Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय - पार्ट 14

अकाय - पार्ट 14

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दुष्यंत बाबू और उनके मित्र चिमटा बाबा के आश्रम में बरगद के पेड़ नीचे चबूतरे पर बैठकर अपने बुलावे का इंतजार कर रहे थे। उनके लिए यह अंदाजा लगाना कठिन था कि आज यहाँ कुछ ज्यादा भीड़ थी या वो लोग पहली बार यहाँ आए थे इसलिए उनको भीड़ कुछ ज्यादा लग रही थी। घर मे लगता है इस तरह की परेशानी से गुजानेवाले हम अकेला हैं लेकिन उस परेशानी के विशेषज्ञ के पास जाने पर भीड़ देखकर लगता है दुनिया के अधिकतर लोग उस बीमारी के शिकार हैं। 

उनके मित्र ने कहा ,देखो भाई किसी भी स्पेशलिस्ट के पास उस बीमारी के गंभीर मरीज ही मिलते हैं।वहाँ पहुँचने से पहले वो कितने छोटे बड़े डॉक्टर का चक्कर लगा चुके होते हैं। इस बात को स्पेशलिस्ट भी अच्छी तरह जानता है।यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति को भी उसके पास पेशेंट बता दो तो वह उसमे से कोई न कोई बीमारी ढूंढ निकालेगा जो उसकी विशेषज्ञता को दर्शाता है। इसिलिए किसी महान आत्मा ने कहा है - Specialist is a person who knows many thing about nothing.

स्पेशलिस्ट की परिभाषा सुनकर दुष्यंत बाबू के चेहरे पर मुस्कान चिकोटी काट कर चली गई । फिर से परेशानी ने डेरा जमा लिया। वो अपनी पत्नी के स्वास्थ को लेकर इतना परेशान हैं कि उनको अपना धन दौलत किसी काम नहीं आ रहा है। उनको यह महसूस हो रहा है पैसे से पूँजी बढ़ाई जा सकती है , सुविधा जुटाई जा सकती है लेकिन उसके उपभोग का सामर्थ्य जुटा पाना पैसे के बस में नहीं है। उन्होंने अपने मित्र से पूछा " तुमको क्या लगता है , अपना काम यहाँ बन जाएगा ?"

उनके मित्र ने कहा जब समाधान सीमित और अनिश्चित हो तो उपलब्ध विकल्प को सर्वोत्तम मानकर उसपर विश्वास करना शौक नहीं मजबूरी होती है। वैसे चिमटा बाबा बड़े नामचीन हैं। जिसके पीठ पर तीन चिमटा मार देते हैं उसको खड़े-खड़े प्रेतबाधा से मुक्ति मिल जाती है। यह सब मैंने सुना है। अब तो जो भी होना है वह सामने ही आएगा।

चिमटा बाबा हमेशा गेरुआ वस्त्र धारण करते है और गले में काले रंग का अंगवस्त्र होता है।तंत्र साधना के समय वही अंगवस्त्र उनकी पगड़ी बन जाता है। ललाट पर त्रिपुंड के ऊपर लाल टिका शोभायमान रहता है। उनके दाहिने हाथ मे एक चिमटा रहता है और बया हाथ काले रंग के टेकनी पर रखे रहते हैं। जो भी फरियादी उनके पास जाता है उससे वो कुछ भी नहीं पूछते हैं ।उससे सिर्फ उसके घर की मिट्टी मांगते हैं और उसको चुटकी में लेकर उसके बारे में सबकुछ बताते हैं। यदि पीड़ित व्यक्ति स्वयं उपस्थित हो तो उसके शरीर पर तीन चिमटा मारते हैं और उसको प्रेतबाधा से मुक्ति मिल जाती है। अधिकतर लोगों को वह अपने घर मे एक सप्ताह तक पंचगव्य का छिड़काव करने को कहते हैं। किसी को गाय को घास ,किसी को काले कुते को रोटी, किसी को पीपल में जल डालने को कहते हैं। कोई काम या तो सप्ताह में मंगलवार को करना पड़ता है या लगातार इकीस दिन।

खैर , दुष्यंत बाबु का केस स्पेशल हो गया था चिमटा बाबा के लिए तभी तो दरबार खत्म होने पर मिलने को बुलाया। सभी लोग जा चुके थे केवल उनका सेवादार वहाँ रह गया था। उनके आसान के सामने जल रही हवन कुंड से अग्नि शिखा नहीं निकल रही थी लेकिन कुंड में पड़ी लकड़ी की आग की लालिमा और धधक बरकरार थी। कुंड के बगल में एक पीतल का पात्र रखा हुआ था जिसमे लोगों द्वारा लायी गयी मिट्टी को देखने के बाद उनका चेला डालता जाता था।

दुष्यंत बाबू और उनके मित्र बड़ी उम्मीद लेकर यहाँ आए थे लेकिन भीड़ देखकर सशंकित थे कि इतने लोगों के बीच चिमटा बाबा उनकी समस्या को सुनेंगे और उसका समाधान निकालेंगे ? जब अकेले चिमटा बाबा के आसन के सामने बैठे तो विश्वास हो गया कि उनका अब कल्याण हो जाएगा। चिमटा बाबा ने अपने आसान के नीचे से दुष्यंत बाबू का लाया मिट्टी का पूड़ी निकाला। आँख बंद करके उसको चुटकी में लेकर ऐसे टटोल रहे थे जैसे उस धूल में से सोने का कण खोज रहे हों। लगभग पांच मिनट तक वातावरण निःशब्द था। वहाँ पर उपस्थित चार लोगों की केवल श्वास की ध्वनि ही सुनाई दे रही थी। चिमटा बाबा ने आँख खोला और दुष्यंत बाबू को हथेली आगे करने को कहा । फिर कुंड में से धधकती जली हुई लकड़ी का टुकड़ा चिमटे से उठाकर उनके हथेली पर रख दिया और उसके ऊपर उनके घर की मिट्टी को डाल दिया । दुष्यंत बाबू के शरीर मे कोई हरकत नहीं, कोई छटपटाहट नहीं ।लेकिन उनके मित्र को पसीने छूट रहे थे कि उसका हाथ जल जाएगा। फिर चिमटा बाबा ने कहा जोर से मुठी बंद कर लो। उसके बाद उन्होंने अपने चिमटा का अग्रभाग दुष्यंत बाबू के सर पर रख दिया। थोड़ी देर बाद उन्होंने उनके सर के कुछ बाल चिमटा से उखाड़ लिया ।

जलती लकड़ी का अंगारा दुष्यंत की मुठी में और बाबा का चिमटा उनके सर पर ,दोनों की आँखें बंद। बाबा के होठ हिलने के अतिरिक्त सबकुछ जैसे फोटोफ्रेम की तस्वीर हो । इस असह्य मौन के बाद बाबा ने बोलना शुरू किया। वो दुष्यंत बाबू के घर के बारे में ऐसे बता रहे थे जैसे वो वहाँ खड़ा होकर देख रहे हों। इन्होंने कहा कि गोशाला के बगल में जो कमरा बना है उसमे तुम्हारी पत्नी को जाने में डर लगता है।वहाँ अकेले वह दिन में भी नहीं जा सकती है। उसको देर रात को ऐसा लगता है कि बाउंड्री के अंदर कोई धातु का कलश लुढ़क रहा है।उन्होंने कई बार उस आवाज का पीछा किया और वह आवाज उस रुम में जाकर समाप्त हो जाती है। उनको सपने में अक्सर एक पांच फन वाला सांप दिखता है । उसके बाद उनकी तबियत कुछ ज्यादा खराब हो जाती है। वह अकारण रोने लगती है और उसको मालूम ही नहीं पड़ता कि क्यों रो रही है। घर से बाहर निकलने का सोंचकर ही उसकी घड़बड़ाहट बढ़ जाती है। जबसे आपने बगल का प्लॉट लेकर अपनी बाउंड्री में मिलाया है उनकी तकलीफ ज्यादा बढ़ी है।


दुष्यंत - बाबा इसका क्या कारण है ?


चिमटा बाबा - इसका मुख्य कारण यह है कि आपने वह जमीन उनके नाम से खरीदा है । जो भी उस जमीन का मालिक रहा है वह परेशान रहा है। उस जमीन का जो मालिक था उसकी अतृप्त आत्मा वहीं बैठी है और वह नहीं चाहती है कि कोई भी उसके दौलत पर कब्जा करे । उसने वहाँ बहुत बड़ा खजाना छुपाकर जमीन के अंदर रखा था। उसकी किसी दुर्घटना में अकाल मृत्यु हुई थी। लेकिन वह मानता है कि उस धन के लिए ही उसकी हत्या हुई। वह तप साधना से काफी ताकतवर हो गया है। उसकी क्या इच्छा है वह खुलकर नहीं बता रहा है। वह कह रहा है मुझसे मिलना है तो मेरे पास आवो।


दुष्यंत - बाबा मेरे परिवार को इस प्रकोप से बचा लीजिए । मैं वो जमीन किसी के भी नाम मुफ्त में कर दूँगा। लेकिन हमलोगों ने तो उस आत्मा का कुछ भी नहीं बिगाडा है। यदि मुझे इस प्रकार की समस्या का भान होता तो कभी भी यह जमीन नहीं खरीदता। मालूम नहीं मेरे किस जन्म का पाप आकर गले पड़ गया।


चिमटा बाबा - देखो , इसमे तुम्हारा दोष है भी और नहीं भी है। जो दोष है या होगा वह किसी पिछले जन्म का होगा जिसके परिणाम भुगतने का संयोग इस जन्म में बना है। प्रत्यक्षतः आप दोषी नहीं हैं । क्योंकि कोई भी जमीन खरीदना कोई गुनाह नहीं है।

अब तुम्हारी दूसरी बात पर आते हैं कि यह आत्मा आपके परिवार को क्यों सता रही है ? वह तुमको नहीं सता रहा है वह अपने स्वभाव का प्रदर्शन कर रहा है। आपने सोना का चैन और अंगूठी पहन रखा है । औरत सोना का बाली, कंगन ,झुमका आदि गहना पहनती है। इन सभी आभूषण का रूप , नाम और आकार अलग है लेकिन उसका मूल तत्व तो सोना ही है। सोना के स्वभाव में कोई अंतर नहीं पड़ता लेकिन आभूषण के रूप में उसका नाम और पहचान बदल जाता है। उसी प्रकार आत्मा का रूप भले बदल जाए लेकिन उसका स्वभाव नहीं बदलता है। आग का स्वभाव है जलाना तो वह हर उस चीज को जलाएगा जो उसके संपर्क में आएगा । लेकिन कौन कितना जल्दी जलेगा वह वस्तु के गुण पर निर्भर करता है। 


दुष्यंत - बाबा मुझे कुछ भी जानने समझने में दिलचस्पी नहीं है। आप केवल मेरे परिवार को इस बाधा से मुक्त कर दीजिए। मैं हर तरह से आपकी सेवा करने को तैयार हूँ। आपतक पहुँचने से पहले मैंने बहुत खाक छाना है।


चिमटा बाबा - मैं उम्मीद करता हूँ तुमको और भटकना नहीं पड़ेगा। तुमको मुझ पर विश्वास करना पड़ेगा और मेरा सहयोग करना पड़ेगा। यह परलौकिक दुनिया मे विश्वास कि बहुत अहमियत है और उसमे यदि श्रद्धा भी जुड़ी हो तो अति उत्तम । विश्वास का कोई पैमाना नहीं होता है लेकिन किसी भी कार्य की सफलता में उसका होना बहुत जरूरी होता है। जब आप ट्रेन में सफर करते हैं तो उसके ड्राइवर को नहीं जानते हैं लेकिन इस विश्वास के साथ यात्रा करते हैं कि वह कुशल होगा और रात को सोएगा नहीं या नशे में ट्रेन नहीं चलाएगा। लेकिन कभी भी आपके मन मे उस ट्रेन ड्राइवर के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं आता है जो आपको सकुशल आपके गंतव्य तक पहुँचाता है।


दुष्यंत - बाबा ,आपकी बात सही है लेकिन लोग कहते हैं कि आत्मा परमात्मा एक ही है। फिर बीच मे भूतात्मा और प्रेतात्मा कहाँ से आ जाती है और आम मानवीय को परेशानी में डालती है।

चिमटा बाबा - नाले नदी में मिलते हैं और नदीयां समंदर में जाकर विलीन हो जाती हैं। कोई भी ज्ञानी व्यक्ति समंदर के एक बूंद को लेकर यह नहीं बता सकता है कि यह बून्द गंगा का है या जमुना का। इसका मतलब यह हुआ कि समंदर में सबका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। या यों कह सकते हैं कि हर बून्द ही समंदर है। लेकिन उसके बावजूद भी सभी नदी नालों का स्वतंत्र अस्तित्व है और अपनी पृथक यात्रा है । प्रकाश सूक्ष्म फोटॉन से बना है लेकिन आप फोटॉन को नहीं देख सकते और प्रकाश के बिना तो आप कुछ देख ही नहीं सकते। विकल्प आपके पास है अंधेरे में फोटॉन खोजना है कि उजाले में अपनी मंजिल की तरफ बढ़ना है।

इसके बाद उन्होंने अपने चेला को बोला कि दुष्यंत बाबू के हाथ से वो सामग्री लेकर प्रेतात्मा रोधक सामग्री मिलाकर एक पोटली बना दे जो इनको अपने घर के मुख्य दरवाजे पर तबतक लटकाकर कर रखना है जबतक उनके गृहशांति का अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो जाए।

फिर चिमटा बाबा ने दुष्यंत बाबू को सवा महीने तक उनके घर मे कुछ अनुष्ठान करने को कहा जो उनकी पत्नी को करना है। उसके अगली अवमस्या को चिमटा बाबा स्वयं उनके घर आकर आगे की कार्यवाही को पूर्ण करेंगे।

उन्होंने यह आस्वाशन दिया कि आज के बाद से आपकी पत्नी को राहत मिलना शुरू हो जाएगा। फिर भी कोई समस्या हो तो मुझे फोन करो।फोन पर आप सिर्फ इतना बोलना की "मैं शकुंतला का दुष्यंत बोल रहा हूँ।"


क्रमशः ------------



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