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Raksha Gupta

Abstract Tragedy

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Raksha Gupta

Abstract Tragedy

आर्थिक संतुलन

आर्थिक संतुलन

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"सर, प्लीज ऐसा मत कीजिये .मुझे इतनी जल्दी कहाँ नौकरी मिलेगी.. घर पर बीवी बच्चे हैं.. कैसे सब कुछ सम्भलेगा .. और मेरा कसूर तो बताइये..आप मेरा रिकॉर्ड देख लीजिए..हमेशा टॉप फीडबैक रहा है "- प्रवीन कॉलेज डायरेक्टर के सामने गिड़गिड़ा रहा था

"अरे मिस्टर प्रवीन, किसी का कोई कुसूर नहीं है.. बस कॉलेज में एडमिशन कम होने की वजह से हर विभाग से कुछ लोगों को कॉलेज छोड़ने के लिए कहा जा रहा है.. जिससे मैनेजमेंट का आर्थिक संतुलन बना रहे.. और हम आपको एक महीने की तन्ख्वाह दे रहें है न...तब तक आप नौकरी ढूंढ लेना"- डायरेक्टर प्रवीन को इग्नोर करते हुए बोला

"सर, आप मेरी तन्ख्वाह आधी कर दीजिए.. अभी तो कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगी.. सर प्लीज ऐसे मत निक

ालिए"- प्रवीन बराबर गिड़गिड़ा रहा था

"देखिए मिस्टर, आप रिजाइन करिये वरना मजबूरन हमें टर्मिनेट करना पड़ेगा,अब आप जा सकते हैं" - किसी को फोन घुमाते हुए डायरेक्टर बोला

प्रवीन को दिल में दर्द सा महसूस हुआ, वह उठने लगा..  डायरेक्टर साहब फोन पर थे- " क्या गुप्ता जी.. इस मंहगाई के जमाने में हर महीने इतना टैक्स काट लेते हो.. दो लाख की जगह डेढ़ लाख का चेक.. भाई मुझे हार्ट अटैक आ गया तो.. और मेरे खाने और गाड़ी के पैट्रोल का पचास हजार कब आयेगा.." ठहाकों की गूँज बाहर तक आ रही थी.

प्रवीन अपने आंसुओं को रोककर बस यह सोच रहा था कि यह कैसा आर्थिक संतुलन है जिसने मानसिक संतुलन हिला रखा है.. 


- स्वरचित

रक्षा गुप्ता


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