बिगड़ते बोल
बिगड़ते बोल
आज सुमेधा ने जो किया वह उमाकांत के लिए अविश्वसनीय था। सालों से चल रहे सुखद जीवन में पत्नी की एकाएक बढ़ती आकांक्षा से कहीं ना कहीं एक चोट तो उमाकांत को लगती ही। ऐसा नहीं कि उमाकांत ने पत्नी की इच्छाओं को कभी दबाया हो किन्तु शादी के करीब छह - आठ साल बीत जाने पर सुमेधा की ना सिर्फ बच्चों के भविष्य की फिक्र बढ़ने लगी बल्कि उसके साथ- साथ खर्चे भी बढ़ते रहे।
उमाकांत के लिए सुमेधा का यह बदलाव सोचने पर मजबूर कर देता। एक ओर बच्चों की शिक्षा, परवरिश का खर्च भी बढ़ने लगा है तो दूसरी ओर बिवी की खरीददारी का खर्च सो अलग। उसका दिमाग कुछ काम नहीं कर रहा था। जैसे- तैसे कुछ महीने तक खर्च चलता रहा लेकिन क्या ऐसा जीवन भर चल सकता है क्या?
एक दिन सुमेधा को कुछ रूपये न दिये तो उमाकांत पर ऐसे भड़की जैसे आजतक उसके लिए कुछ किया न हो।
तुम सब मर्द होते ही ऐसे हो, पहले तो दो - तीन साल मजे से घुमाने ले जाओगे, शॉपिंग करवाओगे, महंगे - महंगे गहने और गिफ्ट दिलायेंगे और जब कुछ साल बीत जाते हैं तो चारदीवारी के भीतर कैद करवा देते हो.. सुमेधा बरसने लगी उमाकांत पर।
ऐसा कुछ नहीं है, पहले तो खर्च कम होते थे तो सब संभल जाता लेकिन आजकल खर्च कुछ अधिक बढ़ गए है तो सबकुछ कैसे हो सकता है?.. उमाकांत ने शांति से समझाते हुए कहा।
हा, तो ठीक है ना उस हिसाब से तुम्हारी तनख्वाह भी तो बढ़ी है तो तुम्हें पैसे देने पर क्या हर्ज?.. सुमेधा तपाक से बोली।
सुमेधा, सुनो मेरी बात अब बच्चे बड़े हो गए है, उनका खर्च भी तो बढ़ेगा ऐसे में तुम्हारा यह फिजूलखर्च करना ठीक नहीं.. फिर एक बार शांति से उमाकांत ने अपनी बात रखी।
फिजूलखर्च मतलब मैं जो कर रही हूँ, वह आपको फिजूलखर्च लगता है। ऐसे में तो मैं ही तुम्हारी दुश्मन हुई जो बिना सोचे- समझे पैसे उड़ाती हूँ। इसका मतलब एक ही हुआ कि मैं तुम्हारे ऊपर बोझ बन गयी हूँ , कहो कि मैं तुमपर बोझ बन गयी हूँ.. सुमेधा गुस्से से चीख पड़ी।
मेरे कहने का मतलब ये नहीं था, तुम बात का बतंगड बनाने पर क्यूँ तुली हो। परिस्थितियों को समझने की कोशिश क्यों नहीं करती ?.. उमाकांत।
जब सच्चाई दिखाई तो कैसे बातें बना रहे हो? ये कहो न कि तुम्हारा प्यार बढ़ती उम्र के साथ कम हो रहा है? कहीं ऐसा नहीं कि तुम्हारा बाहर कोई।
सुमेधा के इतना बोलते ही उमाकांत ने कसकर सुमेधा को थप्पड़ जड़ दिया।
बेचारा कब तक सुनता? सुनने की भी हद होती है। कुछ रकम ना देने के कारण इतना बड़ा दोष उमाकांत कैसे झेल सकता है भला? जब अपने ही अपनों पर विश्वास नहीं करते तो औरों पर क्या ही भरोसा करें आदमी।
उस दिन से दोनों के बीच मनमुटाव बरकरार रहा, कभी साथ बैठकर खाना नहीं खाया ना कभी साथ घूमे - फिरे। इस तरह के बर्ताव से घर का माहौल खराब होने लगा जिसका असर बच्चों पर भी कहीं ना कहीं होने लगा।
उमाकांत की सेहत भी इस मनमुटाव के कारण बिगड़ती रहीं, ना कभी सुमेधा ने माफी मांगी ना वह उसे माफ कर पाया। इंसान को हमेशा अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए, कभी- कभी कुछ शब्दों की आग इतनी भड़भड़ा जाती है कि उसपर पानी की बौछार का भी कुछ असर नहीं होता।
