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MANTHAN DEORE

Drama Tragedy

3  

MANTHAN DEORE

Drama Tragedy

अनोखा मिलन

अनोखा मिलन

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कितना सहज था उसका यह कहना कि मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकता, मैं निबाह नहीं सकता। शुरुआती दौर में तो उसको मेरा साथ न मिला तो छटपटा जाता और शादी के तीन साल होने के पश्चात मुझे छोड़ दिया। क्या मैं सिर्फ एक खिलौना हूँ, उसके लिए? जिसे जब चाहा पाया और जब चाहा फेंक दिया। शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद उसे अचानक कैसे तोड़ा जा सकता है। आजकल तो यह आम सी बात हो गई है, पता नहीं किस तरह की यह संस्कृति है। भारतीय संस्कृति तो हमें यह सब नहीं सिखाती। अगर उसे रिश्ता निभाना ही न था, तो विवाह क्यों किया? उसे तो किसी ने कोई जबरदस्ती नहीं की थी तो फिर यह फैसला लेने के पीछे का क्या कारण? .. ऐसे अनगिनत सवाल मनवा के दिमाग में उठ रहे थे, जिसके जवाब ढूँढने की कोशिश वह कर रही थी मगर उसे कोई ठोस कारण नहीं मिला। 


कैसी हो मनवा? सब ठीक? .. अचानक से पीछे - से जानी पहचानी आवाज को सुनकर वह चौकीं , पीछे मुड़कर देखा तो नीरज खड़ा था। 


वह उन धुंधली यादों को याद करने लग गयी, जो वह भूल चूंकि थी। आज उसे देखकर वह याद आ गई। जब मनवा अपनी पढ़ाई पूरी कर एक कंपनी में जाॅब कर रही थी, वही नीरज से मुलाकात हुई। उन्हें पता नहीं था कि ये मुलाकात हमारे जहन में अपना घर बना लेगी । शुरुआती दिनों से उनके बीच टकराव होता रहा और उन्हीं छोटी छोटी बातों से इन दोनों में अनबन शुरू हो जाती। जिसके कारण उनके बॉस परेशानी में नजर आते हरपल। 


एक दिन बाॅस ने फरमान जारी किया कि कल से तुम दोनों के लिए इस कंपनी के द्वार हमेशा हमेशा के लिए बंद। तो फिर क्या था उनके रास्ते अलग हो गए। वो दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि हमारे बीच रोज झगड़ा क्यों होता है? दूरी बनानी भी चाहे, तो किसी न किसी बहाने हम फिर आ जातें है। इसका कारण उन्हें तब मालूम पड़ा जब वो एक- दूसरे से महीने भर दूर रहें। 


एक दिन उन दोनों ने कॉफी शॉप में मिलने का प्लान बनाया। 

मनवा, मैं तुम्हारे बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकता, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ.. नीरज ने अपनी बात बिना किसी भय से मनवा से कह दी। 

हा, मैं भी.. मनवा ने उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा। 


मनवा के पिताजी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। वजह एकमात्र यही थी कि लड़का अपनी बेटी के ओहदे से नीचे का काम करता है। उनका यह मानना था कि पती - पत्नी भले एक कार्य करे लेकिन वह समांतर हो यानी दोनों एक- सा काम करे या पती अपनी पत्नी से ओहदे में ऊॅंचा रहे। मनवा जितना कमाती उससे पाच- सात हजार रुपये नीरज कम ही कमाता, इस कारण उन्हें यह रिश्ता मंजूर न था। सभी लोगों ने उन्हें समझाना चाहा मगर वह नहीं समझे और कुछ दिनों बाद मनवा के लिए उससे ऊॅंचे ओहदे वाले लड़के से शादी करवा दी। 


उस वक्त से इन दोनों के रास्ते अलग- अलग हो गए। मनवा के पति को यह बात समझने में देरी न लगी कि मनवा इस रिश्ते से खुश नहीं। वह खुशी इसको कैसे प्राप्त होगी, यह जानने की उसने बहुत कोशिश की पर वह उसके मन की बात नहीं समझ सका। 


पिछले कुछ दिनों में उसे किसी काम के कारण दूसरे शहर जाना पड़ा, जहाँ उसकी मित्रता नीरज से हुई। काम करते- करते उन दोनों में इतनी गहरी मित्रता हुई कि वह दोनों फुरसत में एक- दूसरे के साथ ही रहते। अपने मन की हर एक बात वह एक- दूसरे से सांझा करते। बातों- बातों में पता चला कि नीरज और मनवा का एक दूसरे से गहरा नाता था, लेकिन वह मिल न सके। अपने पत्नी का दु: ख वह भलीभाँति समझ चुका था। 


एक दिन मनवा को बुलाकर इन तलाक के कागज़ पर हस्ताक्षर करवा लिए यह कहकर कि वह किसी अन्य लड़की के प्रेम में है । नीरज की ये उससे मुलाकात करवाने का प्रयास भी सुधीर ( मनवा का पति) का ही था । सुधीर ने मनवा को उसका प्रेम वापस दिया। 


सुधीर, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? मैंने तुमसे विवाह किया है, तुम्हारा साथ देना ये मेरा परम कर्तव्य है और तुम मुझे अपना साथ छोड़ने के लिए कहते हो? 

कबतक, तुम अपने आपको सजा देना चाहती हो, मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ और तुम्हारी खुशी नीरज के साथ ही है, यह मैं जानता हूँ। हाँ, एक बात और कि नीरज ने अबतक शादी भी नहीं की है। 

जब ये बात सुनी तो मनवा को काफी वेदना हुई, वह कुछ कह न पायी बस नीरज की ओर देखने लगी। उसे क्या करना चाहिए, यह समझ नहीं आ रहा था, अपने पति का साथ दे या अपने प्यार का? एक तरफ तलाक के कागज तो दूसरी तरफ शादी का बंधन। उसका फैसला ही अब उन दोनों का जीवन निर्धारित करने वाली था। 


सुधीर की खुशी के लिए मनवा ने नीरज के साथ विवाह कर लिया परंतु शर्त थी कि सुधीर भी किसीसे विवाह करें। मनवा की शर्त सुधीर को माननी ही थी, तो उसने भी अपनी मोहब्बत पा ली। दोनों परिवार आनंद और उल्लास के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगे।



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