अंगूठा छाप
अंगूठा छाप
नैना जी की शादी छोटी उम्र में हो गयी। नैना जी को पढ़ने का बहुत शौक है। ससुराल आई तो सास ने अपनी गृहस्थी देकर घर के कामों से मुक्ति पा लिया। बच्चों की जिम्मेदारी उठाते उठाते नैना जी अपने छोटे मोटे शौक को भूल गई। बच्चे बड़े हुये। नैना जी अपने बेटा -बेटी की परवरिश करने के बाद अपने पोता-पोती में उलझ गई।
एक दिन बेटे ने माँ से कागजात पर साइन करने को कहा। गाँव की नैना जी अनपढ़ महिला है। वह अपने अंगूठा से कागजात पर ठप्पा लगा दिया।उनकी पोती दादी माँ को अंगूठा से ठप्पा लगाते देख रही है। वह अपनी दादी माँ से पूछती है कि आप अपने अंगूठा से क्या कर रही हैं। तब
दादी माँ कहती ...बेटा मुझे पढ़ने नहीं आता। मैं अंगूठा से ठप्पा लगा रही थी। मुझे पढ़ना नहीं आता बेटा। आप मुझे पढ़ना सिखाओगे। तब नैना जी की पोती अपनी दादी माँ से कहती हैं कि... मैं आपको पढ़ना सिखाऊँगी। आप मुझसे पढ़ना सीखोगी। आप अंगूठा छाप नहीं लगाओगी। आप मेरी दादी माँ हो। मेरी प्यारी दादी माँ।
आपको मेरा "अंगूठा छाप" कहानी कैसी लगी। धन्यवाद।