आया बसन्त

आया बसन्त

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माँ का चेहरा तो सुधा को याद भी नहीं। जब तीनेक साल की थी तभी माँ की मौत हो गई थी। दादी थीं,उन्होंने ही उसे पाला पोसा।बचपन से माँ की जगह सुधा ने दादी को ही देखा और उन्हें ही माँ की जगह दी।

अचानक से दस बारह साल बाद सुधा के पापा ने अपने साथ काम करने वाली जानकी से शादी कर ली। एक दिन अचानक घर पर अपने साथ जानकी को ले आये और ऐलान कर दिया 'मैंने जानकी से शादी कर ली है और आज से माँ,ये आपकी बहू और सुधा की माँ है।'

दादी पोती दोनों को इस घटना ने हिला कर रख दिया। सुधा ने आज तक माँ के रूप में दादी को ही देखा था वो किसी अन्य स्त्री को अपनी माँ मान ही नहीं पा रही थी। उधर दादी की स्थिति अलग थी, उन्हें तो ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें घर से बेदखल कर दिया हो।

अबतक जिस घर में उनका हुकुम चलता था वहाँ किसी बाहरी औरत का दखल उन्हें नाकाबिले बर्दाश्त था।

 कुछ दिनों तक तो दादी पोती दोनों ने अपनी तरफ से भरपूर विरोध किया, लेकिन सुधा के पापा भी अपनी जगह पर अडिग थे आखिर हारकर परिस्थिति से समझौता कर लिया। बस जानकी से दोनों ही न के बराबर बोलती थीं। जानकी ने सुधा को मनाने की बहुत बार कोशिश भी की लेकिन दादी उन्हें पास आने ही नहीं देतीं उलटा सुधा को जानकी के खिलाफ भड़काने का काम करतीं थीं। सौतेली माँ और न जाने क्या क्या कह कर सुधा के मन में जानकी के खिलाफ विष भरने का काम करती रहतीं।  

खैर समय तो अपनी रफ़्तार से चलता ही रहता है।

समय के साथ सुधा कॉलेज में आ गई। जानकी ने भी हालात से समझौता कर लिया, बच्चे कोई हुए नहीं और सुधा ने कभी माँ माना नहीं। कॉलेज में सुधा की अपने साथ पढ़ने वाले राजीव से दोस्ती हो गई। ग्रेजुएशन के बाद सुधा की बैंक में जॉब लग गई और राजीव आईपीएस ऑफिसर बन गया। अब राजीव ने सुधा से शादी करने की बात की,सुधा ने दादी से पूछ कर बताने को कहा।

लेकिन दादी तो सुनते ही भड़क उठीं, अपने से छोटी जाति में शादी बिलकुल नहीं करने देंगीं। सुधा को तो दादी से ये उम्मीद ही नहीं थी कि दादी की सोच ऐसी भी हो सकती हैं।

सुधा बड़ी सोच में पड़ गई अब करे तो क्या करे,पापा ने तो अपने को घर से दूर ही कर लिया था, वो घर के मामलों में कुछ कहते ही नहीं थे।

एक दिन सुधा अपने कमरे में ऐसे ही गुमसुम सी बैठी थी कि जानकी पास आकर खड़ी हो गईं। जानकी को देखकर सुधा ने पूछा 'जी, कोई काम था क्या ?' जानकी बोलीं 'बेटा, तुम अगर बुरा न मानो तो मैं कुछ कहूँ।'फिर अपने आप ही बोलने लगीं 'देखो तुम्हारी शादी की यहाँ किसी को नहीं पड़ी है, तुम्हारे पापा को कोई मतलब नहीं और दादी ये शादी होने नहीं देंगी। मैंने पता किया है, राजीव घर परिवार से अच्छा है। तुम्हें अपने आप ही कुछ करना होगा। कल बसन्त पंचमी है, राजीव अपने परिवार वालों के साथ तुम्हारा मन्दिर में इंतज़ार करेगा। तुम चली जाओ, पीछे मैं सब देख लूँगी।

सुधा सोचने लगी,जिस स्त्री को मैंने कभी कोई अहमियत नहीं दी वो ही मेरी हितैषी निकली। अब उसके जीवन में बसन्त आने ही वाला था।


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