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Arun Gode

Tragedy

3  

Arun Gode

Tragedy

अधूरी उड़ान

अधूरी उड़ान

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        एक बड़े से शहर में एक दलित परिवार रहता था। परिवार में माता-पिता के अलावा एक सबसे बड़ी लड़की थी। माता-पिता दोनों मजदूरी करके अपने परिवार को चला रहे थे। लड़की पढ़ने में अच्छी थी। संविधान ने दिए शिक्षा के अधिकार के तहत उस लड़की को सरकारी नियमानुसार छात्रवृत्ती भी मिलती थी। स्कूल में पढ़ाई का खर्चा ना के बराबर था। वो माता-पिता से जिद्द करके पढ़ाई पुरी कर रही थी। उसके भाई-बहन भी उस के नकशे –कदम पर चल रहे थे। वो पढ़ते-पढ़ते अपने मंजिल के करीब याने स्नातक के अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी। उसी के बिरादरी का एक लड़का उसका मित्र था। दोनों शुरु से ही एक साथ पढ़ रहे थे। दोनों थोड़े अंतराल पर एक ही बस्ती में रहा करते थे। दोनों में पहिले नजरवाला प्यार हुआ था। लेकिन लड़के के परिवार की भी हालत लड़की के परिवार से भी गई-गुजरी थी। इसलिए उसने पढ़ाई के साथ स्पर्धा परीक्षा में भी बैठना शुरु किया था। उसके प्रयासों को सफलता मिल गई थी। उसे केंद्र सरकार के कार्यालय में श्रेणी “सी “ में नौकरी दूसरे प्रांत में मिली थी। उसने अपनी पढ़ाई बीच में ही रोक दी थी। वो नौकरी करने चला गया था। लड़की ने माता-पिता के विरोध के बावजूद अपनी स्नातक की पदवी प्राप्त कर ली थी। उसके हठ ने उसे स्नातक की पदवी दिला दी थी। अभी उसके पिताने, उम्र में कुछ ज्यादा, लड़के का प्रस्ताव लड़की के शादी लिए लाया था। वो लिखी-पढ़ी होने के कारण उसने उस रिश्ते का डटकर विरोध किया था। उसके मात-पिता अंधेरे में तिर चलने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन वे उस में सफल नहीं हो सके थे। वो लड़की अभी अपने मात-पिता के लिए सरदर्द बन चुकी थी। 

    प्रेमी लड़का अपने माता-पिता को मिलने अकसर छुट्टियों पर आया करता था। जब कभी वो आता था। वे दोनों विचार-विमर्श और भविष्य की बातें किया करते थे। तभी लड़के ने उस बार उसके प्रेयसी का उड़ा हुआ रंग देखा था। अभी वो बहुत मायूस और परेशान नजर आई थी। उसकी परेशानी देखकर लड़का भी परेशान हो गया था। अभी भी उन दोनों में प्यार जीवित था। वे दोनों भी एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। परिस्थिति का आकलन करने बाद , दोनों ने रजिस्टर शादी करने का निर्णय लिया था। उन दोनों ने परिवार की असहमति होने के बावजूद भी शादी कर ली थी। दोनों उसके तैनाती के स्थान पर अपना गृह राज्य छोड़ कर दूसरे राज्य में अपना संसार बसाने चले गये थे। 

     दोनों मियां-बीबी बड़े शान से अपने मन-मर्जी की जिंदगी जी रहे थे। उन्हें दो संतान प्रकृति ने भेट दी थी। सबसे बड़ा लड़का था। अभी लड़का स्कूल जाने लगा था। महिला शुरु से ही बहुत महत्वाकांक्षी थी। उसका सपना था कि वो शिक्षिका का प्रक्षिशन लेकर अपने जीवन में एक आदर्श शिक्षिका बने !। लेकिन परिस्थितियां अनुकूल न होने से वो कुछ कर नहीं सकी थी। उसका पति भी इसके लिए स्वयं को जिम्मेदार मानता था। दोनों ने फैसला लिया कि वो अपने शहर में जाकर अपना बि.एड. करेगी !। उसके लिए उसने अपने प्रयास तेज कर दिए थे। इस वक्त भाग्य ने उसका साथ दिया था। उसका बि.एड. में दाखिला भी हो चुका था। उसके मात-पिता ने भी उसे माफ कर दिया था। उन्हें अपनी गलती समझ आ गई थी। बहु अपने सांस-ससुर के पास बच्चों लेकर रहने लगी थी। ऊपरवाला जब कभी देता हैं। तो वो छप्पर फाड़ के ही लुटाता हैं। इसी दौरान उसके पति को भी वही स्थानांतर मिल गया था। हिम्मत करनेवालों का साथ हमेशा कुदरत देता हैं। अभी उनकी पाँचों उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में था। पूरा परिवार खुश था। बहु का परिणाम भी आया था। उस में वो सफल हो गई थी। उसने जॉब के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए थे।

    दोनों ने अपना एक छोटा सा पक्का मकान बनाने का सपना देखा था। लड़का गुदड़ी का लाल था। उसने नौकरी लगने के बाद पैसा जोड़ -जोड़ के एक मकान बनाने के लिए एक अविकसित गृह निर्माण संस्था में प्लॉट लिया था। कर्जा लेने के लिए राष्ट्रियकृत बैंक के गृह निर्माण योजना में धन निवेश करना आरंभ कर दिया था। अभी उसने उस योजना पर अमल करना आरंभ कर दिया था। उसके लिए जहाँ से कर्जा मिल सकता था। ऐसे सभी स्त्रोंतो को टटोलना शुरु कर दिया था। फिर भी बड़े मुश्किल से पहिला आधा –अधूरा माला ही बन पाया था। आसमान से गिरा और खजूर में लटका ऐसी उसकी हालत हो चुकी थी। पत्नी को भी अभी तक कोई जॉब नहीं मिला था। वो अकसर सोच में डुबा रहता था।।

     उसी साल कार्यालय के कुछ सहकर्मियों ने होली के उपलक्ष्य में शहर से दूर एक पार्टी का आयोजन किया था। उस पार्टी में उसका पति भी गया था। वो वहाँ अपने-आपको काबू में नहीं रख पाया था। उसने अपने क्षमता से ज्यादा शराब पी ली थी। पार्टी काफी रात तक चली थी। सभी मित्रों को नशा हो गया था। किसी को किसी की सुध नहीं थी। ऐसे हालात में वो अपनी स्कूटर गाड़ी लेकर अन्य मित्रों के साथ निकल पड़ी था। धीरे-धीर सभी अपने-अपने घरों के रास्ते पकड़ चुके थे। उस समय शहर में कई जगहों पर सड़कों का काम चल रहा था। एक पुलिया के पास एक अनजान ट्रक ने उसे अंधेरे में धड़क मारी थी। और वो वाहन चालक छुटकारा पाने के उद्देश्य से वहाँ से तेजी से निकल पड़ा था। रात का समय होने के कारण उधर कोई भी नहीं था। सर को गहरी चोट लगने के कारण वो बेहोशी के अवस्था में वही कई घंटे पड़ा रहा था। जब पोलिस पेट्रोलिंग कर रही थी। तब उन्होंने उसे देखा था। उसे बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वो चोट लगने के कारण पुरी तरह कोमा में चला गया था। उसका काफी लंबा इलाज चला था। लग-भग एक साल बीत गया था। अभी नियमानुसार कार्यालय से मिलने वाली सभी सुविधाएं बंद होने लगी थी। जमा छुट्टियाँ भी खत्म हो गई थी। तनख्वाह मिलना भी बंद हो गया था। इलाज में, घर में जो जमा आकस्मिक राशी थी। वो भी खत्म हो चुकी थी। अभी तो परिवार के खर्चे के लाले पड़ने शुरु हो गये थे। कुछ माह बाद उसके पति ने अंतिम सांस कोमा में ही ली थी। कार्यालय और कार्यालय के सभी सहकर्मियों ने उनकी शारीरिक और आर्थिक मदद की थी। लेकिन खर्चा इतना जादा हो चुका था कि उसकी पुर्ती करना संभव नहीं था। अंत में उसके पत्नी को अनुकंपा के आधार पर कार्यालय ने लिपिक पद पर नियुक्ति दी थी।

     अभी उसने, धीरे-धीर अपने आपको उस भयानक हादसे से उबारना शुरू कर दिया था। अपने जीवन में उसने देखा था कि शिक्षा का जीवन में कितना महत्व पूर्ण स्थान हैं। शिक्षा बेहतर जीवन-शैली के लिए शेरनी के दूध का काम करता हैं। उसने अपने बच्चों के पढ़ाई में ध्यान दिया था। पति द्वारा बनाये उसी मकान में जिस परिस्थिति में था। उसा में रहना शुरु कर दिया था। धीरे-धीरे कर्जा भी उतारना शुरु किया था। दोनों बच्चे पढ़ -लिखकर इंजीनियर बन गये थे। उन्हें अच्छे कंपनी में अच्छा हौदा भी मिल चुका था। अभी उसने अपने पति के आशियाने को सुव्यवस्थित करना आरंभ किया था। पति के अधूरे सपने को कार्य रुप दिया था। आज उस मकान में जिस ने उसकी आधारशिला रखी थी। वो इस दुनिया में नहीं था। वो अपने पति का जन्म-जन्मों साथ तो नहीं निभा पाई थी। लेकिन उसकी मौजूदगी के लिए उसकी हार पहनी एक तस्वीर उस मकान पर ऐसे जगह लगाई थी कि उसके आते-जाते दर्शन होते रहे। उसे देखकर शायद वो जिंदा होने का एहसास उसे होता होगा ।



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