आस्था
आस्था
एक देहात में रहनेवाला परिवार में शहर की लड़की दुल्हन बनकर आती हैं। वो दुल्हन उसके मामा की ही लड़की थी। शायद उन दोनों में पहिले नजर वाला इश्क हुआ था। इसलिए शहर की होकर भी देहात में संसार करने आ गई थी। शायद उन दोनों के प्यार में वो ताकत थी। जिस परिवार में वो शादि करके आई थी, वो एक संपन्न परिवार था। उन्हे एक होनहार , हुशार संतान हुई थी। परिवार की मुख्य जिम्मेदारीयां खत्म होने के बाद पति-पत्नि ने पास के शहर में जाकर बसने का मन बना लिया था। ताकि उनके संतान की शिक्षा अच्छे स्कूल में से पूर्ण हो !। ताकि उनकी संतान की रफ्तार अन्य छत्रों से कम न हो। वो जिंदगी में हमेशा अव्वल बना रहे।
उन्होने शहर के अंदर एक जमिन खरिदा कर रखी थी। वहाँ अभी कॉफी लोग मकान बनाकर रहने लगे थे। उन्होने भी वही मकान बना लिया था। अभी उनका लड़का अच्छे स्कूल में पढाई करने लगा था। लड़के के पिता अभी अपनी पुश्तैनी खेती का व्यवसाय शहर से आते-जाते देखने लगे थे क्योंकि ओखली में सिर दिया तो मूसल क्या ड़रना। चाहे भलेही नुकसान क्यों ना हो ?।लड़का बहुत मेहनती था। उसने एड़ी-चोटी का जोर लगाके अछे नामांकित इंजिनिअरिंग कॉलेज से स्नातक की पदवी ली थी। उसे एक नामी कंपनी में सॉफ्ट वेअर इंजिनिअर का पद मिला था।
अभी माता-पिता जहाँ रह रहे थे।वहाँ कॉफी घनी आबादा बस चुकी थी। लड़के के पिता सामाजिक कार्य में रुची रखते थे। इसलिए उन्होने नगर में सभी के साहयता से एक बड़ा सा मंदिर बना लिया था। उस मंदिर के रख-रखाव का जिम्मा लड़के पिता के तरफ था, अभी उनकी उस नगर में अच्छी साक बनी हुई थी।वो अकसर कई कार्यक्र्म मंदिर में अपने मार्गदर्शन में संपन्न किया करते थे। मंदिर का पुजारी भी उन्ही के मार्गदर्शन में मंदिर की व्यवस्था देखता था।
लड़का अभी शादि करने योग्य हो चुका था। इसलिए उसके शादि की चर्चाऐं उसके माता-पिता किया करते थे। ताकी को अच्छी सी बहु उन्हे मिल जाए। सभी बातें परिवार में ठिक-ठाक होने से उनकी अपेक्षाएं आसमान छु रही थी। अच्छी स्वभाव,सुंदर, लिखी-पढी और नौकरी पेशेवाली की तलाश में समय बितता चला गया था। उसी समय कोरोना महामारी का प्रकोप शिर चढकर बोलने लगा था। सभी बातों पर पाबंदी लग चुकी थी। ऐसे परिस्थिति में अपनी जान सुरक्षित रखना भी कठिन हो रहा था।जान बची तो लाखों पाऐं। परिवार ने इस कठिन समय में इंतजार और सब्र रखना ही उचित समजा था।
कोरोना महामारी की दुसरी लहर कॉफी कमजोर पड़ चुकी थी।सरकारी प्रतिबंद कुछ हद तक ढिले हुयें थे। सभी अपने-अपने कार्यों में जी-जान से जुट चुके थे। परिवार भी दुल्हन की तलाश में सक्रिय हो चुका था। भाग्यवश एक अछा रिश्ता उनके हात लग गया था। लड़की भी लड़के की तरह सॉफ्ट वेअर इंजिनिअर थी। उसकी भी तैनाती पुने शहर में ही थी। अंधे के हाथ बटेर लग चुका था। दोनों परिवारों को रिश्ता पसंद आया था। उन्होने तुरंत रिश्ते के लिए हामी भर दी थी। अभी दोनों भी वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे। इसी दौरान उनकी धुम-धाम से शहनाईयां बज चुकी थी।दोनो परिवार बहुत खुश थे। पति-पत्नि भी कुछ समय के लिए कशमिर जाकर अपना ह्नीमून मना कर आ चुके थे। दुल्हन महके को छोड़ ससुराल में आ चुकी थी।सब कुछ परिवार में चंगा चल रहा था।तभी कंपनी ने कुछ कार्य के लिए कर्मचारीयों को कंपनी में बुला लिया था। नये दुल्हा-दुल्हन ने सोचा की निकट भविष्य में कंपनी, कमजोर महामारी के लक्षणों को देखते हुयें उन्हे पुना बुला सकती हैं !। एक पंथ दो काज। इसलिए माता-पिता के अनुमति से उन्होने पुना में रहने का मन बना लिया था। मात-पिता ने भी सोचा कि आज-न-कल तो संसार उन्हे अकेले ही करना हैं। इसलिए उन्होने खुशि से उन्हे बिदा किया था।पति-पत्नि पुना में चले गऐं थे। अभी वृध्द माता-पिता दोनो ही शहर में रहने लगे थे।उसी साल लंबे अरसे के लिए थंड़ का प्रकोप जारी था। थंड़ और शीत लहर ने सभी पुराने किर्तीमान तोड़ दिए थे। पिताजी अस्थमा के मरिज थे।
अचानक मंदिर के पुजारी को बहुत जरुरी घरेलु काम दुसरे शहर में आ गया था। लड़के पिता का धार्मिक और अध्यात्मिक झुकाव था। इसलिए पुजारी ने उनसे निवेदन किया की वे आठ-दस दिन मंदिर में पुजारी का कार्य संपन्न करे !। उन्होने उसके लिए हामी भर दी थी क्योंकि अपनी पगड़ी अपने हाथ। पुजारी आश्र्वस्त होकर निकल चुका था। अभी रोज वो सुबह उठकर, स्नान कर, पुजारी के वेश में मंदिर में पुजा –पाठ में सुबह-शाम लगे रहते थे। थंड़ का प्रकोप बढताही चला गया था। आस्था के कारण पति-पत्नि कार्य में जुटे थे क्योंकि उन्होने ओखली में अपना सिर खुद ही दिया था। अभी उनका स्वास्थ दिनोंदिन खराब होते जा रहा था।पत्नि भी उन्हे आस्था के कारण रोक नहीं पाई थी।पुजारी अभी लौट चुका था।
लड़के के पिताने अपनी बिमारी को थोड़ासा नजर-अंदाज किया क्योंकि कुछ ही दिनों में उसका बेटा और बहु धार्मिक संस्कार के लिए आने वाले थे। घर में कुछ नये-पुराने रिश्तेदार,लड़के के सांस-ससुर भी आने वाले थे।पिताने सोचा कि कार्यक्र्म होने के बाद लड़के को लेकर कोई अच्छे ड़ॉकटर से इलाज करायेंगे !। लेकिन कार्यक्रम के दिन ही उन्हे थोड़ा ज्यादा अस्वस्थ लग रहा था। इसलिए उस दिन वो सिर्फ अपने बिस्तर पर पड़े रहे थे। रात को उनकी तबियत ज्यादा खराब होने के कारण उन्हे अस्पताल में भर्ति कराया गया था। अभी उन्हे सांस लेने में तकलिप हो रही थी। कोरोना के दौर में उनका सही निदान नहीं हो सका था। अस्थमा कॉफी बढ जाने से पिता का गुर्दा और यकृत कॉफी क्षतिग्रस्त हो चुका था। वो कोरोना माहामारी से तो बच गये थे। लेकिन थंड़ के प्रकोप से अस्थमा को मात नहीं दे सके थे।
अभी –अभी तो घराने की बहु के पदकमलों ने घर को छुआ था। अभी पोता-पोती का दुलाहर करना शेष था।उन्हे दादा का प्यार देना बाकी था। अगर वो अपनी आस्था को नियंत्रीत करके अपने कार्य का निर्वाहन करते !। या किसी अन्य की मदत भी लेते। तो इस हादसे से बच सकते थे। लेकिन उनकी आस्था उनकी अस्थमा की बिमारी पर वज्रगात बनकर टूट पड़ी थी।
