ऐसे तो नहीं हुआ होगा ना ... बेवजह ?
ऐसे तो नहीं हुआ होगा ना ... बेवजह ?
एक ख़त अजनबी के नाम ...!
प्रिय अजनबी,
वैसे तो तुम्हें ये ख़त पढ़ कर समझ में आ ही जायेगा की कौन हूं मैं, एक गुजारिश है तुमसे इसका जवाब जरूर भेजना, मैं इंतज़ार करूंगी, इसमें पूछे गए सवाल के जवाब का, और तुम्हारे खत का भी ...
ऐसे तो नहीं हुआ होगा ना, कोई कैसे इतना बदल सकता है? बेवजह, कोई कैसे अपने व्यक्तित्व तो यूं मिटा सकता है ?, बहुत सोचा मैंने, लेकिन फिर भी मेरा मन ये जवाब नहीं दे पा रहा है , ऐसे कैसे कोई बदल सकता है , मेरा मन इतना भी नादान नहीं है की किसी व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व को ना समझ सके। वो तो कितना मजाकिया, अपने ही मौज में जीने वाला था, वहीं नौजवान की तरह स्फूरतीला था वो, जिंदगी को जीना जानता था वो, नादान था लेकिन फिर भी समझदार, अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाना जानता था वो, उसके सपनों को वक्त भी देता था लेकिन फिर भी उसके व्यक्तित्व में एक छोटे से बच्चे की झलक दिखाई देती थी, वो जो भी करता था वो खुशी के साथ करता था बिना दुनिया की परवाह किए, तो फिर क्यों वो इतना बदल गया, बेवजह …?
हमारी एक छोटी सी चाय की आदत हम बरसों बीतने के बाद भी नहीं छोड़ सकते तो वो कैसे अपने आपको इतना बदल सकता है , डायबिटीस का मरीज़ कितनी मस्कत के बाद थोड़ी मिठाई की आदत छोड़ पाता है वो भी मरने के डर से तो फिर क्या उसकी जिंदगी में भी ऐसी कोई वजह रही होगी जो मैं नहीं जानती ? या शायद में गलत सोच रही हूं। किस तरह वो गुलाब जैसा कोमल दिल वाला था आज वो सख्त है की वैसे बनने की कोशिश कर रहा है , आज भी उसके चेहरे पर मुस्कान नजर आती है लेकिन फिर भी उस मुस्कान पर भरोसा नहीं हो रहा है कोई तो वजह, दर्द वो अपने दिल में छुपा कर जी रहा है , वरना यूं ना मुझे ऐसा लगता, आज भी वो बहुत समझदार है , सबका ख्याल भी बहुत रखता है, सबकी मदद भी बखूबी करता है, अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाना भी जानता है विश्वास भी ये ईश्वर पर फिर भी वो कही अपने आपको, अपने व्यक्तित्व को कहीं खो बैठा है, जिंदगी जी तो रहा है पर उसका आनंद लेना भूल गया है, ऐसे तो नहीं हुआ होगा ना ये सब बेवजह …..
लिखितन ... प्रियतमा
