अमलतास के पेड़
अमलतास के पेड़


मुझे बचपन से ही सुंदर खुले घर में रहने का बड़ा शौक था। किस्मत से मिले भी खुले खुले घर जहां प्रकृति का साथ था। पर जिंदगी में यह कभी कल्पना नहीं की थी कि कभी दिल्ली के पॉश इलाके, सीआर पार्क, में रहने का अवसर भी मिलेगा। हम ठहरे यूपी के रहने वाले यहां घर के अंदर आंगन होना जरूरी था। आंगन और बरामदे के बिना घर की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। सभी मांगलिक कार्य आंगन में होते थे ।
दिल्ली आने पर पता चला फ्लैट के अंदर ही जिंदगी कटती है। बहुत सौभाग्य होता है उनका जिन्हें एक बड़ी बालकनी भी मिलती है। सौभाग्य है यह लग्जरी मुझे अपने फ्लैट में मिल, गई यानी मेरी बड़ी सी चौड़ी बालकनी ! बड़ी सी मेन रोड पर यह बालकनी खुलती थी जिसके नीचे दुकानें हैं। दुकानों पर पड़ी ग्रीन शीट इस बालकनी का प्रोजेक्शन है। जहां मैं पक्षियों को दाना पानी देती थी। ढेरों कबूतर, कौवे, एक जोड़ा गौरैया, गिलहरी आदि हर समय कूदते उछलते जैसे मेरे परिवार के ही सदस्य थे जो दोनों समय खाना मांगने के लिए बालकनी में झांका करते थे।
जो सबसे प्यारी चीज थी वह थी बालकनी को छूता हुआ अमलतास का पेड़। मई-जून की तपती दोपहरी में अपने पीले फूलों के साथ पूरे श्रृंगार के साथ खड़ा रहता था। पीले फूलों के अनंत झुमरू से सजा वह पेड़ मुझे खुशी से भर देता था। कभी गर्मी से झुलस रही धरती को शांत करने के लिए काले बादलों के साथ तेज आंधी आती है तो वातावरण पीले फूलों से भर जाता है। ऐसा लगता है कि हजारों तितलियां हवा में उड़ रही हैं। ऊपर काले बादलों का चांदोबा और नीचे असंख्य पीली तितलियां उड़ती दिखाई देती। आंधी के बाद जोड़ी काली सड़क अमलतास के पीले फूलों से ढक जाती मानो किसी ने पीला कालीन बिछा दिया हो। मेरे ड्राइंग रूम से हर समय यह अमलतास का पेड़ और और कलरव करते पक्षी दिखाई देते हैं । मेरे बहुत सारे सुख-दुख के साथी हैं अमलतास का पेड़ और मेरे घर का यह कोना ।