अकेले हम ,अकेले तुम
अकेले हम ,अकेले तुम
" हैलो-पूजा बेबी..."
पूजा-"यस ...पूजा बोल रही हूँ,आप कौन?"
दूसरी तरफ-"तुम्हारे चाहने वाले हैं...उफ्फ,क्या बोलती हो,कान में मिश्री सी घुल जाती है..,बचपन में बहुत मीठा खिलाया है आंटी ने..." उधर से एक सुरीली,मधुर हँसी की आवाज़ गूंजती है...
"आज कोई जोक नहीं सुनायोगी बेबी..."
"अच्छा बताएं...आप किस तरह का जोक सुनना पसंद करेंगे...वो वाला...या...(सोचती है)"
दूसरी तरफ से-वह,"तुम कुछ भी बोलो,बस अच्छा लगता है,बहुत अच्छा लगता है,बस मन करता है,तुम बोलती रहो और हम सुनते रहें,कयामत की रात तक.."
काफी लंबी बातचीत चलती रही,पहले एक,फिर दो,तीन,न जाने दिन भर में कितनी बातें करती थी पूजा..लोगों का दिल बहलाती थी और अपना और अपने परिवार का पेट पालती थी।
पूजा,एक पोस्ट ग्रेजुएट लड़की,सुन्दर,सुशील,खूब मजे से दिन कट रहे थे पर एक दिन उसके पिता की असामयिक मृत्यु से छोटे भाई बहिन और माँ का बोझ, उसके नाजुक कंधों पर आ गया,अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर,उसने काम देखना शुरू किया,जो भी काम करती,लोगों से शोषण का ही शिकार होती,काम पे काम छोड़ती रही आखिर मजबूरन यहां कॉल सेंटर में ऑनलाइन चैटिंग की जॉब मिल गई,इसमें पैसे भी ज्यादा थे और डायरेक्ट हैरसमेंट भी कम...बस रम गई थी यहीं...
हालांकि,कई बार,मन आता था कि फोन पटक दे,कई लोग,बहुत हद कर देते थे बातों में लेकिन जितना लम्बा फोन,उतने ज्यादा पैसे...वो मजबूरन लगी रहती थी और अब तो आदत पड़ चुकी थी ये सब करने की।आजकल,एक नया कस्टमर बना था,राधे नाम था उसका।
पूजा-"हाँ ,पूजा स्पीकिंग..."
राधे:"कैसी हो पूजा,आज बहुत देर में नम्बर लगा तुम्हारा...किसी से लम्बी बात कर रही थीं..."
पूजा-"बोलिये,अब तो आपके साथ हूँ,सर..."
राधे-"उफ्फ..कितनी बार कहा है,मुझे सर न बुलाया करो,बस राधे बोलो.."
पूजा:(हंसते हुए)"ओके राधे जी.."
राधे-"बस,सिर्फ राधे..."
पूजा:"ठीक है,आगे से ध्यान रखूंगी।"
राधे:"क्या हम मिल सकते हैं,पूजा"
पूजा:"सर..सॉरी,राधे,ये हमारे रूल्स में नहीं है,हम सिर्फ बात कर सकते हैं..."
राधे:"मैं ,उस मीटिंग के लिए आपको अलग से पैसे दूंगा,जितना आपके मालिक कहेंगे उतना।"
पूजा:"सॉरी सर,आप उन्ही से बात करें,इस बारे में..."
आज पूजा को बहुत दुख और आश्चर्य हो रहा था,जब उसके पिता की डेथ हुई थी,उसे लगा था कि गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नहीं शायद,उसे लोगों की बातें और गन्दी नज़रों का सामना करना पड़ रहा था लगातार,उसे रश्क होता था सभी अमीरजादों से,इनकी जिंदगी में कोई गम नहीं,सब कुछ तैय्यार मिल जाता है,पर जबसे इस चैटिंग के धंधे में आई थी,उसे लगा कि ये अमीरजादे कितने अकेले हैं,हर कोई बात करने के पैसे लुटाए पड़ रहे हैं यानि सब कितने अकेले हैं।
अगले हफ्ते,उसकी मालकिन,रेशमा जी ने उसे बताया कि उसकी मीटिंग फिक्स है उस राधे श्याम के संग..तीन से चार बजे तक की होटल पारिजात में...
एक पल को वो हकबका गई..ऐसा तो कोई तय नही था,मैं ये जॉब छोड़ दूंगी..
"अरे,गलत न समझो,वो तुमसे बात करना चाहता है बस..तुम्हें तगड़ा कमीशन मिलेगा इसका।"रेशमा ने समझाया।
पैसे की जरूरत के आगे वो भी मान गई।जब वो मिली,राधेश्याम से,वो दंग रह गई,वो अधेड़ उम्र का बड़ा शरीफ सा आदमी था,बहुत तमीज़ से उससे बातें करता रहा,जैसे ही उसका समय खत्म होने वाला था,राधेश्याम के चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आईं।
पूजा ने भावुक होकर पूछा:"आपके घर में कोई नहीं है क्या?"
राधेश्याम:"आज तो वक्त ख़त्म हो गया,जल्दी ही फिर मिलूंगा तब बताता हूँ।"
अब तो राधेश्याम,उससे बार बार मिलने लगे,एक अजीब सा बंधन बन गया था उनके बीच,पूजा को उसपर बहुत तरस आता कि ये सिर्फ बातचीत तो फोन पर भी कर सकते हैं फिर इतना पैसा क्यों देते हैं ऐसे मिलने के लिए।
वो कहते कि "तुम नहीं समझोगी,पैसे की मेरे पास कोई कमी नहीं है,मेरे पास कमी है तो किसी से बात करने की...जब से मेरी पत्नि की डेथ हुई है,मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं,मेरी बेटी शादी होकर विदेश चली गई,बहु बेटे को मेरे संग रहना पसंद नहीं...बहुत बड़ी कोठी में मैं बिल्कुल अकेला हूँ..."
"तो आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?" पूजा ने कहा।
"सब मुझसे नहीं,मेरे पैसे से शादी करना चाहते हैं बस,जब मेरी पत्नि थी,मैंने उसे कभी समय नहीं दिया,कमाने में लगा रहा,वो अकेली,उपेक्षित चली गई इस दुनिया से बहुत दूर,अब मैं अकेलापन भुगत रहा हूँ।"
पूजा भौचक्की सी देख रही थी कि इस दुनिया में क्या गरीब और क्या अमीर,सभी अकेले हैं,बिल्कुल अकेले।