Twinckle Adwani

Drama Tragedy

0.7  

Twinckle Adwani

Drama Tragedy

अधूरे प्यार की सच्ची कहानी

अधूरे प्यार की सच्ची कहानी

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हॉल में घुसते ही एक मधुर आवाज सुनाई दी। लगा सी डी चल रही है मगर नहीं, कोई गा रही थी। संस्कृत के शब्दों का शुद्ध उच्चारण आवाज में वो मधुरता थी जो अपनी ओर खींचा जा रही थीं उस भीड़ में मेरी कोई बात उससे नहीं हो पाई।

फिर जब मैं अगले गुरुवार मिली तब गुरु पूजा हो रही थी। उनकी आवाज में इतनी मिठास है कि लगा सुनते जाओ गुरु मंत्र को इतने भाव से कह रही थी लगा साक्षात गुरु जी आ जाएंगे। सच में ईश्वर गुरु हमारे भाव ही तो देखते हैं। उसमें भाव की शुद्धता थी। सत्संग के बाद उन्होंने मुझे प्रसाद दिया। बातों-बातों में मैंने उनका नंबर लिया। ना जाने क्यों उनके साथ अपनापन सा लग रहा था।

इस तरह कई बार सत्संग में हमारी मुलाकात हुई। फिर हमारी दोस्ती भी हो गई। वह मेरे लिए एक रोल मॉडल है। मैंने सुना है कि महिला का मतलब एक सहनशील, साहसी धैर्यवान प्यार करने वाली औरत, मगर कभी-कभी लगता है मेरे अंदर इतनी सहनशीलता नहीं, हर गलत बात का विरोध करना मेरी आदत सी है। मेरे अंदर एक क्रांतिकारी विचार से हैं जो कभी कभी मुझे गलत साबित करते हैं।

मगर विजया इतना सहने के बाद भी मुस्कुराती है। सेवा करती है, सच में कई बार मन में मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करती हूँ। लेकिन कुछ महीनों से मैं लोगों को समझने की कोशिश कर रही हूँ तो लगता है जीवन व संघर्ष हमेशा साथ-साथ है। हर महिला कहीं ना कहीं दबा दी जाती है। खैर मैं बात कर रही हूँ अपनी मित्र विजया कि जो हमेशा हँसती है।

न जाने कितने गम दबाए, कहते हैं जब हम निस्वार्थ होकर सेवा करते हैं, गुरु के पथ पर चलते हैं तो हमारे अंदर एक अद्भुत क्षमता आ जाती है जो मैंने कई बार विजया में महसूस की, लेकिन उसे कभी किसी से उम्मीद ही नहीं, वह लोगों का सहारा बनती जा रही है। सच हर महिला में कितने अद्भुत गुन व सृजन क्षमता होती है फिर भी कई बार सम्मान और महत्व नहीं दिया जाता। क्यों, इस क्यों का जवाब शायद आप कहानी पढ़ कर भी ना दे मगर क्यों ?

एक आम लड़कियों की तरह ही उसकी भी परवरिश हुई। तीन बहनें, एक भाई साउथ इंडियन फैमिली घर के काम व जिम्मेदारियों को वह खुशी से निभाती थी। परिवार बड़ा ही धार्मिक था। पारंपरिक रीति रिवाज से बंधा था। आय सामान्य थी इसलिए कभी-कभी अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता था। मां तो संस्कारों की देवी व साईं भक्त थी। अपनी स्कूली शिक्षा परिवार के साथ रहकर पूरी की मगर आगे आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाने का सोचा मगर पिता की तबियत अक्सर खराब रहती थी इसलिए वहीं रहकर ग्रेजुएशन की। उनकी तबीयत बहुत खराब रहती थी। उनकी सेवा को अपनी जिम्मेदारी मानते हुए अपना समय परिवार को ही देती थी फिर भी पिताजी अपना भरा पूरा परिवार छोड़कर दुनिया से जल्दी अलविदा कह गए।

परिवार की स्थिति खराब हो चली थी। भाई-बहनों की मेहनत से सामान्य हो गई मगर पढ़ने की ललक विजया में थी जिसके चलते आगे की पढ़ाई के लिए संस्कृत कॉलेज साउथ गई। वहां से वापस आई। उसकी नौकरी के अच्छे स्कूल में लगी। घर में सभी अपने जीवन में व्यस्त हो गए। भाई की शादी हो गई, बहनों की नौकरी लग गई

इसी बीच विजया.... था उसे ईश्वर पर अटूट विश्वास था वह नियमित रूप से साईं दरबार जाती थी। उसकी मुलाकात विनोद से हुई। अच्छी खासी दोस्ती हो गई, उनकी फैमिली भी वहां आती थी। साईं के बड़े भक्त थे। विजया साउथ इंडियन और वे लोग ब्राह्मण।

अपनेपन का सिलसिला बढ़ने लगा। विनोद, विजया से शादी करना चाहता था। जब विजया ने यह बात घर में कहीं तो घर वाले नहीं माने क्योंकि जात-पात भी एक बड़ा मुद्दा है। समाज को कहने के लिए, उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार था घर वालों को एक ही डर था आगे जाकर वह विजया को दबाए नहीं मगर प्यार अंधा होता है सच में, वो सब का विरोध करके आगे बढ़ गई। धीरे-धीरे परिवार ने भी स्वीकार कर लिया मगर विनोद का परिवार हमेशा उच्च कोटि के ब्राह्मण है हम, बात-बात में कहते थे। कई बार तो विजया के हाथ का खाना भी नहीं खाते थे। कभी-कभी विजया को मां की बात याद आती थी।

काफी संघर्ष के बाद परिवार ने स्वीकार कर लिया हां मगर, एक जात पात वाली लकीर तो थी। विजया ने कभी कोई कमी नहीं की परिवार की सेवा व अपनेपन में।

यूँ ही 2 साल निकल गए। जीवन में प्लस माइनस चलता रहा। इस बीच प्रेग्नेंट हो गई। घर में सब खुश थे मगर पति-पत्नी के बीच एक अहम भाव था। कभी खुलकर बात नहीं करते थे। पर विनोद ने हुकुम सुना दिया। अपनी नौकरी छोड़ दे, बच्चा आने वाला है, उसका ध्यान करना ज्यादा जरूरी है। विजया दद्व में थी। फिर भी उसने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी एक टीचर होने के नाते वह चाहती थी कि बीच में नौकरी ना छोड़े। विनोद के कहने पर छोड़ दी।

विनोद में कई बार अपनापन नहीं लगता था। खोया-खोया चुप-चुप रहता था। जितनी बात करो उसका ही जवाब देता था तो विजया ने शादी से पहले भी कई बार महसूस किया मगर कुछ बदलाव शादी के बाद आते हैं। लेकिन नहीं, हम लोगों को तो नहीं बदल पाते परिस्थितियां ही बदल पाए।

उसे डॉक्टर के पास भी अकेले ही जाना पड़ता था। मुझे ऑफिस का काम है तुम जाओ। ऐसा रूखापन, ऐसे समय में खटकता था। इस बीच विजया की तबीयत बहुत खराब थी कि वह उठ भी नहीं सकती थी। उसे पहले ही ......था फिर हिमोग्लोबिन कम होना भी कई परेशानियां होती जा रही थी। फिर भी 9 महीने परिवार के सहयोग से निकल गए। उसे एक प्यारी सी बेटी हुई जिसे कुछ दिनों हॉस्पिटल में रखा गया। उसकी तबियत ज्यादा खराब हो गई तो बच गई मगर 3 दिन से प्यारी बच्ची की जान न बच सकी।

टूट जाती है एक मां जब उसके बच्चे को कुछ होता है और विजया की स्थिति तो ऐसी थी जिसमें उसने ने बच्चे को जी भर के देखा ना प्यार कर पाई।

उससे मिलने हॉस्पिटल में कई लोग आते थे उसे सहानुभूति देते कुछ हौसला बढ़ाते हैं। विनोद की बेस्ट फ्रेंड सुजाता भी उससे मिलने आई थी।

उदासी व दर्द के साथ वह घर आ गई। कुछ दिनों हॉस्पिटल में रहकर वह और अकेली सी हो गई। विनोद ऑफिस चला जाता। ऐसे समय में घर में नौकरानी के अलावा कोई साथ ना था, फिर भी उसका ईश्वर पर विश्वास उसे शक्ति देता था। कुछ समय बाद सामान्य तो हो गई मगर फिर भी दिल से वह प्यार भरे लम्हे माँ कभी नहीं भूलती जब पहली बार वह बच्चे को गोद में उठाती हैं। उसे वह बार-बार याद आते थे।

किसी तरह तीन चार महीने हो गए। वह सामान्य होने लगी थी। एक दिन विनोद ने कहा मैं ऑफिस के काम से बाहर जा रहा हूं। बार-बार फोन मत करना। उसे लगा उच्च अधिकारी है, सच में बार-बार घर का फोन हो तो काम में परेशानी होती है इसलिए कह रहा है। उसने 3 दिन तक कोई बातचीत नहीं की लेकिन आने के बाद ही वह सामान्य नहीं था। किसी बात का सही ढंग से जवाब ही नहीं देता था। एक दिन अचानक विजय को उसी कपड़ों से कुछ कागज मिले। एक महिला के साथ 3 दिन किसी जगह रुका था मगर उसके साथकौन ? कब से ... हजार सवाल उसके मन में थे। वह कोई और नहीं उसकी बेस्ट फ्रेंड सुजाता थी।

अब तो हद हो गई। एक तो मैंने तलाकशुदा पर विश्वास करके शादी की, अपने परिवार का विरोध करके तुम्हें चुना। मेरा विश्वास तोड़ा, बहुत बातें कही विनोद से। सुजाता के घर भी गई। उसका एक बच्चा था, शादीशुदा थी। वह क्या कर रही है। क्यों कर रही हो, सुजाता के परिवार में गई, उसके पति को बातें बताई, उसके रिश्तों में भी दरारे आने लगी।

विनोद से कई झगड़े हुए, चीखती-चिल्लाती मगर विनोद कुछ नहीं कहता। जाने क्या रिश्ता था क्यों था।

परिवार वालों ने विनोद को बहुत सुनाया। तुम शादी अपनी मर्जी से किए अब इस रिश्ते को तो निभाओ। पहली शादी हमारी मर्जी से थी तो वह गलत थी। अब क्या परेशानी है। कई दिनों तक झगड़ा चला। दिलों की दूरियां बढ़ती गई। वे एक घर में थे मगर एक दूसरे के मन में न थे। कई महीनों तक खामोशी थी।

विजया को लगता था- मैं क्यों छोड़ दूं मैंने तो सब के खिलाफ शादी की है, मैं क्यों विनोद को छोड़ दूं, मैंने तो प्यार किया है मगर उसका प्यार इतना अधूरा क्यों। कई सवाल थे मगर जवाब नहीं थे। धीरे-धीरे ही सही उसने दूरिया मिटाने की कोशिश की। कभी मन से कभी तन से।

इस बीच विजया की तबियत खराब हुई। बाल धीरे-धीरे कम हो रहे थे। वह कहीं जाती तो लोग हँसते, पीछे मुड़कर देखते। एक बार मॉल गई थी, वहां बिलिंग करवा रही थी, सिर पर बाल नहीं थे, कुछ बच्चे पीछे मुड़-मुड़ कर देख रहे थे, जोऱ-जोर से हँसने लगे। उसके बाद विनोद और वह कभी साथ कहीं नहीं गए। कई साल हो गए। वह हर जगह अकेले ही जाती। विनोद को शर्मिंदगी महसूस हुई मगर विजया को क्या महसूस हुआ शायद कोई नहीं समझ पाए।

वह विग लगाने लगी। इन्हीं परेशानी, छोटी-मोटी उलझनों के बीच जीवन के कुछ साल निकलते गए। ईश्वर ने फिर एक तोहफा दिया। पहले से ज्यादा वह अब अपना ध्यान रखती थी। आखिर एक नए मेहमान का मुझे बेसब्री से इंतजार था। उम्मीद थी विनोद में कुछ तो बदलाव आएगा मगर वह गलत थी। विनोद एक बहुत अच्छे पिता है, बेटे हैं मगर पति नहीं बनना चाहते हैं या यूं कहे उन्हें कोई बात कहने तारीफ करने की आदत नहीं, हां कई बार टोकते हैं।

तुम्हें यह नहीं आता, तुम्हें वो नहीं आता, कोई काम परफेक्ट नहीं करती, ना जाने क्या-क्या, मगर विजया तो हर काम, रिश्ता दिल से निभाती मगर फिर भी विनोद का स्वभाव रूखा है बेटा भी कई बार कहने लगा है, माँ आप यह नहीं करो मां आप वो नहीं करो।

जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए मगर ईश्वर पर उसका अटूट विश्वास कभी कम नहीं हुआ। इस बीच जुड़ गई आर्ट ऑफ लिविंग संस्था में, जहाँ विभिन्न कोर्स किए मगर कुछ समय तक छोड़ दिए। फिर जब लगातार किए तो उसे उसके होने का एहसास होने लगा। वह जीवन को यूं ही गंवाना नहीं चाहती। कई सेवा काम से जुड़कर आगे बढ़ रही है अब वह। मन में अलग सुकून है, शांति है, मगर उम्मीद नहीं।

उसे बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है, लोगों को जगाने की, ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने की, वही कर रही है और जीवन में ढलती शाम व आखिरी साँस तक करना चाहती है।

विनोद का अब किसी से रिश्ता है या नहीं वह नहीं जानती मगर उसका ईश्वर से गहरा रिश्ता है। वह अब अपनी बीमारी व विनोद को स्वीकार कर चुकी है, सहज है। बहुत खुश है, कृतज्ञ है, गुरु के प्रति। कभी-कभी लगता है परेशानियों को हम पकड़ लेते हैं, दुखी रहते हैं, उन्हें छोड़ दे तो शायद जीवन सरल हो जाए। विजया ने अपने जीवन में विजय प्राप्त कर ली।


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