नजरों से दिल का सफर भाग 1
नजरों से दिल का सफर भाग 1
हां याद है मुझे, वो अपनी पहली मुलाक़ात, जब नज़रों से पहली बार नजरें टकराई थी सिर्फ एक खामोशी थी हमारे बीच और हम एक-दुजे के नाम से भी अनजान, कोई बात होती भी कैसे हमारे बीच ना कोई जरिया था ना ही हम लोगों के दिल में चाह अजनबी बन टकराएं और अजनबी बन एक-दूसरे की नजरों से दूर हो गए।
ना दिल को कोई खुशी थी ना दिल को कोई ग़म जैसे नज़रों ने तुम्हारा चेहरा भूला दिया हो, फिर हम अचानक एक कोचिंग सेंटर पर टकराएं, शायद भगवान ने ये हमें मिलाने दूसरी और मजबूत कड़ी जोड़ी थी, बातचीत तो हमारे बीच कभी नहीं हुई, बस हम आते कोचिंग सेंटर पर अपनी कोचिंग करते और अपने-अपने रास्ते चले जाते।
बस ये ही सिलसिला हमारे बीच बहुत दिन तक होता रहा।
फिर एक दिन में कोचिंग नहीं आई शायद ये तुम्हारे लिए पहला एहसास था की मैं तुम्हारे लिए कुछ खास हूँ और मैं इन सब से अनभिज्ञ अपनी ही उलझन में उलझी हुई थी,
फिर मैं दूसरे दिन भी कोचिंग नहीं आई, सर ने जब मेरी सहेली से पूछा तब तुम्हें ज्ञात हुआ कि मैं बीमार हूं।
मेरी बीमारी में सात दिन बीत गए खामोशी से।
ठीक होने पर मैं कोचिंग आई, कैसे भूला सकती हूँ मैं वो नजारा आज भी याद करती हूं तो लब पर एक मुस्कान आ ही जाती है जैसे ही मैं क्लास रूम में कदम रखा तुम्हारे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई जिसे तुम ने जल्दी से छुपा ली की कही कोई देख ना ले और हम फिर अपनी पढ़ाई में लग गए
कोचिंग खत्म होने के बाद तुम्हें मौका मिल गया हमारी पहली बातचीत का अब हम नाम से तो अनजान नहीं थे
तुम्हारे वो पहले शब्द " कैसी तबीयत है अब आपकी " मैंने जवाब दिया अच्छी है वो ही हमारी पहली बात थी, उसके बाद तो हमारे बीच अनबोला और वो एक लड़ाई ही थी।
याद है उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी और तुम और तुम्हारे दोस्तों का बिल्कुल मन नहीं था पढ़ाई का,
तुम हमेशा शांत रहते थे पर वो तुम्हारे दोनों दोस्त मस्ती का तूफान थे, जिन से पहेली बार मेरी लड़ाई हुई।
अच्छा तुम ही बताओ क्या मैं ग़लत बात पर लड़ी थी तुम्हारे दोस्तों से, इतनी तेज बारिश हो रही थी और क्या कहा था उन लोगों ने पीछे बैठे " कितनी जोर से वर्षा हो रही है " बहुत गुस्सा आ रहा था मैं तो क्लास खत्म होने का इंतजार कर रही थी, की कब क्लास खत्म हो और कब मैं लडू और मैंने गुस्सा भी किया तुम्हारे दोस्त पर, पर हम दोनों के बीच बस और बस खामोशी ही रही
एक दिन कोचिंग सेंटर पर एक कार्यक्रम होना था जहां सिर्फ उस दिन मस्ती और केवल मस्ती होने वाली थी
गाने बज रहे थे और जब एक गाना मुझे बहुत परेशान कर रहा था वो तुम्हारे दोस्त का पसंदीदा गाना था जिसको वो हर थोड़ी देर में बजाता और मैं मन ही मन चिढ़ रही थी
तुम मेरे चेहरे को देखकर समझ गए थे इसलिए तुम्हारे कहने के बाद वो गाना नहीं बजा (मुझे ये बात बहुत दिन बाद पता चली थी की तुमने वो गाना बंद करवाया था )
बातचीत तो हम दोनों के बीच उस दिन भी नहीं हुई पर हां तुम्हारे जिन दोस्तों से मेरी लड़ाई हुई थी उनमें एक से बातचीत शुरू हो गई
अब बस इतना था तुम्हारे सामने, तुम्हारे उसी दोस्त से मेरी थोड़ी-बहुत बातचीत होना शुरू हो गई बस इस तरह से एक साल बीत गया और तुम्हारा दोस्त और मैं बहुत अच्छे दोस्त बन गए एक-दूसरे का फोन नंबर भी हमारे पास था और तुम्हें सब पता था कि हम दोनों बातें फोन पर भी करते है और तुम्हें ये भी पता था हम सिर्फ दोस्त और केवल अच्छे दोस्त थे।
पर जिंदगी शायद मेरी और तुम्हारी कहानी लिखने में व्यस्त थी, क्योंकि मैं जब भी तुम्हारा नाम लेती अपनी सहेली से बात करते हुए तुम मुझे उसी वक्त सामने नजर आते या मेरे पीछे से आते हुए नज़र आते ( हां ये तुम्हें नहीं पता पर ऐसा ही होता था ) रोड पर चलते हुए में जब भी जिक्र करती तुम मुझे नज़र आ जाते और मेरी सहेली बोलती यार जब-जब तू नाम लेती वो नज़र आ जाता है ये हो क्या रहा है और मैं हंसकर बात टाल देती एक इत्तफाक समझकर क्योंकि मैं तो प्यार होता क्या है इससे कोसों दूर थी।
मुझे तो सिर्फ पढ़ाई और मस्ती ये ही दो बातें आती थी और मैं इनमें ही डूबी हुई, तुम्हारे एहसास से अनभिज्ञ थी .....
एक दिन अचानक तुम्हारे दोस्त ने तुम्हारा जिक्र छेड़ा मुझसे और मैं अनजाने में उसको बोल गई " अरे यार पता नहीं क्या है मैं जब भी नाम लेती हू उसका तो वो मुझे नज़र आ जाता है पता नही क्या है हमारे बीच " और तुम्हारा दोस्त जोर से हंसा और मैं भी उसके साथ हंस दी
फिर वो मुझे बोला वो बहुत अच्छा इंसान है तुम उससे भी दोस्ती कर लो और मेरा जवाब था हां जानती हूं वो बहुत अच्छा इंसान है
दो दिन बाद friendship day था तुम सबके लिए chocolate लाए थे और तुमने मुझे भी दी Happy friendship day बोलकर
याद है तुम्हें ......
जानती हूं ये बातें जितने मेरे करीब है उतने तुम्हारे भी ......
क्रमशः

