अधूरे सपने
अधूरे सपने
बाहर मूसलाधर बारिश को एकटक निहारती सुगंधा न जाने कौन से ख्यालों में खोई हुई थी, या उन बारिश के बूंदों में अपने सपनों को धुलते देख रही थी। और शायद साथ ही साथ उन सपनों को बचाने का प्रयास कर रही थी जो प्रत्येक लड़की अपने शादी के पहले संजोती है। और न जाने वह कब टूट कर बिखर जाता है। आज वह ख्यालों के सहारे उस समय में पहुंच गई जब उसके पिता बनारस जा रहे थे और पिता के पूछने पर की
"मेरी लाडली को क्या चाहिए", तो सुगंधा ने बड़े खुश होकर कहा था "एक चलने वाला गुड्डा ले आइएगा" और पिताजी ने पूछा "तुम अब भी गुड्डा से खेलोगी" लेकिन पिता जी सच में गुड्डा ले आए।
सुगंधा एक बड़े घर की बेटी थी, लेकिन उसमे थोड़ा भी घमंड नहीं था। उसकी शादी बड़े ही धूमधाम से की गई लेकिन लड़का ढूंढने में कठिनाई नहीं हुई। एक दिन अचानक उसके पिता [सूर्यनारायण ] अपने काम से बनारस गए हुए थे कि, उनके मित्र ने बताया कि यहाँ से दस किलोमीटर की दूरी पर एक लड़का है जो अभी -अभी इंजिनियर बना है परिवार में पिता शिक्षक हैं बहुत हीं संस्कारी परिवार है। पहले सुगंधा के पिता सोच में पड़ गए, इतने लाड प्यार से पली बढ़ी मेरी बेटी क्या इतने बड़े परिवार का बोझ उठा पाएगी आमदनी का स्रोत नहीं मात्र है लेकिन उनके मित्र [देवजी बाबू] ने कहा
"इतना अच्छा लड़का फिर नहीं मिलेगा फिर लड़का इंजीनियर है और धीरे धीरे सभी अपने रास्ते हो जाएँगे सोच में मत पड़ो चलो बनारस आ ही गए हो तो देख सुनकर पसंद आ जाए तो सगुन कर देंगे और नहीं पसंद आए तो कौन -सा जबरदस्ती है।"
फिर लड़के के पिता [कंठ जी ] से मिलने पर सूर्यनारायण बाबू अति प्रसन्न दिख रहे थे और बिना परिवार से विचार किए शादी ठीक हो गई और बड़ी धूमधाम से शादी भी हो गई ससुराल आते हीं उसने परिवार की सारी जिम्मेदारी उठा ली एक आदर्श बहू की तरह बड़ों की सेवा और छोटे -छोटे बच्चों से प्यार लेकिन जेठ- जेठानी का व्यवहार बहुत दुखदायी था, सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे दिन भर के काम के बाद जब पति [गुड्डा ] घर आते तब भाभी रूपा बोलना शुरू करती।
तब माँ [ मालती] भी बोलना शुरू कर देती थी, "देखो बेटा सुगंधा को बोल दो खर्च काबू से करे बहुत खर्च करती है ऐसे में परिवार सड़क पर आ जाएगा। " गुड्डा ने कहा "समझा दूँगा माँ काम भी तो वही करती है न",
यह बात सुनते ही भाभी जोर –जोर से बोलने लगी "वाह काम तो सिर्फ आप दोनों ही करते हैं हमलोग तो मुफ्त की रोटी तोड़ते हैं" पत्नी की आवाज़ सुनकर भैया भूपेन्द्र भी आ गए, यह देखते ही गुड्डा सिर झुकाए अपने कमरे में चला गया। अपने पति की स्थिति देखकर उसका मन आहत हुआ लेकिन पति के कहने पर वह बहुत होशियारी से घर चलाने लगी उसके इस व्यवहार से ससुर [कंठ जी ] बहुत खुश थे लेकिन अब सुगंधा की परेशानी और बढ़ गई। कभी सास और कभी जेठानी का प्यार, तो कभी सात -सात दिन बीत जाते थे कोई बात भी नहीं करता था।
एक दिन सुगंधा सब्जी बना रही थी कि उसकी सास ने कहा "जा बेटा आज बहुत गर्मी है थोड़ा हवा लगाकर आ जाओ"
सुगंधा बोली "माँ खाना बन गया है मैं आ रही हूँ" सासु माँ ने बड़े प्यार से कहा,
"माँ की बात नहीं मानेगी" आज वह अचंभित थी लेकिन न जाने अभी मालती के रूप में अपनी माँ को सामने देख रही थी, लेकिन यह क्या हुआ ससुर जी जैसे एक निवाला मुख में लिए की आव देखा न ताव चिल्लाना शुरू कर दिए
"किसने खाना पकाया है किसी को काम में मन नहीं लगता है" सुगंधा को डाँटते देखकर सासु माँ और जेठानी के लिए जश्न हो गया था। अब तो यह रोज़ की कहानी हो गई थी एक दिन कंठ जी ने गुड्डा को बुला कर कह दिए," इसका भी काम मन नहीं लगता है थोड़ा समझा देना"
गुड्डा हाँ में सिर हिलाते हुए अपनी पत्नी सुगंधा को समझाने लगा। उसने जब यह सुना तब बोल पड़ी "आप तो सब जानते हैं मैं दिन –रात अपने इस परिवार के लिए मरती हूँ अब तो मैने सिलाई का काम भी शुरू कर दिया है कि मेरे अपनों को दुख नहीं हो और आप भी।"
गुड्डा ने कहा "मैं नहीं जानता हूँ मुझे मत बताओ" सुगंधा चुपचाप अपने कमरे से निकल कर कुर्सी पर जा बैठी और बारिश में खो गई उसका ख्याल तब टूटी जब दूधवाले ने दरवाज़े को ज़ोर से पिटा और कहा "बेटी दूध ले लो" अब बारिश भी समाप्त हो चुकी थी। उसके साथ उसके सपने भी, उसने अपने पिता को याद करके बस इतना ही बोली "सही में पिता जी आप मेरे लिए चलने वाला गुड्डा ही ले आए" और अब वह जीवन को समझ चुकी थी आदर्श बहू बनकर झूठ को बर्दाश्त करना सही नहीं है।
