आरुषि
आरुषि
वैसे तो आरुषि घर में सभी की लाडली थी, लेकिन दादी से आरुषि का लगाव कुछ ज्यादा ही था। दादी के साथ कहानियां सुनते हुए सोना, दादी के साथ घूमने जाना और कभी- कभी चुपके से दादी के साथ मिलकर गोलगप्पे खाना, यही नन्ही आरुषि की दुनिया थी। एक दिन इस प्यारी सी दुनिया में भूचाल आ गया, जब आरुषि को पता चला कि उसे अब दादी को छोड़कर अपने मम्मी -पापा के साथ अमेरिका जाना पड़ेगा। दादी के बहुत समझाने पर आरुषि मान गई और अमेरिका चली गई।
दादा - दादी से बिछुड़ कर एक नए देश में घर और स्कूल के बीच में सामंजस्य बैठाना आरुषि को बड़ा मुश्किल हो रहा था। जहां एक ओर घर के आस पास उसके उम्र के बच्चे नहीं थे जिनके साथ खेला जा सके वहीं दूसरी ओर स्कूल में एक दो बच्चे आरुषि को पसंद नहीं करते थे जिनमें से हेनरी का नाम प्रमुख था। आरुषि के क्लास में कुछ भारतीय बच्चे उसके दोस्त बन गए थे लेकिन आरुषि सबसे ज्यादा हेनरी से परेशान रहती थी। हेनरी कई तरीकों से आरुषि को परेशान करती थी कभी वो उसको गलत नाम से बुलाती, तो कभी उसके टिफिन में रखे खाने को बेकार कहती। कुछ दिन तो आरुषि ने हेनरी की तरफ ज्यादा ध्यान ना दिया लेकिन जब उस
े लगने लगा अब हेनरी उसे ज्यादा परेशान करने लगी है तो उसने अपने मम्मी से सारी बात कह डाली। तब आरुषि की मम्मी ने उसे समझाया "अमेरिका के स्कूल में विभिन्न देशों के बच्चे एक साथ पढ़ते है तो जाहिर है उनकी सोच और बुद्धि भी एक दूसरे से अलग होगी। उन लोगो से दोस्ती करने में तुम्हें थोड़ा समय लग सकता है।"
यह सुनकर आरुषि ने हेनरी की तरफ ज्यादा ध्यान ना देने की बात सोचकर अपने पढ़ाई में लग गई।
आज की सुबह आरुषि ने वीडियो कॉल पर अपने दादा - दादी से बात की और उन्हें शादी की पचासवीं सालगिराह पर ढेर सारी बधाइयां देकर खुशी- खुशी स्कूल गई। वहां लंच टाइम में जब वह अपना लंच खाने लगी तभी जाने कहां से हेनरी आ गई और आरुषि को परेशान करने लगी लेकिन आरुषि तब भी चुप रहकर उसे इग्नोर करती रही, लेकिन हद तो तब हो गई जब हेनरी ने आरुषि से यह पूछा " बोलो आखिर तुम्हारा देश इस दुनिया में किस चीज में आगे है ?"
"प्यार के किसी भी रिश्ते को सालों साल निभाने में मेरा देश सबसे आगे है, लेकिन जाने दो हेनरी ये बातें तुम्हें बिल्कुल समझ में नहीं आएगी।" यह कहते हुए आरुषि ने कस कर अपना टिफिन बॉक्स बंद कर दिया।