MITHILESH NAG

Tragedy

5.0  

MITHILESH NAG

Tragedy

अनजान सफर

अनजान सफर

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“मुझे नहीं पता मेरा जन्म क्यों और किस लिए हुआ। बस ये पता है, कि हाँ मेरा जन्म हुआ है।“ खैर अब मैं तो एक अनजान सफर के लिए निकलता हूँ फिर हम को पता चलेगा की ये कैसा सफर है।

कुछ समय बाद

बनारस के काशी घाट के पास छोटे से घर मे पंडित माया राम को पुत्र की प्राप्ति हुई।लोग बहुत खुश है सब पण्डित जी को बधाई दे रहे है।

पंडित जी” बड़ी खशी की बात है आप के घर लम्बे समय बाद कोई पुत्र जन्म लिया है”

हाथ जोड़े पंडित जी “ये तो ऊपर वाले कि कृपया है रामू”

“बात तो बड़े पते कि बोली अपने” पण्डित जी। 

तभी एक दाई बच्चे को सफेद कपड़े में पूरी तरह से लपटे कर गोद मे लिए कमरे से बाहर आती है।

पंडित जी “आज तो मैं भी बहुत खुश हूँ आप के घर पर पुत्र जो आया है। लेकिन

लेकिन क्या दाई माँ ? (कुछ रुक कर और 70 साल की दाई को देखते हुए)

“आप के पुत्र को ऊपर वाले ने दाग के साथ भेजा है।”

अब पंडित जी की और रामू दोनों को बहुत बेचैनी होने लगी कि आखिर दाई माँ कहना क्या चाहती है? 

साफ-साफ बोलो दाई माँ !

दाई माँ ने बच्चे के ऊपर से वो सफेद कपड़े को हटा कर उसके पेट पर एक दाग दिखती है,ऐसा लगता है जैसे किसी ने गरम लोहे के छड़ से दाग दिया हो।

ये क्या है? हाथ से छूते हुए।

अरे! पंडित जी “ घबराने की कोई बात नहीं है इससे कुछ नहीं होता है।बस पहले के लोग बोलते थे, कि लगता है भगवान के पास से नहीं जाना चाहता है,इसलिए भगवान ने गरम लोहे से दाग दिया जिसकी वजह से वो पृथ्वी पर जन्म लिया है।”

अच्छा (एक गहरी सांस लेते हुए) तो इसलिए ऐसे दाग है।

कोई बात नहीं पंडित जी इस बच्चे का भाग्य है जो आपके घर आया।

 “ जब बच्चा जन्म लेता है तो उसको एक सफेद कपड़े में लपेट कर बिस्तर पर अपने आप को अपनी माँ के पास लेटा हुआ पता है।”

 5 साल बाद

राम आज से स्कूल जाने लगा। अच्छे अच्छे कपड़े में टाई सफ़ेद पैंट-शर्ट में वो बहुत अच्छा लग रहा है।

माँ “ जल्दी करो! मुझे स्कूल के लिए देर हो जाएगी।”

हाँ हाँ रुको टिफिन तो लेते जा बेटा।”

जल्दी जल्दी उसको टिफिन तैयार कर के उसके बस्ते में रख देती है।

ध्यान से जाना और स्कूल में अच्छे से पढ़ाई करना क्यो की तुम को अच्छे नंबर से पास जो होना है।

“ठीक है, माँ ।

पंडित जी की और उनकी पत्नी को अभी से उसके ऊपर उम्मीद बनाए बैठे है कि एक दिन मेरा पुत्र बहुत बड़ा आदमी बनेगा और हमारा नाम करेगा।

स्कूल में

राम पूरा दिन किताब कॉपी में लगा रहा है। कभी हिंदी की बुक लिए कुछ लिख रहा है,तो कभी अंग्रेजी की बुक लेकर बैठा है। ऊपर से बस्ते का वजन भी राम को परेशान करती रहती है।

“ सभी बच्चे होमवर्क कर के लाये है”। 

टीचर क्लास रूम में कुर्सी पर बैठ कर पूछती है।

सभी एक साथ हाँ की आवाज़ लगाते है

समय धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था। अब राम 15 साल का हो गया है और 10 में चला गया ।

बेटा राम जल्दी से मेरे साथ चल,आज बगल वाले घर पर पूजा करने चलना है।

“ठीक है पिता जी” लेकिन मुझे अभी लिखना है और कल से एग्जाम भी तो है आप चले मैं कुछ समय बाद आता हूं।

कोई बात नहीं बेटा बाद में लिख लेना। अभी तो तुम को मेरे साथ ही चलना है। जब आएगा जाएगा नहीं तो कैसे कुछ पता चलेगा तुम को।

और राम ना चाहते हुए भी साथ मे चला जाता है।

अगले दिन सुबह जब राम कॉलेज के लिए जाने लगा तो पंडित जी रोक कर

बेटा“ याद रखना अपने माँ-बाप की नाक मत कटाना” अच्छे से एग्जाम देनाअच्छे नंबर से पास जो होना है।

पता नहीं लोगो को ऐसा क्यों लगता है कि सफल ही होना जीवन की सब से बड़ी जीत होती है।क्या कभी कभी हारना जरूरी नहीं होता है,हर बार हमारे ऊपर ये क्यो होता है,की सफल ही होना है।

ठीक है पिता जी मैं कोशिश करूंगा । 

एग्जाम हॉल में

राम को कुछ समझ मे ही नहीं आ रहा था। कि क्या लिखूं ?

वो सोचने लगा“कल पिता जी के साथ नहीं गया होता तो आज एग्जाम अच्छे से दे देता। अब अगर नहीं कुछ लिखूंगा तो पास नहीं हो पाऊँगा।

मैं फेल हो जाऊँगा । यही सोचते सोचते वो वही बेहोश हो गया।

उसको सब हॉस्पिटल ले गए बेहोश होने की वजह से वो एग्जाम नहीं दे सका। वो बुरी तरह से डरा डरा था।

क्या हुआ?“इतने डरे डरे से क्यो हो? डॉक्टर उसके सिर पर हाथ फेर कर पूछते है।

“ फेल हो जाऊँगा।अब क्या होगा”।

 फिर अचानक बेहोश हो गया।

कुछ देर बाद

“क्या हुँआ मेरे बेटे को?”

पंडित जी और उनकी पत्नी साथ मे हॉस्पिटल में जल्दी जल्दी आते हैउसके पास ही रोने लगते है।

“कुछ नहीं किसी बात को लेकर सोचने की वजह से ऐसा हुआ है।

डॉक्टर ने उनको समझाया और बोला “कि आगे से ध्यान दे कि किसी बात का आप इस पर दबाव ना डाले”।

फिर कुछ देर बाद उसको घर लेकर चले आये ।

15 साल बाद

राम की शादी हो गयी । अब उसके ऊपर और जिमेदारी बढ़ गयी । उसके एक बच्चा भी है,लेकिन वो भी अभी छोटा है।

उसको हमेशा से उसकी पत्नी का दबाव था।

कितना कमाते हो? “लोगो को देखो अपनी अपनी बीवी को अच्छे अच्छे गहने साड़ी सब देते है” और एक तुम हो 12 फेल । पता नहीं मेरी किस्मत में क्या था?जो तुम से शादी कर बैठी। 

कहते है ना, हमहर जीने वाला इंसान अपने लिए कुछ नहीं कर पाता है।कभी माँ-बाप के लिए,कभी अपने बीबी बच्चों के लिए, कभी अपने ख़र्च के लिए पता ही नहीं चलता है कि हम किसके लिए जी रहे है।

कुछ दिन बाद पंडित जी भी गुस्सा होने लगे थे।

“नालायक लड़का निकाला” कितने सपने देखे थे मैन सोचता था कि जब ये कमाने लगेगा तो मैं आराम से बैठ कर बस खाऊँगा।

“इसके पीछे इतना खर्च कर दिया लेकिन कुछ नहीं मिला”

राम चुपचाप अपनी पत्नी,माँ और अपने पिता की बाते सुन रहा था।

रोना चाहता था,लेकिन किसके लिए रोए जो अपना कभी था ही नहीं।

लेकिन अचानक सोचते सोचते उसी जगह धड़ाम से गिरता है।जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक उसके नाक और मुँह से खून निकलने लगा ।

“जल्दी से डॉक्टर को बुलाकर कर लाओ कोई।”

डॉक्टर जब आ कर देखता है,उसकी आँखें चेक करता है,नब्ज देखता है।

फिर एक गहरी सांस लेते हुए।

 “अब राम इस दुनिया में नहीं रहा।”

“जिस तरह बचपन मे मुझे मेरे जन्म पर मुझे सफेद कपड़े में लपेट कर मेरे पिता ने मुझे कंधे पर रख कर खुशी मनाई थी, ठीक आज 40 साल बाद फिर मुझे सफेद कपड़े में लपेट कर एक साजे बिस्तर पर रख दिया गया है”

बस आज एक ही फर्क है,पहले मैं खुशियों का सफर था और आज गम का सफर हूँ।

खैर! “ अब मुझे खुशी है कि आज मुझे पता चला कि आज तक जन्म से लेकर मेरे मरने तक का ये सफर दरअसल सही मायने में मेरा था ही नहीं ये तो बस मैं

अनजाने सफर पर चल रहा था।


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