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MANTHAN DEORE

Drama Romance Tragedy

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MANTHAN DEORE

Drama Romance Tragedy

दिल की बात

दिल की बात

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आज फिर दिल मचलने लगा उससे मिलने के लिए, कितनी ही बार समझाना चाहा कि वो अतीत था मेरा। नहीं, आखिर क्यों इतना जुडाव हो गया उससे की हर बार किसी न किसी बहाने उससे मुलाकात हो जाए उससे ऐसा लगता है, मानो अब हो ही जाए उससे बात यही मेरी अंतरात्मा बार - बार कह रही है। मगर भय है कि वो मुझे जानती भी है या नहीं। मुझे अंतिम साल तक लग रहा था कि उसके मन में मेरे प्रति भाव है पर पता नहीं वो मेरे बारे में क्षण भर के लिए सोचती भी थी या नहीं। इसी उधेड़बुन में मैं कभी उससे बात तक न कर सका, ऐसा नहीं की हम एक दूसरे से चुप्पी साधे रहते बल्कि हम जो बातें करते वह कभी पढ़ाई के बाहर की न रहीं। कभी कभी ऐसा लगता कि काश! मैं ही उससे दूरी बनाए रखता तो दिल में प्रेम के भाव न उभरते। 


हाय! क्या करूँ मैं इस बेचैन और तड़पते हुए दिल का। अगर और कुछ देर उसके बारे में सोचता रहा तो माथा घूम जाएगा। इससे अच्छा तो मैं अब सोने चला जाऊँ लेकिन कमबख्त ये आंखें लगती नहीं बस उसी का ख्याल। लेकिन आज पक्का इरादा कर लिया अपने आप से कि आज मुझे सोना ही है। इस पक्के इरादे से बेडरूम में गया तो अर्नव के द्वारा किया गया कमरे का रूप देख मेरे दिमाग का पारावर न रहा। 


ये क्या है अर्नव दिन भर मटरगस्ती करते हो, कभी खिलौने तोड़ देते हो तो कभी कुछ । ऐसे बहुत कुछ पाॅंच साल के बेटे अर्नव को मैं बोल गया और वह सहम कर अपनी माँ के ऑंचल में छुप गया। 


क्या हो गया है आपको, उस पर चिल्लाने से क्या फायदा? .. पत्नी ने अपने बेटे का पक्ष रखा । 

तो क्या उसकी हर शरारत को नजरअंदाज करते रहूँ .. मैं भी अपने आप में चिल्लाता रहा। 

मेरी पत्नी अर्नव के साथ कमरे से बाहर निकल गई, शायद वह समझ रही थी मेरे मनोभावों को। 


जो बर्ताव मुझसे हुआ आज पहली बार न था बल्कि ऐसा मुझसे हुआ है। अपने द्वेष भाव को मैं किसी न किसी पर अलग - अलग रूपों में व्यक्त करता आया हूँ और जितना रोकना चाहा पर वह बाहर निकल ही आता है। मेरी इस परेशानी से न मैं स्वयं बल्कि मेरा पूरा परिवार मेरी इन हरकतों से पीड़ित एवं चिंतित है। काश! कुछ हिम्मत जुटा ली होती और उससे एक बार अपने दिल की बात कही होती तो मुझे अपने आप से घृणा न होती। हाँ, मुझे घृणा होती है इस तरह के व्यवहार से । यह मेरा परिवार है पर क्या मुझे यह अधिकार है कि मैं उन्हें बार - बार सताऊॅं, किस अधिकार से मैं उनपर अपनी धाक जमाता आ रहा हूँ बरसों से आज तक। 


मैंने इस विषय पर अपनी पत्नी से बात की तो वह मुझपर ना झल्लायीं ना क्रोधित हुईं, बस मुझे उससे बात करने को कहा। मैं तो उसके इस बात से पहले अचंभित हुआ पर उसका निर्णय सर्वथा उचित लगा, क्योंकि इस शंका का निरसन बात करने से ही हल हो सकता है। लेकिन क्या इतने सालों के बाद वह मुझसे बातें करना चाहेगी, वह तो उन्ही दिनों कम बातें करती थी वह भी डर - डरकर। अब तो उसका पति इस अन्जान व्यक्ति की बातों से नाराज होकर उसे पीटने लगा तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर सकता। ऐसे बहुत से तरह तरह के मन में विचार आने लगे तो मेरी हिम्मत नहीं हुई उससे बात करने की। 


मेरे सीने पर अपना एक हाथ धैर्य के भाव से रखते हुए दूसरे हाथों से मोबाइल देते हुए कहा, " हिम्मत करो और अपने दिल की बात निर्भिकता से कहो, डरने की कोई बात नहीं। " 


चौंकने की बारी अब मेरी थी । उसके इस बर्ताव पर आनंदित हूँ कि शोक मनाये, कितनी आसानी से मेरे हाथों में मोबाइल थमा दिया कि कर लो बात अपनी चाहत से। कितनी अजीब कशमकश है कि एक पत्नी अपने पति को कह रही है अपनी प्रेमिका से बात कर लो। उसको गुस्सा नहीं आया कि मैंने उसके साथ दगा किया, धोखा दिया। मैं तो समझता था कि जब मैं अपने मन की बेचैनी उसे कहूँगा तो मुझपर रूठेगी, अपनी छाती पीटेगी लेकिन मेरी सोच गलत साबित हुईं। 


किस सोच में डूब गये जी, ये लो फोन और कर लो अपने दिल की बात .. पत्नी की आवाज सुनते ही मैं अपनी तंद्रा से बाहर निकला। 


ट्रिंग ट्रिंग मोबाइल की घंटी बजने लगी और मेरा दिल जोर- जोर से धड़कने लगा। कुछ पल बाद मोबाइल उठाया गया। 

हैलो सुनते ही मैं प्रसन्न हो गया, हाँ कितने सालों बाद उसकी वह मिठी आवाज मेरे कानों पर पड़ी थी। मैं भाव विभोर हो उसके साथ गप्पे मारने लगा और वह भी मुझसे अपने दिल की बातें सुनाने लगी, मानो वह भी मुझसे बात करना चाहती थी। हम घंटों तक बातें करने लगे, हमें होश ही न रहा कि हम शादीशुदा है। एक प्रेमी युगल की भांति हम एक अन्जान जगह अकेले रह गए जहाँ सिर्फ मैं और वह थी, हाँ सिर्फ मैं और वो।



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