अंधी दौड़

अंधी दौड़

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वह दिन काजल की ज़िन्दगी सबसे खूबसूरत दिन था, जब उसके बेटे मोहक का आई.आई.टी में चयन हो गया था। चारों ओर से बधाइयों का ताँता लग गया था। काजल बेहद ख़ुश थी और मोहक के भविष्य को लेकर आश्वस्त भी। पति की मृत्यु के पश्चात मोहक ही उसका एकमात्र सहारा था।


चार साल तो पलक झपकते ही बीत गये थे और मोहक बहुत अच्छे नम्बरों से इंजीनियरिंग पास कर एक प्रतिष्ठित बड़ी कम्पनी में नौकरी करने लगा था। काजल बहुत प्रसन्न थी क्योंकि वह सोचती थी कि अब उसके जीवन में दुख के काले बादल छँट गये हैं और सुख का सवेरा हो चुका है। अब कुछ समय में मोहक का विवाह करा देगी और फिर आराम से उसका जीवन कटेगा।


पर क्या सचमुच ऐसा था ? धीरे धीरे मोहक के भीतर अधिक से अधिक पैसे कमाने की लालसा जागृत हो गयी थी। वह पैसे कमाने की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका था। जल्द ही मोहक को कम्पनी की ओर से अमेरिका जाने का अवसर मिला था और वह काजल को अकेला छोड़ , विदेश रवाना हो गया था। फिर मोहक को अमेरिका ही रास आने लगा था और उसने वहीं बसने का निर्णय ले लिया था। काजल भी बस कभी कभार ही बेटे के पास जा पाती थी। बाद में मोहक ने वहीं किसी अमेरिकन लड़की से शादी भी कर ली थी और भारत से अपना नाता लगभग पूरा ही तोड़ लिया था।


बस यहाँ रह गई थी काजल , बिलकुल अकेली, अपने बेटे की बाट जोहती जो पैसों की अंधी दौड़ में उससे न केवल शरीर से बल्कि मन से भी बहुत दूर जा चुका था।


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