Moumita Bagchi

Drama Romance

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Moumita Bagchi

Drama Romance

अनजान पते से आया था वह खत!

अनजान पते से आया था वह खत!

6 mins
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यह कहानी सन् 1993 की है। उस वर्ष शुभा दसवीं का बोर्ड एक्जाम देने वाली थी। प्रीबोर्ड उन लोगों का दिसम्बर में होने वाला था, परंतु 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद के टूटने के कारण देश भर में होनेवाले दंगे के मद्देनज़र उसके स्कूल वालों की ओर से यह परीक्षा रद्द कर दी गई थी। देश के राजनीतिक उथल-पुथल का खामियाजा एक बार फिर छात्रों को भुगतना था। इसी बीच नया साल आया और बिना किसी आडम्बर के निकल भी गया। देश भर में जगह-जगह से सांप्रदायिक दंगों की खबरें आ रहे थे। सब जगह मातम का माहौल था, जश्न के लिए किसके पास वक्त था?

पड़ोसी बंग्लादेश से भी सांप्रदायिक हिंसा की भयानक खबरें आ रही थी। यही वह समय था जब तसलिमा नासरिन जी की किताब " लज्जा" प्रकाशित हुई थी और बांग्लादेश सरकार द्वारा उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। फिर भी चोरी छुपे कलकत्ता में यह किताब धड़ल्ले से बिक रही थी।

ऐसे ही राजनीतिक माहौल में कलकत्ते में शुभा एक दिन स्कूल से घर लौट रही थी। बोर्ड का इम्तिहान नजदीक था, अब कितने दिनों तक कोई घर में बैठे? पाठ्यक्रम में काफी कुछ अभी बाकी था। बाबरी मस्जिद वाली घटना का एक महीना बीत जाने पर भी जन रोष अभी तक कम नहीं हो पाया था। हाल ही में अहमदाबाद और देश के दूसरे क्षेत्रों में हुए दंगे के कारण लोगों में आक्रोश और घबराहट दोनों ही पनप रहा था। न जाने कब क्या हो जाए!

शुभा की माँ उसे सुबह से ही स्कूल जाने को मना कर रही थी। परंतु वह गई। स्कूल का विंटर- ब्रेक समाप्त हो चुका था। अभी जोर- शोर से पढ़ाई चल रही थी। मार्च में इम्तिहान था, इसलिए स्कूल एक दिन भी नागा करना भारी नुकसानदेह साबित हो सकता था। सुनने में यह आया था कि इसी जनवरी महीने के अंत में प्रीबोर्ड ,जो कि पहले एक बार रद्द हो चुकी थी, की परीक्षाएँ हो सकती थी! अभी एक भी क्लास मिस करने का कोई मतलब न बनता था।

खैर, जनवरी की एक दोपहर को शुभा जब घर लौट रही थी तो उनकी बिल्डिंग में सीढ़ियों के पास जो लेटर बाॅक्स लगे थे, उसमें उसे कुछ चिट्ठियाँ पड़ी हुई दिखी। शुभा का यही काम था। वह रोज स्कूल से घर आते समय डाक द्वारा आए हुए सभी चिट्ठियों को अपने साथ ले आती थी। उसके पिताजी दफ्तर से देर रात को आते थे, तो यह जिम्मेदारी शुभा ने अपने ऊपर ले ली थी।

उस दिन अन्य पत्रों के साथ शुभा के नाम का एक पत्र भी था। नए वर्ष का एक ग्रिटिंग कार्ड! गुलाबी लिफाफे पर नाम और पता तो उसी का लिखा था पर प्रेषक का कोई अता-पता न था। किसी दोस्त ने उसे नए वर्ष की शुभकामनाएँ भेजी होगी यह सोचकर वह उस कार्ड को घर ले आई।

घर आकर जब उस लिफाफे को शुभा ने खोला तो शुभा को बड़ा आश्चर्य हुआ! अंदर भी कहीं पर उसे भेजने वाले का नाम न लिखा था! साथ ही लिखा संदेश भी बड़ा गोल-मोल था। उसमें लिखा था-- " यह उसकी ओर से है जिसके दिल में तुम्हारे लिए ------है।"

नीचे-- नोट पर लिखा था-- " तुम्हारे कक्षा का ही कोई।"

इतना ही नहीं कार्ड के बायीं ओर की खाली जगह पर हाथ से लिखा था--" प्लिज़ बुरा मत मानना, यह एक मजाक है।"

शुभा को थोड़ी देर तक कुछ भी समझ में न आया। आखिर यह है क्या? न्यू इयर की कोई विश् या प्रेम का इज़हार अथवा सिर्फ एक भद्दा मजाक!

दिमाग उसका बिलकुल भी काम नहीं कर रहा था।

एक बार लगा कि जाकर मम्मी को सब कुछ बता दें। लेकिन दूसरे ही पल ध्यान आया कि मम्मी इसका कारण उसे ही मानेगी। वह मम्मी का स्वभाव जानती थी। हर गलत काम का सबब वे शुभा के ही सर पर ही थोपती थीं। क्या पता, कल पापा को बताकर उसका स्कूल जाना ही बंद करा दे! नहीं, ऐसा वह किसी भी कीमत में नहीं चाहती थी। रात भर वह चुपचाप रही। मानो कुछ हुआ ही नहीं। मम्मी ने वह लिफाफा देखा था। जब उन्होंने पूछा तो शुभा उनसे बोली कि उसके पुराने स्कूल से किसी दोस्त ने भेजा है।

अगले दिन सुबह स्कूल जाते ही उसने अपनी बेस्ट फ्रेंड राका को सारी बातें बताई। वह लिफाफा और कार्ड भी दिखाया। दोनों सहेलियों ने बहुत माथापच्ची की यह जानने के लिए यह किसकी ओर से आया है। अब कक्षा के चालीस बच्चों में से यह पता लगाना बहुत मुश्किल था कि मुजरीम कौन है। एक बार उनके मन में यह ख्याल आया कि जाकर क्लास टीचर को बता दें। वे जरूर सबका हस्ताक्षर पहचानती होंगी। वे एक मिनट में बता देंगी।

परंतु, फिर लड़कियों ने खुद ही छान-बिन करने की ठानी। कहते हैं न कि एक से भले दो। अचानक उन्हें लिफाफे पर गड़िया के डाकखाने की मुहर लगी दिखी। अब मामला कुछ-कुछ उनकी समझ में आ रहा था। उस इलाके से दो सहपाठी आते थे। एक तो लड़की थी। वह शायद ऐसा काम न करेगी। शक की सुई दूसरे शख्स पर गई जिसका नाम राज था। अब राज से यह राजदारी का काम हुआ है कि नहीं इस बारे में कैसे निश्चित हुआ जाए?

सोचकर शुभा और राका ने एक मनोवैज्ञानिक नाटक करने का प्लाॅन बनाया। इससे साॅप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

एक दिन जब कक्षा में सिर्फ चार लोग बैठे थे, जिनमें राज भी था, शुभा जोर जोर से उसे सुनाकर अपने तीसरे दोस्त को कहने लगी,

" पता है, रौशनी । मुझे न एक न्यू इयर का ग्रिटिंग कार्ड मिला है, जो बड़ा ही नायाब है। चल तुझे दिखाती हूँ। "

उसने राका को इशारा किया, और एक दूसरा कार्ड लेकर रौशनी को दिखाने चली। राका का काम था राज के चेहरे पर उठते भावों को पढ़ना! पता तो था कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है।

वे दोनों सहेलिया अपनी मकसद में उस दिन कामयाब रही। राज का चेहरा देखने लायक था। उसके चेहरे पर से हवाइयाँ उड़ने लगी!!उसे लगा कि जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। और अब ये दोनों पूरी कक्षा को वह बात बताने वाली है! वह झट से उठकर बाहर चला गया।

इधर शुभा ने अपनी सहेली को कोई और कार्ड दिखाया था। और फिर कोई मनगढ़ंत कहानी सुनाकर वह और राका दोनों अपने स्थान पर वापस आ गई थी।

पहले तो दोनों सहेलियाॅ अपनी कामयाबी पर खूब हँसी। राका राज के चेहरे का वर्णन करके पेट पकड़कर हँसने लगी।

फिर दोनों सहेलियों ने यह निश्चय किया कि इस बात का बदला जरूर लेना चाहिए। हमारे साथ इतना बड़ा मज़ाक?!!आखिर राज़ समझता क्या है, अपने आपको?!!

इस बार राका का दिमाग जेट विमान से भी तेज गति से चलने लगा था! उसने सुझाव दिया कि उस राज को सबक उसी के तरीके से सीखाना चाहिए। उसने उस कार्ड को जलाया, उस पड़ोसी लड़की से राज का पता लिया और उसे वह जला हुआ कार्ड, माचिस की तिलि, मोमबत्ती के कुछ टुकड़ों समेत वापसी डाक द्वारा उसके पते पर भिजवा दिया। हाँ, साथ में एक नोट भी लिख दिया गया था--" बुरा मत मानना, यह एक मजाक है।"

इसके बाद क्या हुआ पता नहीं। इन सबका राज पर क्या असर होगा यह किसी ने न सोचा। लड़कियाँ बड़ी बेदिल निकलीं!!

एक बार के लिए भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि, यह सब कुछ किसी के पहले प्यार का इज़हार भी हो सकता है! जो एक ओर तो कुछ बताना चाह रहा है, परंतु साथ ही किसी का दिल नहीं दुखाना चाह रहा है। या फिर यह भी हो सकता है कि कहीं न कहीं राज को पकड़े जाने पर मार पड़ने का डर भी सता रहा था। उन दिनों ऐसे वाकया हो जाने पर या स्कूल से शिकायत आने पर माता-पिता अपने लड़कों की बड़ी धुनाई किया करते थे।

क्या पता ,माजरा क्या था!! पर लड़कियाँ अपनी हृदयहीनता का छाप छोड़ चुकी थी। इस तरह से अपने रोमियों को कुचलने की शिक्षा उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता रहा होगा!

और इधर एक और लव - स्टोरी बनने से पहले बिगड़ चुकी थी!

या यूँ कह लीजिए, कि वह कहानी किसी अग्निगर्भ में विलीन हो गई थी!!



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