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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Tragedy Classics Inspirational

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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Tragedy Classics Inspirational

आज़ादी पर वार

आज़ादी पर वार

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कोरोना वाइरस महामारी काल में स्वास्थ्य-गाइडलाइंस अनुसार स्वाधीनता दिवस समारोह चल रहा था। तभी धीमे स्वर में लयबद्ध शब्द सुनाई दिये : 

"चिड़ियें देख चहक उठीं, कबूतर लें उड़ान।

जनगण पुष्प महक उठे, आज़ादी है जान।।" 

पीपीई और मास्क पहने एक राजनैतिक दल के कवि हृदय वाला शारीरिक दूरी का पालन कर रहे दूसरे राजनैतिक दल वाले कवि हृदयधारी से दोहा-छंद में कहते हुए बोला,

"आज़ादी का मोल है, वीरों का हर रोल

बलिदानी अनमोल है, जय-जय सबकी बोल।"

प्रत्युत्तर में दूसरा उसी शैली में बोला :

"नैया संग बहक रही, सवार की पतवार।

आँधी कुछ ऐसी चली, गुलशन में इस बार।।"

इतना कहकर मंचासीन दिग्गजों की ओर देखकर वह आगे बोला :

नैया संग बहक रही, सवार की पतवार।

आँधी कुछ ऐसी चली, आज़ादी पर वार।


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