अमूल्य रिश्ते - एक लघु कहानी
अमूल्य रिश्ते - एक लघु कहानी
अवंतिका के हाथ से फोन छूट कर नीचे गिर गया। रवि की रिपोर्ट ने कन्फर्म कर दिया था कि उन्हें कोरोना हो गया है। वैसे हल्का हल्का बुखार और जुकाम होने पर घर के एक कमरे में आइसोलेटिड कर दिया था लेकिन डाक्टरों की एडवाइस से दोनों का आरटीपीसीआर टेस्ट कराया था, जिसकी रिपोर्ट अभी अभी फोन पर आयी थी। अवंतिका की नेगेटिव थी लेकिन रवि की पोजिटिव। उसके हाथ पैर फूल गये और वह सिर पकड़ कर वहीं रखी कुर्सी पर बैठ गयी।
डाक्टर को फोन किया तो उन्होंने तुरंत रवि को होस्पिटल भेजने के लिए एंबुलेंस भिजवाने की व्यवस्था कर दी। चारों ओर लगभग हर घर में यही महामारी फैली हुई थी। उसने जल्दी से रवि की तैयारी लगाई चूंकि उन्हें सुगर की बीमारी थी, इसलिए डाक्टर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे।
उसने कोई बच्चा था नहीं।
शीघ्र उसने अपने मायके भाईयों को और ससुराल फोन किया लेकिन वहां से इस महामारी में किसी अआना संभव नहीं था।
वह चुपचाप आंसु बहाते काम में लगी थी। रवि उसे हमेशा समझाते थे कि हमारे बच्चे नहीं हैं तो क्या हुआ, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी तो हमारे ही हैं। वह मना करती रही लेकिन रवि कहां माने थे।
स्कूल बंद हो गये थे लेकिन आन लाइन क्लास चल रहीं थी, वह बच्चे जो गरीब थे और जिनके पास क्ंम्यूटर और लैपटॉप नहीं थे, पढाई से बंचित हो रहे थे, उनकी पढा़ई का नुकसान न हो, वह रोज शाम को मास्क लगा कर और गरीब बच्चों को मास्क देकर दूर दूर बैठा कर पढाते रहे। उसने कितना मना किया था कि अपने ऊपर रिस्क लेकर कौन सा भला कर रहे हैं लेकिन रवि यही कहते थे कि - अवि, सोचो यदि हमारे बच्चे इस तरह पढाई में इसलिए पिछड़ते कि उनके पास साधन नहीं है तो?
उस समय वह निरूत्तर रह जाती लेकिन आज कौन सहायता करेगा?
एंबुलेंस का सायरन बज रहा था, वह रवि को दूर से आंखो में आंसू लिए जाते देखती रही। वह रोज होस्पिटल के दरवाजे तक जाती लेकिन अंदर जाना मना था। तीन दिन बाद बुरी खबर आ गयी कि रवि की तबीयत खराब हो रही है, दवा रिस्पोंड नहीं कर रहे हैं, अब प्लाजा थैरेपी करनी होगी, इसलिए ब्लड की जरूरत है और चूंकी प्रायवेट हास्पिटल था, इसलिए दो लाख रुपये तुरंत जमा करने थे।
अवंतिका ने अपने सभी परिचितों को फोन किया लेकिन सभी कुछ न कुछ बहाना करने लगे। आज वह अपने को कितना अपाहिज समझ रही थी। घर पर क्या बैंक में भी इतनी राशि नहीं थी, दुकानें बंद थी, उसने अपना सारा गोल्ड बेचने के लिए इकट्ठा कर लिया। कल रविवार था, सोमवार को वह बैंक में रखकर ऋण ले लेगी और कोई चारा नहीं था लेकिन खून का इंतजाम कहां से करे, वह स्वयं तो दे सकती थी लेकिन और इस महामारी में कहां से लाये।
रात हो रही थी, तभी कालबैल बजी। उसने उठकर दरवाजा खोला तो देखा कि अपने मुंह पर कपड़ा लपेटे कोई 12-13 साल का बच्चा खड़ा था।
--नमस्ते, मैम--सर पांच दिनों से पढ़ाने नहीं आये तो मैं पता करने--
उसका वाक्य पूरा होता कि अंवतिका का धैर्य टूट गया और चीखती हुई बोली--
--तुम लोंगो के कारण आज वह कोरोना से मर रहे हैं, आज उनकी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें खून और पैसे की जरूरत अब कौन देगा--तुम्हारी पढा़ई की चिंता थी उन्हें और अब - - वह रो पड़ी।
वह बच्चा सकपका कर एक पल खड़ा रहा और फिर बोला--मैम, सर को कुछ नहीं होगा--
वह चला गया, अंवतिका ने झटके से दरवाजा बंद किया और जाकर बिना कुछ खाये ही पलंग पर लेट गयी। सारी रात नींद नहीं आयी। सुबह जल्दी से हास्पिटल की ओर चल दी ताकि रुपये के लिए एक दिन की मोहलत मांग सके और अपना ब्लड दे सके।
रिसेपनिस्ट से उसने अपनी रिक्वेस्ट की तो उसने बताया कि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, कल रात लगभग सो-दो सो लोग झोपड़ पट्टी से आये थे और कोई हजार, कोई दो हजार करके लगभग ढाई लाख न केवल जमा कर गये बल्कि की लोग ब्लड के साथ प्लाजमा भी दे कर गये हैं। रात से डाक्टर उनकी सेवा में लगे हैं और अब उनका शरीर दवाओं को रिस्पोंड करने लगा है।
वह पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी। जहां खून के रिश्ते बेमानी हो गये थे, वहां मानवता के रिश्ते आज भी जीवित थे। उसे पहली बार गर्व हुआ अपने पति पर कि उन्होंने कुछ कमाया हो या न कमाया हो वह रिश्ते कमाये जिनका कोई मोल नहीं है। कोरोना में जहां अपने पराये हो गये थे, वहां पराये अपने बन कर सामने आये थे।