अभिमन्यु की नियति
अभिमन्यु की नियति
" नानी प्लीज कहानी सुनाइए ना।"
"ना बाबा ! मैं न सुनाने वाली कहानी वहानी।"
"क्यों दादी ? आप तो मुझे कितनी सारी कहानियां सुनाती थी।"
"हाँ नानी ! बताइए मुझे क्यों नहीं सुनाएँगी" ?
"क्योंकि तुम बहुत प्रश्न पूछती हो।"
" हाँ तो नानी जो समझ में नहीं आएगा तो प्रश्न तो पूछूँगी ना।"
"वही तो और तेरे प्रश्नों के उत्तर मेरे पास नहीं रहते।"
"क्यों नानी ! क्या दीदी सवाल नहीं पूछती थी" ?
' पूछती थी । पर मैं समझा देती थी तो वह समझ जाती थी।"
यह सारा वार्तालाप सुन कर आप समझ ही गए होंगे कि छुट्टियों में हम सब माँ के घर में एकत्र हुए है। मेरे और मेरी छोटी बहन के बच्चों ने माँ को घेर रखा है। मैं लैपटॉप पर काम करते हुए उन सबकी नोकझोंक सुन रहा हूँ। मेरी बिटिया 'मिश्री' घर की पहली संतान होने के कारण सबकी लाडली है और वह है भी प्यारी। वही बहन की बेटी 'मीठी' सबसे छोटी होने के कारण शरारती और बड़बोली है। माँ सच कह रही है उसके प्रश्नों के उत्तर देना बहुत कठिन है।
अभी कल का ही ले लो। माँ कहानी सुना रही थी,वो भीष्म पितामह की। मीठी के प्रश्नों का अंत नही था। अंत मे माँ ने कहा अगर ऐसे बीच मे टोकोगी तो कहानी नही सुनाऊँगी, तब जाकर चुप हुई। फिर भी कहानी खत्म होते न होते पूछ ही बैठी, "जब उनको सिर में तीर मारा गया तो भी क्यों नही मरे ? सारा खून बह जाने पर, सिर में तीर लगने पर बचना सम्भव ही नही है।"
माँ ने रटारटाया बोला, "क्योकि उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला था।"
मीठी फिर बोल पड़ी, "पर इच्छामृत्यु का वरदान तो श्राप जैसा हुआ न। इतने कष्ट से तो मृत्यु बेहतर थी न।"
फिर माँ गुस्सा होते हुए बोली, "थोड़ी बड़ी हो जा तब समझेगी यह उनके कर्मों का फल था जो उन्हें भोगना ही था।"
तब से मेरे कानों में मिश्री की आवाज सुनाई पड़ी, "दादी आज एक प्रश्न तो मुझे भी पूछना है" ?
माँ सिर पर हाथ रखते हुए बोली, "तुझे भी इसका असर लग गया। अच्छा पूछ , मुझे मालूम होगा तो बता दूँगी।"
मेरे हाथ लैपटॉप पर काम कर रहे थे पर कान उन लोगों की बातों पर ही थे।
मिश्री बोली,"दादी भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की। धृतराष्ट्र के क्रोध से भीम को बचाया, अर्जुन की, सबकी कभी न कभी रक्षा की। फिर उन्होंने, अभिमन्यु की रक्षा क्यों नही की। उन्होंने द्रौपदी के पाँचों पुत्रों की रक्षा क्यों नही की ? वो चाहते तो उन्हें बचा सकते थे न ?
"हाँ इस प्रश्न का उत्तर है मेरे पास। जिन प्रश्नों के उत्तर पुराणों में वर्णित है वह मैं बता सकती हूँ।" फिर माँ मीठी की तरफ देख कर मुस्कुराती हुई बोली, "तुम्हारी शंकाओं का समाधान नही है मेरे पास। आज हमारे पास अध्यात्म की उतनी सशक्त शक्तियाँ नही है। हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमता उस युग के अनुपात में शून्य है। इसलिए हम उन क्षमताओं पर संदेह करते है। क्योंकि हमारा मष्तिष्क उन क्षमताओं के स्तर पर नही पहुँच पाया है।
"चलो आज मैं तुम्हे अभिमन्यु से जुड़ी एक कहानी सुनाती हूँ।" फिर मिश्री की ओर देखते हुए बोली, "शायद तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मिल सकें।"
अब कहानी के नाम पर हम दोनों भाई बहन के बेटे जो अब तक मोबाइल में खेल रहे थे, भी आ गए। माँ पीछे दीवार से दो तकियों की टेक लगा कर बैठ गयी। मीठी और मेरा बेटा माँ की गोद मे लेट गए। मिश्री भी एक ओर टेक ले कर बैठ गयी, बहन का बेटा उसकी गोद मे सिर रख कर लेट गया। मैंने भी लैपटॉप बन्द करके अपना पूरा ध्यान माँ की कहानी पर लगा दिया। काश मैं भी जाकर माँ की गोद मे लेट सकता, यह उम्र भी न क्या क्या सुख छीन लेती है, यह सोचते हुए वही सोफे पर पसर गया। यह कहानी मेरे लिए भी नई थी। मैं सोच रहा था कि यह प्रश्न कभी मैंने क्यो नही सोचा ? आज कल के बच्चे सच मे आज के युग के है 5G, 9G शायद उससे भी तेज, समझदार।
अचानक से शंख बजने जैसी आवाज आई। माँ ने कहानी सुनानी शुरू कर दी थी। यह मेरा बेटा था जो माँ के यदा यदा ही धर्मस्य......श्लोक पढ़ने के साथ ही मुँह से शंख की आवाज निकल रहा था। "...तो जब जब इस संसार मे अधर्म और अत्याचार बढ़ने लगता है। तब सत्य और धर्म की रक्षा के लिए भगवान अवतार लेते है। पर भगवान कभी अकेले नही आते है। अन्य सभी देवी देवता भी उनके उद्देश्य में सहायता के लिए, भगवान की लीलाओं के दर्शन के लिए अपने अंशो के रूप में प्रकट होते है। उद्देश्य बड़ा होने पर उनके पुत्र पुत्रियों को भी धरती पर जन्म लेना पड़ता है।
ऐसे ही जब द्वापर युग मे श्री विष्णु कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे। तब ब्रह्मा जी ने सभी देवी देवताओं को उनकी सहायता हेतु धरती पर जन्म लेने का आदेश दिया था। ब्रह्मा जी के इस आदेश का सभी देवताओं ने पालन किया। किंतु चंद्रमा जी ने ब्रह्मा जी के इस आदेश का विरोध किया और अपने प्रिय पुत्र वर्चा को अपने से दूर, पृथ्वी पर भेजने से इनकार कर दिया। सभी देवताओं ने मिलकर चंद्रमा को समझाया कि धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है । इसलिए हम सभी को ब्रम्हा जी के आदेश का पालन करना ही होगा । सभी देवताओं के समझाने पर चंद्रमा मान तो गए पर उन्होंने एक शर्त रखी कि "यदि मेरा प्रिय पुत्र धरती पर जन्म लेगा तो वह ज्यादा दिनों तक धरती पर नहीं रुकेगा। वह अपना उद्देश्य पूर्ण करते ही वापस मेरे पास लौट आएगा और उसके तेज और पराक्रम की चर्चा युगों युगों तक होगी।"
चंद्रमा पुत्र वर्चा ने ही अभिमन्यु के रूप में सुभद्रा की कोख से जन्म लिया और अपने पराक्रम से महारथियों को हराते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । चंद्रमा की तरह ही उनके पुत्र का तेज युगों युगों तक क्षीण नहीं हुआ है । चंद्रमा की देखा देखी कुछ अन्य देवी-देवताओं ने जैसे विश्वदेवगण ने भी अपने पाँचों पुत्रों को इसी शर्त पर धरती पर आने दिया कि वह धर्म की विजय होते ही उनके पास वापस लौट जाएंगे। विश्वदेवगण के पाँचों पुत्र ही द्रोपदी के पाँचों पुत्र थे। जो युद्ध समाप्त होने के साथ ही अपने लोक वापस चले गए।
तो अब समझ में आया न कि चंद्रमा की शर्त के अनुसार ही श्री कृष्ण जी ने अभिमन्यु की नियति में दखल नहीं दिया।
मिश्री दादी की कहानी से संतुष्ट थी। मीठी कुछ सोच विचार में थी। वह पूछने के लिए मन ही मन कुछ ढूँढ़ रही थी। मैं सोच रहा था कि इस तरह से तो अकाल मृत्यु कुछ नही होती। हर एक के जाने का समय तय है। जो जल्दी जाते है वो हम से अधिक प्रिय भगवान के होते है। पौराणिक कथाएँ कितना कुछ समेटे होती है अपने अंतर में, हैं ना।