अहंकार से विनाश निश्चित है।।
अहंकार से विनाश निश्चित है।।
अहंकार से विनाश निश्चित है।।
उत्साह से हम सब जीत सकते हे, पर जब वहीं उत्साह अहंकार बन जाएं तो विनाश निश्चित है।।
चलो जानते ये बात रामायण के एक पात्र से :
जब हम अहंकार शब्द को समझना चाहे एक शब्द में तो याद आता हे रावण, महाज्ञानी रावण ।।
रावण परिचय:
रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। रावण श्री राम के परम शत्रु थे। सारस्वत ब्राह्मणपुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण एक परम भगवान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, पंडित एवं महाज्ञानी था। रावण लंका के राजा थे जहा एक से बढ़ कर एक महाप्रतापि, ज्ञानी साथी बंधु, पुत्र, भाई जैसे की इन्दजित, विभीषण, कुंभकरण और भी सेनापति थे।।
रावण एक राक्षस कुल का था, अपनी तपस्या से उसने देवताओं से बहोत शक्तियां पाई थीं, पर कहते हम कितने भी शक्तिशाली क्यू ना हो, पर जब हम अधर्म के मार्ग पर चलते हैं, गलत करते हैं, तो उसका दुष्ट प्रभाव पड़ता है।
रावण ने जगदंबा के स्वरूप मां सीता का अपहरण किया और यहीं उसके विनाश का कारण बना।
रावण का अहंकार इतना था की बार बार समझाने पर भी वो नहीं माना। रामजी के शरण में वो नहीं गया। शुरू में ही मंदोदरी ने बार बार समझाया था रावण को, विभीषण ने समझाया का नीति और अनीति का मार्ग, क्या धर्म हे, रावण की माता ने,उनके नाना ने, ससुर ने, कुंभकरण ने, बाकी बहुत विद्वान मंत्री गण ने समझाया पर अहंकार में डूबे, सीता जी के मोह में रावण बिल्कुल ना माना, युद्ध में सब गवाया, अंतिम चेतावनी में मेघदूत ने अपने पिता को समझाया की राम जी विष्णु का अवतार हे आप लंका के विनाश को बचा लीजिए पर वो नहीं माना, अंत सब जानते हे पूरी लंका और लंका पति का विनाश।।
रावण को हराना जीतना मुश्किल था, वो आप जानते हे, देवता भी डरते थे उनसे पर उसकी अनीति और अहंकार में वो सब ले डूबा। हम भी यहीं करते हे बार बार परिवार, दोस्त, शुभचिंतक, शिक्षक आदि हमें समझाते हे ये मत करो,ये तुम्हारे लिए अच्छा नहीं हे,फिर भी हम वो नहीं छोड़ते, छोटी छोटी ऐसी आदतें जो हम छोड़ सकते हे पर नहीं छोड़ते तो याद रखिए, आपका असफल होना तेय है, कृपया करके गलत चीजों को आज ही छोड़े।।
