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Hansa Shukla

Drama

4.6  

Hansa Shukla

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आशीर्वाद

आशीर्वाद

3 mins
299


मैं अपनी दीदी और बेटे के साथ बिलासपुर से कोरबा लोकल ट्रेन से जा रही थी जब हम ट्रेन में चढ़े तो मुझे और मेरी बहन को काफ़ी मशक्कत के बाद बैठने की जगह मिल गई लेकिन मेरे बेटे को खड़े रहकर ही सफर की शुरुआत करनी पड़ी हमारे सामने की सीट पर एक अधेड़ महिला एक नवविवाहित जोड़ा और एक पुरुष बैठे हुए थे महिला ने बताया कि वह लोग बिलासपुर से काम करके गतोरी जा रहे हैं और अगले स्टेशन में उनमें से एक व्यक्ति उतर जाएगा जिसकी जगह मेरा बेटा बैठ जाएगा।महिला को धन्यवाद कर हम खिड़की से बाहर देखने लगे जैसे ही अगला स्टेशन आया तुरंत मैंने बेटे को उस व्यक्ति की जगह बैठने के लिए बुला लिया भीड़ इतनी ज्यादा थी कि बेटा जब सीट तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था तो उस अधेड़ महिला के पैर में उसका पैर रखा गया और वह दर्द से कराहते हुए बोली मही ह तोला जगह देवाय अउ मोरे गोड म लगा देस भल के जमाना नइ हे( मैं ही तुमको जगह दी और मेरे ही पैर में लगा दिए भलाई का जमाना नहीं है ) बेटा माफी मांगते हुए सीट पर बैठ गया मैं और दीदी उस महिला को चोट लगने से आत्मग्लानि महसूस कर रहे थे।

हम दोनों ने महिला से क्षमा याचना की पर दर्द के कारण कराहती हुई वह बड़बड़ा रही थी ।अचानक दीदी को याद आया उसके पर्स में चॉकलेट है उसने चॉकलेट निकालकर उस महिला को देते हुए कहा दाई माफ कर दे जानबूझकर उसने आपको चोट नही पहुँचाया है इसे खा लो दर्द थोड़ा कम हो जाएगा,

महिला चॉकलेट लेकर उसे खाई और लगा जैसे उसका दर्द और थकान दूर हो गया है उसने कहा बेटी तू मन कहां लोकल ट्रेन में अइसन धक्का मुक्का खाके जात होहु कुछ नई होवे लइका तो आय तोर बेटा हर बने पढ़े-लिखे अउ बड़े होकर बड़े ऑफिसर बने मैं आशीर्वाद देवत हव।हमे ऐसा लग रहा था वह महिला नही उसके कंठ से मां सरस्वती यह आशीर्वाद दे रही हो। दीदी ने तुरंत पर्स से दूसरा चॉकलेट निकालकर उस महिला को देते हुए कहा दाई आपके आशीर्वाद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मेरा बेटा जिस दिन ऑफिसर बनेगा।

मैं आपके लिए साड़ी और मिठाई लेकर जरूर आऊंगी आप अपना पता दे दीजिए। महिला की वाकपटुता बहुत अच्छी थी उसने जवाब दिया मोर घर तो अगले स्टेशन में है दीदी चलो उहा खाना खाके रात भर सुरता लेहु, मै बिहनिया के गाड़ी म बेठा दुहु (मेरा घर अगले स्टेशन में हैआप लोग खाना खाकर आराम कर लेना और सवेरे मैं कोरबा के लिए ट्रेन में बिठा दूँगी)।हमें लगा उस महिला का दिल कितना बड़ा है वह दिन भर के थकान के बाद घर जा रही है उसके बाद कितने प्रेम और अधिकार से हमें अपने घर चलने कह रही है धन्यवाद का शब्द उसके आत्मीयता के सामने हमें बहुत छोटा लग रहा था उसके आशीर्वाद का अनमोल रत्न साथ लेकर हम सफर में आगे बढ़ गए।


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