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Vimla Jain

Tragedy Action Classics

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Vimla Jain

Tragedy Action Classics

आत्मसम्मान सर्वोपरि

आत्मसम्मान सर्वोपरि

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हर इंसान का अपना आत्मसम्मान होता है कोई भी उस आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है तो वह सहन नहीं कर पाता है और भले कितना भी बड़ा सौदा हो कितना भी फायदा हो रहा हो वे उस जगह को छोड़ कर चला जाता है। प्रस्तुत कहानी मेरे सामने घटित हुई घटना हैआत्मसम्मान सबसे सर्वोपरि होता है। जो इंसान अपना आत्मसम्मान खो देता है उसका अपना वजूद खो जाता है।

जब किसी इंसान के पास बहुत पैसा आ जाता है तो उसको अपने आप पर बहुत घमंड हो जाता है। और वह अपने सामने कम पैसे वाले लोगों को कुछ नहीं समझता है। कीड़े, मकोड़े की भांति मानता है। और उनकी इंसल्ट करने में भी नहीं चूकता है और उसमें उनके आत्मसम्मान पर भी ठेस पहुंचाता है। यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है

ऐसे ही एक सज्जन मिस्टर शाह जो पहले सामान्य थे। बाद में उनके पास साड़ियों के बिजनेस में बहुत पैसा आ गया। उनकी दुकान चल निकली। उसके साथ ही उनके अंदर बहुत घमंड भी आ गया। उनके साथ एक सज्जन मिस्टर मेहता थे। उनका समाज में बहुत नाम था। बहुत ईमानदार विनम्र बहुत कर्मठ इंसान थे। सब लोग उनकी काफी इज्जत करते थे।

मगर समाज में पैसे के बल पर अपना रुतबा बनाने के लिए मिस्टर शाह को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। तो उन्होंने सोचा इन मिस्टर मेहता की इमानदारी पर और उनकी आत्मविश्वास पर आत्म सम्मान पर ही वार करता हूं। और ऐसे ही एक दिन उन पैसे वाले मिस्टर शाह को मौका मिल गया।

मिस्टर मेहता के बेटे की शादी थी, उनके मन में ऐसा था की शादी की सारी साड़ियों की खरीदी मैं इनके दुकान से कर लेता हूं। अपने समाज के इंसान हैं। उनसे ज्यादा विश्वासु और कौन होगा। समाज के हैं अच्छे इंसान हैं।

और वह अपने परिवार के साथ उन की दुकान पर पहुंचे। साड़ियां देखने लगे। सारी साड़ियों की शॉपिंग वहीं से करने का विचार था,सो सब साड़ियां पसंद कर ली। वह अपने घर से ₹10000 लेकर चले थे। उस जमाने में ₹10000 काफी होते थे। उन्होंने सब साड़ियां पसंद करी, और सोचा इतने में तो आ ही जाएंगी। उनकी रेट्स वगैरह देख कर के इस विश्वास के साथ में बिल बना दिया कि उनके पास जो पैसा है, उसमें पूरा हो जाएगा। जब साड़ियों का बिल बना तो वह 10010 का बिल था। मिस्टर मेहता के पास में ₹10000 थे। उन्होंने मिस्टर शाह से बोला कि मेरे पास ₹10000 हैं। मैं ₹10 आपको बाद में लाकर दे देता हूं। या आप एक साड़ी कम कर लीजिए, यह एक व्यवहारिक बात थी। मगर मिस्टर शाह को तो जैसे उनको उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का मौका मिल गया। वह बोलते हैं, आप जैसे middle-class लोग जेब में पैसा लेकर नहीं चलते हो। और फिर बाद में जब बिल ज्यादा बन जाता है, तो इस तरह से गैं गैं फैं फैं करते हो, और भी बहुत कुछ सुनाने लगे। तब मिस्टर मेहता को गुस्सा आया। उन्होंने कहा आपका यह बिल, यह साड़ियां आपके पास रखो। मैं वापस आकर ले लेता हूं। तो वह उनसे अड़ गए, कि हमने बिल बना दिया, तो आपको साड़ी तो लेनी ही पड़ेगी। और उनको खरी-खोटी सुनाने लगे, कि समाज में तो इतना आगे रहो और ऐसा करते हो, अच्छा मैं ऐसा करता हूं कि आपके ₹10 माफ कर देता हूं। मेरी तरफ से आप ₹10 कम में ले जाओ साड़ियां।

मिस्टर मेहता को इतना गुस्सा आया उन्होंने ₹10000 की साड़ियां ऐसे कि ऐसे छोड़ कर के वहां से निकल गए। वह बोले मेरे को मेरा आत्मसम्मान प्यारा है। आपके ₹10 की मेरे कोई कीमत नहीं है। 1 दिन ऐसा आएगा कि आपको मेरे पास आना पड़ेगा, सिर झुका कर के।

पैसे का इतना क्या गुरूर है। जब मैंने बोला आपको कि ₹10 मैं वापस आकर दे देता हूं, या आपका एक साड़ी कम कर लो तो, आपने ऐसा नहीं करा। और आपने मेरा आत्मसम्मान कम करने की कोशिश करी। मैं कोई भी तरह से मेरा आत्म सम्मान खो नहीं सकता। और वहां पर उनके साड़ियों को छोड़कर रवाना हो गए।

बाद में जब सब को यह बात पता लगी समाज में तो लोगों ने उन मिस्टर शाह पर बहुत थु.थु किया। और वहां से साड़ियां वगैरह लेना बंद करा। थोड़े दिनों में ही मिस्टर शाह की अक्ल ठिकाने आ गई। जो आसमान में उड़ रहे थे, वह जमीन पर आ गए।

1 दिन आ करके माफी मांगी मिस्टर मेहता से, कि मेरी गलती हुई है, आप माफ कर दो। पर क्या हो सकता है, मुंह से निकली वाणी शब्द जो दिल पर हथौड़े की भांति लगते हैं, यह कभी भुलाया नहीं जा सकता।

फिर भी मिस्टर मेहता ने अपना आत्मसम्मान सर्वोपरि रखकर के मिस्टर शाह को माफ कर दिया क्योंकि क्षमा महान आदमी का गुण है। हर कोई माफ नहीं कर सकता है।


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