Sudershan kumar sharma

Inspirational

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Sudershan kumar sharma

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अंहकार या विनम्रता

अंहकार या विनम्रता

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"अंहकार में तीनों गए, धन, वैभव और वंश, न मानो तो

देख लो, रावण, कौरव और कंस"। 


बात अंहकार की करें तो यह एक ऐसी बिमारी है जिसका कोई उपचार नहीं है, दुसरी तरफ विनम्रता एक ऐसा गुण है जो हरेक को आदरणीय बना देता है, लेकिन फिर भी अंहकार जोरों पर है जबकि विनम्रता का ग्राफ नीचे की तरफ ही लुढ़कता दिखाई देता है जिससे प्रेम, भाईचारा, दया इत्यादी खत्म होते जा रहे हैं, 

तो आईये इसी बात पर मंथन करते हैं कि व्यक्ति को विनम्रता दिखानी चाहिए या अंहकार में अपने आपको उंचा दिखाने का प्रयास करना चाहिए, मेरा मानना है कि विनम्रता एक ऐसा गुण है जिससे हारा हुआ भी जीता जा सकता है, 

 लेकिन संस्कार से जीता हुआ भी हारा जा सकता है अंहकार से फिर क्यों न हम सब अपने अंहकार को त्यागकर एक आरामदायक जीवन व्यतीत करें, इतिहास गवाही है जिस जिस ने भी अंहकार किया उसका पत्तन अवस्य हुआ, चाहे रावण हो, कौरव हों या कंस जिनके पास सबकुछ था लेकिन विनम्रता नहीं थी अपने अंहकार में ही सबकुछ लुटा दिया यहां तक की अपने वंश तक नष्ट कर दिये, 

दुसरी तरफ श्री रामचन्द्र जी क्या कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन उमकी विनम्रता के कारण उनका गुणगान व नाम सदैव सदैव चलता रहेगा इसलिए हर मानव को विनम्रता पूर्वक रहना चाहिए न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए, 

सच भी है, सादगी से बढ़कर कोई श्रंगार नहीं और विनम्रता से बढ़कर कोई व्यवहार नहीं, 


विनम्रता मनुष्य के व्यक्तितित्व में निखार लाती है तथा सफलता का कारण भी बनती है तथा इसके सम्मान का अलग ही महत्तव है, यह मन में कोमलता और व्यवहार में नम्रता लाने में कामयाबी   देती  है जिससे हर रिश्ते में मिठास आती है, 

दुसरी तरफ अंहकार से नम्रता, बुद्दी, विवेक, एकता इतयादि का नाश हो जाता है, 


लेकिन कुछ लोग विनम्रता को कायरता समझ लेते हैं और अपने घमंड में जीने का साहस करते हैं जिससे शान्ति, शक्ती तथा उर्जा नष्ट होनै 

लगती है और आखिरकार मानव अपने आप को अकेला महसूस करने में मजबूर हो जाता है, 

सिबाये पछताबे के कुछ हाथ नहीं आता, 

अन्त में यही कहुंगा विनम्र प्राणी हर जगह सम्मान पाते हैं और अंहकार प्राणी के अंदर दीमक की तरह कार्य करता है और इंसान को नष्ट करके ही छोड़ता है, अंहकार से नशे में धुत इंसान को दुसरों का ज्ञान, सलाह, अनुभव सब न के बराबर लगते हैं और वो अपने आप ही को महान समझकर कर्महीन बन जाता है, उसको कल्पना भी नहीं होती कि वो सही है या गल्त, 

इसलिए हमें विनम्रतापूर्वक कार्य करने चाहिए ताकी हमारा मान सम्मान बना रहै क्योंकी विनम्रता व्यक्ति का वो गहना है जिससे जीवन की शान्ति व सुख प्राप्त किया जा सकता है, सच भी है, 

"इतना छोटा कद रखिए की सभी आपके साथ बैठ सकें 

व इतना बड़ा मन रखिए कि जब आप खड़े हो जांए तो कोई न बैठा रहे"। 



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