अधूरा बचपन

अधूरा बचपन

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 "अरे छोटू !बर्तन माँज लिया ।जल्दी दो कप चाय दे टेबल नंबर चार पर।"

"जी,साहब, अभी लाया।"

 ये रोज़ की बात थी ।छोटू एक होटल में काम करता था। जहाँ उसे दिनभर दौड़ भाग करनी पड़ती ।टेबल साफ करो ,पानी दो, चाय दो ,टेबल लगाओ ।क्या करता बेचारा? सारे घर की जिम्मेदारी उसी पर थी ।कुछ मिलता तो खा लेता ,नहीं मिलता तो पानी पीकर रह जाता ।"छोटू जल्दी काम खत्म करो ,मैं जा रहा हूँ। तू भी साथ चलेगा ना ।"

"हाँ,चलता हूँ यार ,बस यह बर्तन लगा दूँ।"

" कितना काम करता है यार। तभी मालिक को तेरी कोई कदर नहीं। मैं तो कहता हूँ,छोड़ दे यह सब और अपने सपने पूरे कर।"

 अचानक छोटू के हाथ से बर्तन छटक कर नीचे गिर गया। "क्या हुआ तेरी तबीयत ठीक है ना।"

"हाँ! तूने सपनों की बात की तो कुछ याद सा गया । लगा जैसे मैं जिंदा हूँ। वरना मैं एक मशीन बन कर रह गया हूँ। सपने सपने ही होते हैं दोस्त ।उन सपनों को पूरा करने के लिए पैसे कमाता हूँ, तो सपने दूर भाग जाते हैं और सपनों को जीने की सोचता हूँ,तो पैसे दूर भाग जाते हैं ।तू ही बता! क्या मेरे सपने इतने बड़े हैं ,जो पूरे ना हो सके ?केवल पढ़ना ही तो चाहता था। बापू के जाने के बाद स्कूल छूट गया और कमाने के लिए मुझे बाहर निकलना ही पड़ा। किताब कॉपी तो हाथों से छूटकर कहीं खो गए ।बस यह बर्तन ही मेरे हाथों में रह गए हैं।" और छोटू रो पड़ा ।

"मत रो मेरे दोस्त। तेरे सपनों को तूने नहीं मारा ।यह जिंदगी, यह हालात तेरे सपनों के हत्यारे हैं। तुझे तो बिना वजह सजा मिल रही है ।पर तू हिम्मत मत हार ।अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। मैं तेरे साथ हूँ ना! तू फिर से स्कूल में नाम लिखा ले। तेरे फीस के आधे पैसे मैं दे दूँगा या फिर हम दोनों ओवरटाइम कर लेंगे।"

" तू सच कह रहा है।"

" हाँ यार ! तेरे सपनों को मैं इस तरह मरने नहीं दूँगा ।अपने सपनों को फिर से जिंदा कर और उन्हें पूरा करने की उम्मीद जगा।


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