अनजान शहर
अनजान शहर


अक्सर लोगों की ख़्वाहिश होती है, कि गाँव को छोड़कर शहर चले जायें। अच्छे रुपये कमाकर एक अच्छा जॉब पाकर जिंदगी को व्यवस्थित ढंग से जीना शुरू कर दें।
लेकिन एक जिंदगी जीने का जो भावनात्मक जुड़ाव और वैचारिक जीवन की जो शैली गाँव में मिलती है शायद ही शहर में मिलती होगी।
मैं तो वैसे भी गाँव में रहता हूँ। तो शायद गाँव के बारे में ज्यादा बता पाऊंगा।
हमारे ग्रामीण अंचल में जो सम्मान पिताजी को दिया जाता है वही सम्मान गाँव के हर बुजुर्ग को दिया जाता है।
सुबह जब हम आपस में मिलते है जो नमस्कार हाथ मिलाकर नहीं हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं।
अगर कोई बड़ा आदमी मिल जाये तो हम उनके पैर छू कर एक बिना किसी आहट के निकल जाते हैं। कि कहीं हम उनकी नजर में न आ जाये।
जब शाम को गांव की चौपालों में एक भीड़ जमा होती है। जिसमें हर उम्र के बच्चे, जवान ,ओर बुजुर्ग एक जगह बैठकर गाँव की बातों और खेतों के किस्सों में न जाने कितना समय बीत जाता है।
हम जब सर्दियों में एक जगह अंगीठी जलाकर बैठने लगते है। तो हमारे चारों और जो घेराव लगता है। उसका आनंद शायद ही कोई शहर का प्राणी ले पाए।
चौमासा में जब हम खेत से कम करके घर लौटते है, तो हजारों बार हमें खुश रहने की दुआ मिलती हैं।
और जो शहरों में रहते है, वो माँ जैसे पवित्र शब्द को छोड़कर मॉम जैसे शब्द का प्रयोग करते है।
पापा और बापू जैसे पारम्परिक भाषा के अंश को त्यागकर एक नवीन भाषा डैड जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते है।
जहाँ तक में जानता हूँ, शायद शहरों में चौपाल नही लगती है और ना ही किसी से भावनात्मक जुड़ाव महसूस होता होगा। फिर भी ना जाने क्यों हर कोई शहर जाना चाहते है।
जीवन की सार्थक जीवन शैली और भावनाओं के साथ विचार, आपसी प्रेम और मेलजोल के साथ एक दूसरे की वजह और मानसिक शांति के साथ समर्पित पारम्परिक जीवन शैली को ही गाँव कहते है।
और शायद इसीलिए हमारा भारत ग्रामीण अंचल के लिए सर्वश्रेष्ठ देश है।
शिशपाल चिनियां" शशि"