आत्मसम्मान
आत्मसम्मान
अमर कलेक्टर ऑफिस के बाहर अचंभित-सा कभी नेमप्लेट और कभी लक्ष्मी को देखे जा रहा है।
उसे वह दिन याद आया जब उनका विवाह था। सभी खुश थे,वहीं रिश्तेदारों की बातचीत से उसे पता चला कि लक्ष्मी तीसरी कक्षा पास है तो उसने विवाह से इंकार कर दिया।
लक्ष्मी के परिवार ने पहले ही सरला और वेदप्रकाशजी को सब बता दिया था पर उन्होंने लक्ष्मी के गुणों, शालीन व्यवहार को तव्वजो दी और अमर को यह सब बताना जरूरी नहीं समझा।
अपने माता-पिता के कारण अमर ने लक्ष्मी से विवाह कर लिया और बहू को लेकर घर आ गए, परंतु अमर ने घर आकर लक्ष्मी से कोई बात नहीं की। वह अगले ही दिन सामान बाँधकर शहर नौकरी पर चला आया।
वेदप्रकाश और सरला को लगा कि वह अभी गुस्से में है कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा।
परंतु दिन,महीने व दो साल निकल गए। वेदप्रकाशजी ने अमर से बहू को साथ ले जाने को कहा तो उसने कहा कि उस अनपढ़ को मैं अपने साथ शहर में नहीं रख सकता।आप दोनों ने यह विवाह करवाया है आप ही उसे रखें।
वेदप्रकाशजी यह सुनकर हैरान थे,उनकी आँखों में आँसू आ गए पर उन्होंने मजबूत होकर सरला से कहा कि अब लक्ष्मी को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा करना ही उनका मकसद है।
समय के साथ-साथ लक्ष्मी की मेहनत-लगन रंग लाई। आज बारह वर्ष बाद वेदप्रकाश और सरलाजी बेहद खुश हैं क्योंकि लक्ष्मी कलेक्टर बन गई है।
इन खुशियों पर प्रथम हक सरला व वेदप्रकाशजी का है यह कहते हुए लक्ष्मी ने ज्वाइनिंग-लैटर उनके चरणों में रखकर आशीर्वाद लिया। दोनों की आँखों में खुशियों के आँसू आ गए।
सब कुछ जानकर आज अमर अपने किए पर पछता रहा है और आत्मसम्मान से भरी लक्ष्मी की नज़रों से नज़रें भी नहीं मिला पाया।