अधूरा इश्क- अनोखी शर्त
अधूरा इश्क- अनोखी शर्त
रिधिमा आज बहुत खुश थी, इतने सालों की मेहनत जो रंग आयी थी। अपने पिता से किया हुआ वादा उसने पूरा कर लिया था। वह शर्त जिसके कारण उसका प्रेम बहुत दिनों तक दूर रहा, आज उसे मिलने वाली थी रिधिमा। जिंदगी भी अजीब है जैसे हम सोचते है ठीक उसी के विपरीत चलती है जीवन की गाड़ी।
रिधिमा खुशी को मना भी न सकी कि अचानक एक अनजान नंबर से कॉल आया और सूचना मिली की पापा अस्पताल में भर्ती है। यह सुन वह पागलों की तरह दौड़ी - दौ़ड़ी अस्पताल आ पहुँची। पिता को इस हालत में देखकर वह बिफरकर रो पड़ी। उसकी माँ और भाई उसे संभालने लगे और धीरज देने लगे। ऑपरेशन के वक्त बेटी के रिजल्ट की ही चिंता उन्हें थी, इस बात की पुष्टि डॉक्टर ने की।
मोहनलाल को जैसे ही होश आया तो रिधिमा उनके पास जाकर अपने ऑंसूंओं को रोकते हुए कहने लगी, पापा ये सब क्या हुआ?
रिधु, तुम यह छोड़ो तुम्हारा रिजल्ट का क्या हुआ? तुम्हारे रिजल्ट की चिंता मन से जाती नहीं.. मोहनलाल बोले।
पापा, मैं पास हो गई। आपका सपना पूरा हुआ.. सुख - दुःख के भाव चेहरे पर लाते हुए रिधिमा बोली।
मेरी बेटी सरकारी अफसर बन गयी, मेरी प्यारी बेटी.. रिधिमा को चूमते हुए मोहनलाल ने अपनी खुशी जाहिर की।
यह कहते ही मोहनलाल की सांसों ने दम तोड़ दिया। पूरा वातावरण शोकमय हो गया। रिधिमा दहाड़े मार- मारकर रोने लगी। उसका बड़ा भाई उसे चुप कराने की कोशिश में था। सबकुछ एकाएक नष्ट हो गया सा प्रतीत होने लगा। इन पंद्रह- बीस दिनों में रिधिमा ने अपने मोबाईल को देखा भी नहीं, जब उसने फोन चालू किया वैसे ही शशि का मैसेज पढ़ा। उसने लिखा था, मुझे माफ कर दो मैं अब तुमसे शादी नहीं कर सकता। यह पढ़कर रिधिमा स्तब्ध हो गई, उसे समझ नहीं आ रहा था कि इसपर क्या रिएक्ट करें कि पता चला कि शशि ने शादी कर ली। इस खबर को सुन उसका प्यार पर से विश्वास ही मिट गया। ये कैसा प्यार? जो कुछ समय तक इंतजार न कर सका। मानती हूँ कि हम और वह बराबर के नहीं किंतु मैंने तो तुम्हें पाने के लिए खुद को भूला दिया तभी भी बस कुछ दिन राह देख न सके। एक तरफ पापा के चले जाने का दु: ख तो दूसरी ओर शशि का फैसला। दोनों ही घटनाओं से रिधिमा अंदर से पूरी तरह टूट - सी गयी। रिधिमा अतित के दिनों में खो गई जिसे वह चाहकर भी भूल न पाती।
स्नातक स्तर के द्वितीय वर्ष पहली बार रिधिमा की धड़कने जिसे देख मचलने लगी वह शशि ही था। शशि एक बड़े राजनीतिक दल के नेता का लड़का किन्तु उतना ही सौम्य और शालीन। उसे देख लगता नहीं कि ये कोई बड़े आदमी का बेटा होगा, उसका व्यवहार ही उसे सबसे अलग बनाता। रिधिमा के विचारों में उसे देख परिवर्तन आया क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था कि राजनेताओं के लड़के भी व्यवहार में इतने सौम्य हो सकते है। व्यक्ति व्यक्ति में भेद होता है यह उसे समझ आ गया। रिधिमा को झिझक होती उससे बात करने में किन्तु यह झिझक भी कुछ दिनों में मिट गई। दोनों के बीच किसी भी प्रकार की बराबरी न थी लेकिन प्यार सच्चा था। दोनों घंटो तक आपस में बतियाते रहते। उस दिन रमेश ने छेड़छाड़ करने की कोशिश की तो शशि ने उसे उसकी औकात दिखा दी। ताज्जुब तो तब हुआ जब पता चला कि रमेश कोई दूसरा नहीं बल्कि शशि के पिता के पीए का बेटा है। शशि का यह रूप देख रिधिमा उसके करीब चलती गयी।
रिधिमा ने अपने प्यार के विषय में घर में बात की तो मोहनलाल ने यह कहकर मना कर दिया की हमारी और उनकी कोई बराबरी नहीं हो सकती और मैं नहीं चाहता कि किसी राजनीति से जुड़े खानदान में अपनी बेटी का ब्याह करूँ। वह कहते हैं न कि प्यार किसी के रोकने से रूकता नहीं और एक शर्त पर मोहनलाल ने अपने कदम पीछे हटा लिए। तीन सालों तक अपने प्रेम को पाने हेतु रिधिमा स्वयं को भूल- सी गयी, इतने सालों तक उसने अपने परिवार तथा मित्रों से दूरी बना रखीं। आज जब उसने सबकुछ पा लिया तो ईश्वर ने पिता को अपने से हमेशा दूर कर दिया। अपने परिवार की चिंता में वह वर्तमान में आ गयी और बिस्तर पर लेटी - लेटी ऑंसूं बहाने लगी।
रिधिमा को इस तरह रोते देखा तो सुमन उसके पास आकर प्यार से उसे पुचकारते हुए पूछने लगी, " बेटी रो मत, तुम्हारे पापा के चले जाने से दुनिया तो थम नहीं जाती। अब हमें उनके बिना जीवन जीना ही होगा, जिंदगी का यही दस्तूर है कोई यहाँ ठहरने के लिए नहीं आता।
इतना सुनते ही रिधिमा फफक- फफककर जोर से रोने लगी। सुमन ने भी उसे रोकने की चेष्टा नहीं की और उसे रोने दिया जो रिधिमा के लिए अच्छा था। इतने दिनों का शोक वह अपने अंदर तो नहीं रख सकती।
इतने में ही मोबाईल की घंटी बज उठी, फोन शशि का था। पहले मैसेज और अब फोन बात क्या होगी? यह जानने के लिए रिधिमा ने फोन उठाया और स्पीकर पर रख दिया।
शशि बोलने लगा, रिधिमा मैं तुमसे माफी मांगने के लायक नहीं किंतु मैं अपने पापा के शब्द के लिए बाध्य हूँ। हो सकें तो मुझे माफ कर दो। इतना कहकर शशि ने कॉल कट कर दिया।
बेटी रिधिमा यह सब क्या है? वह तो तुम्हें चाहता है न, तेरे पापा ने उसे देखकर ही इस प्यार को स्वीकृति दी थी न.. सुमन सबकुछ जानना चाहती थी कि ऐसे अचानक वह अपना फैसला कैसे बदल सकता है।
माँ, आप तो जानती ही हो मैंने उसे पाने के लिए ही यह सब हासिल किया। जब मैं यहाँ आईं तो पापा की हालत को देखकर कुछ समझ न आया और फिर पंद्रह- बीस दिनों के बाद जब मैंने मोबाईल ऑन किया तो यह सब। आज मुझे पापा की बातें सच लगने लगी है, पर मैं प्यार में अंधी कभी अपने पिता के प्यार को समझ न सकी।.. कहते- कहते उसकी रूलाई पुन: फूट पड़ी।
सुमन उसे शांत करने लगी।
