विवाह: करार या बन्धन
विवाह: करार या बन्धन
सुजित यार समझने की कोशिश करो कि मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकती.. रिमा का यह फैसला सुन सुजित दो पल के लिए स्तब्ध हो गया।
सुजित को इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि रिमा ऐसा भी कुछ कह सकती है और वह भी तब जब शादी के लिए हप्ते भर का इंतजार है। सुजित को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो करे क्या? एक दूसरे से तो हमने सच्ची मोहब्बत की थी पर जब यह नियति को ही मंजूर नहीं तो हम कर क्या सकते हैं? रिमा को आज जाकर यह सूझी की वह इस शादी को तोड़ दे, आखिर ऐसा भी क्या हुआ इन दिनों जो उसे यह रिश्ते को ना करनी पड़ी।
क्या है असली वजह? क्यों मेरे दिल से खिलवाड़ कर रही हो? मैंने तो तुमको खुद से भी ज्यादा चाहा है , लेकिन तुमने मुझसे बेवफाई की।
मैं समझ सकती हूँ सुजित तुम पर जो बीत रही है, पर मैं मजबूर हूँ समझने की कोशिश करो।
ऐसी भी क्या मजबूरी, जिससे जिंदगी भर के लिए साथ निभाने का वादा किया था उससे यह बेवफाई! आखिर ऐसी कौनसी बात है जो तुम मुझसे नहीं कह रही हो? अगर मुझे धोखा ही देना था तो मुझसे यह झूठा प्यार क्यों किया?
सुजित का यह सवाल सुन रिमा खुद की नजरों में गिर गई। ठीक ही तो कहा है उसने, लेकिन क्यों सुजित मेरी मजबूरी नहीं समझ पा रहा। क्या हमारे तीन सालों के रिश्तों की डोर इतनी कमजोर थी कि उसमें हम एक- दूसरे को आत्मिक संबंध से ना जान सके।
जैसा तुम ठीक समझो रिमा, लेकिन मेरी मुहब्बत तुमसे उतनी ही है जैसे किसी प्यासे को पानी की जरूरत रहती है, और हाँ एक बात और की मैं तुम्हारा इंतजार ठीक उसी चटोर की भांति करता रहूँगा जो बरसात के एक बूंद की करता है। तुम भले मुझसे दूर हो रही हो किन्तु मेरी रूह सदा सदा के लिए तुम्हारी बन चूंकि है.. इतना कहकर सुजित जाने लगा पर रिमा उसे रोक न पायी।
यह कैसी बेबसी थी जो जुड़े हुए दिलों को आपस में मिलने न दे रही थी। क्या मेरा अपने प्यार के प्रति कुछ फर्ज नहीं बनता कि उसे ना छोडूं, यह रिश्ता जोड़कर मैं नहीं चाहती कि सुजित हमेशा के लिए मेरी उंगलियों पर नाचता रहे। आज अगर मैंने यह बन्धन तोड़ा है तो सिर्फ उसके खातिर। काश! यह बात वह समझ सके। अगर सच में जीवनभर वह कुंवारा रहा तो, हाय! भगवान यह मुझसे क्या हो गया ।
रिमा उसे छोड़कर घर चली आई और अपना फैसला माँ को बताया, तो वह उसकी बात समझ गई ताकि वह जान चुकी थी कि ये शादी किस मकसद से हो रही थी। रिमा को रोते देख उसे शांत करते हुए कहा, " रो मत बेटी आज जो तुमने किया वो बिल्कुल सही है, अगर वो तुम्हारे साथ ब्याह कर लेता तो जिंदगी भर के लिए रोते रहता। "
सुनती हो भागवान, हमारी बेटी की कारस्तानी.. अपने पति का आवाज सुन वह दोनों नीचे चले आए। रिमा को डरते देख माँ ने उसका साहस बढ़ाया और मैं हूँ ना यह कहकर उसका धीरज बढ़ाया।
क्या हुआ जी? क्यों चिल्लाते हो, बात क्या है?
मुझसे क्या पूछती हो पूछो तुम्हारी लाडली से। अगर शादी तोड़नी ही थी तो इतना नाटक क्यों रचा? तू तो प्यार करती थी न उससे तो इस प्यार को ऐन शादी के वक्त कैसे ग्रहण लग गया? मेरी बात मानती तो हमारा सर शर्म से नहीं झूकता । तुम्हारे प्यार के खातिर मैंने अपने दोस्त का भरोसा तोड़ा और तुमने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। सारे उद्योग जगत में मेरा नाम इज्जत से लिया जाता लेकिन आज के बाद मुझे वह इज्जत नहीं मिलेगी और इसकी जिम्मेदार तू है। अच्छा होता कि मैं नि संतान होता तो मुझे यह दिन देखना नहीं पड़ता ।
बस.. बस.. उसने जो किया उचित था, क्यों अपने मन मुताबिक जीने के लिए बच्चों को बेबस करते हो , रिमा नहीं चाहती कि उसका पति हमेशा- हमेशा के लिए आपकी उंगलियों पर नाचता रहे, नहीं चाहती कि वह तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनकर अपना सारा जीवन बिताये .. मनिषा के क्रोध का पारावार न रहा। उसने जो बातें की थी, वह सो आना सच थी जिसे वह झूठला नहीं सकते थे।
क्या मेरा मानना गलत है कि वह अपना उद्योग संभाले। क्या मेरी ये सोच भी गलत है कि वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करें.. अपना पक्ष रखते हुए मनोहर ने कहा।
हा, आपकी सोच गलत है । ऐसा कैसे मान सकते है कि पैसों से सारी खुशियाँ प्राप्त होती है, यह उद्योग आपका सपना है और इसे आप अपने बच्चों पर लादकर कौनसी खुशियाँ प्राप्त करना चाहते हो? अपनी खुशियाँ कैसे उनकी खुशियाँ बन सकती है? .. मनिषा ने जो कहा ये मनोहर कभी सोच नहीं सकता था।
आज उसे ज्ञात हुआ कि जो मैंने अपने बच्चे से चाहा वह उसे कभी चाहता न था और मैंने उसे समाज के साथ मिलकर मार डाला। एक पिता ही पुत्र के साथ ऐसा बर्ताव करें तो पिता और समाज के अन्य लोगों में क्या फर्क? मनोहर को अपने आपसे घृणा होने लगी और उसने वादा किया कि तुम्हारा प्रेम तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा ।
मनोहर ने सुजित को फोन किया और कहा कि " हमारे बीच में जो भी अग्रीमेंट्स हुई थी वह अभी के अभी कैंसिल। " उन कागजातों को उसने अग्नि में स्वाहा कर दिया।
दोनों के बीच की ये दूरियाँ खत्म हो गई, सारी गलतफहमियां मिट गई। सच ही कहा है किसीने सच्ची मोहब्बत करने वालों के खिलाफ अगर पूरी कायनात भी एक हो जाए तो भी उससे जुदा नहीं कर पाती। रिमा का फैसला ही उचित रहा क्योंकि सुजित भी नहीं चाहता था कि मैं किसी के भरोसे अपना जीवन गुजारू लेकिन वह अपने प्यार के लिए सारी शर्तों को ऑंखें बंद कर मानता चला गया। जब ये बात रिमा को पता चली की सारा जीवन उसे अपना गुलाम बनाना चाहते है तो उसने यह फैसला लिया था ताकि सच्चाई सामने आ जाए और इस बन्धन से मुक्त होकर सुजित अपना जीवन गुजारें। वह अपने कार्य में सफल हुईं और उन बेडियों से सुजित को हमेशा के लिए मुक्त कर दिया जिसे उसके पिताजी ने जकड़ रखा था।
रिमा के इस फैसले से ना कि उन दोनों का जीवन सुखमय हुआ बल्कि मनोहर की सोच भी बदल गई जिसके कारण मनिषा पर वह पहले जैसा हुक्म नहीं चलाता। मनिषा के चेहरे की खुशियाँ उसे साफ नजर आने लगी जो आज के पहले उसने कभी अनुभव नहीं की थी। अब ना कारोबार की चिंता की लकीरें दिखाई देती ना ही दबाव भरी जिंदगी। उन्मुक्त पवन की भांति दोनों परिवार हंसी- खुशी जीवन जीने लगे। चारों ओर आनंद और उल्लास का वातावरण, चारों ओर शांति का वातावरण।
रिमा और सुजित ने एक आदर्श जीवन की शुरुआत की।
