आज़ाद परिंदा ...
आज़ाद परिंदा ...
खोल दे पंख मेरे, कहता है परिंदा
अभी और उड़ान बाकी है
जमीं नहीं है मंज़िल मेरी,
अभी पूरा आसमान बाकी है ..
कभी लगता है छोड़ दूं सारी दुनियां को, क्या ही पा लूंगी जो आसमान भी मिल गया, क्या ही छूट जाएगा शायद जो जमीं पर ही रह जाउंगी, क्या जिंदगी ख़त्म थोड़ी ना होगी, फिर ये पागल दिल ने फिर चिल्ला के बोला, क्या तुम्हारा अस्तित्व रहेगा जो तुम्हारे सपने पूरे नही हुए ! क्या तुम्हारी आँखे आशू रोक पाएगी, क्या तुम्हारा दिल धड़क सकेगा, इन खवाबों के बिना,क्या ये माशूम सी आँखे आयना भी कभी देख पायेगा, क्या ये ज़ुबान भी कभी कुछ बोल पाएगी, ये कलम कभी फिर से कुछ लिख पाएगी, कोई तुम पर विश्वास करेगा, दुसरो का छोड़ो क्या तुम कभी खुद पर विश्वास कर पाऊंगी ?
जब सुना मन ने ये सब खामोस हो गई जुबान, फिर सोचने लगा ये दिल बहोत कारण है आसमान पाने के लिये,मंज़िल से मिलने के लिए, कोई वज़ह नही है जमीं पर रहने के लिए, जब ये दिल चाहता है इन पंछियों की तरह उड़ना तो क्यू जमीं से जुड़े रहना, खोल दे पंख को ओह परिंदे, किसने तुम्हे जकड़ कर रखा है, जो भी मुश्किल है या अड़चने है वो तुम्हारे विचारों में है जो तुम्हारे पंख काट रहा है तो छोड़ो इन विचारों को, बस ठान लो और उड़ने लगो अपने सपनों की ओर, अपनी मंज़िल को गले लगाने, फिर प्यार को पाने के लिए,बिंदास albtoss बन कर उड़ते रहो .....
जमीं नहीं हे तुम्हारी मंज़िल, पूरा आसमान है तुम्हारा ख़वाब, तो उड़ते चलो उन्हें पाने के लिए कभी ना मिले आसमान तो निराश मत हो ना, हार भी गए तो घायल परिंदा या मुसाफ़िर कह लाओगे, फिर नई उड़ान तेय करना ओह परिंदे क्योकि पंख तुम्हारे मजबूत है, हौसला तुम्हारा बुलंद है,ओर हारना कभी तुमने कभी सीखा नही तो फिर बढ़ते रहो मेरे हमसफ़र।