को तुम्हारी mom से मिलकर मेरी tension ही खत्म हो गई थी
और सच भी तो है मां अब मेरी मां ज्यादा बन गई थी
और हम दोनों मिलकर तुम्हारी खिंचाई करते रहते थे
हमारे बीच बिन बोले, बिन कहे एक-दूसरे पर अनजाने में अधिकार बता ही देते थे, जैसे अरे तुम अकेली मत जाओ मैं चल रहा हूं या बहुत कुछ था जो हम एक-दूसरे के लिए अनजाने में कर जाते थे
फिर एक दिन तुम्हारा वो ही सवाल मेरे सामने आकर खड़ा हो गया पर इस बार वो सवाल तुमने नहीं mom ने पूछा था हमसे
उनकी हर बात आज भी याद है बहुत प्यार से उन्होंने हमसे कहना शुरू किया था
वर्षा कुछ बात करु तुमसे, मैंने कहा हां मां बोलिए ना
तब उन्होंने कहा तुझे पता है मैं तुझे बहुत पहले से तेरे नाम से जानती थी मुझे सबकुछ पता है उसका तुझे propose करना,तेरा मना करना
और फिर इतने सालों बाद तुम लोगों का एक-दूसरे के सामने आ जाना और अब इतने साल से एक-दूसरे के साथ काम करना।
पता है पहले तुझे उसके जरिए जानती थी पर तुमसे मिलने के बाद में तुम्हें अपने नजरिए से भी जानती हूं और सच कहुं तो मुझे तू और भी पसंद आ गई, में भी चाहती हूं तू मेरी बहु बनकर इस घर में आए
फैसला तेरा ही होगा पर हम मां-बेटी के रिश्ते ऐसे ही रहेंगे चाहे तू हां बोल चाहे ना बोल क्योंकि जो तुने उसे कहा था ना की तू उस जैसा दोस्त नहीं खोना चाहती
वो ही में आज बोलती हूं मैं तुझ जैसी बेटी नहीं खोना चाहती।
फिर तुमने भी एक बात कही अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं आओगी तो कोई और भी नहीं आएगा मेरी जिंदगी में।
बस अब मैं ये कहानी खत्म करती हूं क्योंकि इसके बाद हम-दोनों अब जीवनसाथी के रुप में एक-दूजे के साथ रह रहे हैं।
बस मैं इतना कहना चाहती हूं प्यार क्या सिर्फ हां और ना पर टिका होता है,
कि हां तो प्यार है और ना है तो वो ख़राब है या कुछ और
अगर चलो हम मान भी लेते है प्यार में उसने धोखा दिया,पर आपका प्यार तो सच्चा था ना फिर हम क्यों अपने ही प्यार को बदनाम करने क्यों उतारु हो जाते है
अगर उसने प्यार नहीं निभाया तो आपने कोनसा निभा लिया।
हम प्यार के लिए राधा-कृष्ण को याद करते है, मंजिल तो उन्हें भी नहीं मिली थी प्यार में
मुझे लगता है भगवान ने अपने प्यार को अधुरा सिर्फ इसलिए छोड़ा की हम लोग उनसे सीखे
और अधुरे प्यार को भी इज्जत दे, उसे बदनाम ना करें।