एक अपनापन ऐसा भी
एक अपनापन ऐसा भी
"अरे! अन्दर तो आओ भाभी,,ऐसे कैसे चले जाओगे बिना चाय पिये हुए..अब तो हम पड़ोसी हो जाएंगे.." कितना अपनापन था उस आवाज में..जब भी मिलती तो ऐसे मिलती जैसे कोई खास अपनी हो.. मेरे घर के इन्टीरियर में भी उसके काफी सुझाव बहुत काम आए..राशि नाम था उसका..पति की एक साफ्टवेयर कम्पनी थी और दो प्यारे प्यारे बच्चे..
"भाभी , रात में कोई परेशानी हो तो बताना और सुबह का नाश्ता हमारे साथ करना.." गृह प्रवेश की रात उसने सपरिवार हमारी बहुत मदद की.. अब हम पड़ोसी बन गये".. जब भी उसके घर जाती, मन एकदम प्रसन्न हो जाता.. बच्चों का गानों पर थिरकना, उसकी अपनेपन की अहसास से भरी बातें.. जबरदस्ती बैठाकर आवभगत की प्रक्रिया.. दिमाग से तनाव एकदम भाग सा जाता..
कभी कभी मैं सोचती कि कितनी खुश रहती है राशि.. कभी कोई तनाव ही नहीं लेती.. और फिर अपने रोज के कामों में यह सोच कर लग जाती कि शायद मुझे ज्यादा टेंशन लेने की आदत है.. खैर, दिन गुजरते गये.. पर राशि कभी भी मिलती तो वैसे ही मस्त.. मेरी बेटी के नृत्य की तो सबसे बड़ी प्रशंसक थी.. हमेंशा बोलती, "भाभी, आपकी बेटी का तो कोई मुकाबला नहीं.. " कभी मेरे दिल की बात को भांपकर मुझे समझाती कि "आप परेशान से क्यों लग रही हो.. आपके पास तो कविता लिखने का हुनर है.. किताबें लिखा करो.."
समय का पहिया भागता रहा और एक समय ऐसा आया कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लग गया ओर हम सब सुरक्षा की दृष्टि से अपने अपने घरों में बन्द हो गये.. बीच में एक बार उससे फोन पर बात हुई पर उसने यह नहीं बताया कि अब उसके पति की कम्पनी बन्द हो गयी है.. और न ही वह बिल्कुल उदास लगी.. बोली कि रक्षाबंधन में ससुराल जाएगी.. राखी का त्यौहार बीते हुए
एक माह से ऊपर हो गये तो उड़ती उड़ती खबर पता चली कि अब राशि ससुराल में ही रहेगी.. मुझे लगा कि वृन्दावन अच्छी जगह है.. लगता है उसका मन लग गया.. दो बार फोन मिलाया पर कोई उत्तर नहीं.. अगले दिन फिर मिलाया.. पर फोन नहीं लगा.. दीपावली के बाद एक बार उसके पति से बात हुई तो बोले कि राशि और बच्चे वहाँ बहुत खुश हैं और अब कभी वापस नहीं आयेंगे.. मैं भी घर बेचने की कोशिश कर रहा हूँ.. वहीं रहेंगे.. मेरा दिल और दिमाग दोनों ही यह बात मानने को तैयार नहीं थे कि जिस राशि ने इतने अरमानों से घर बनाया वह अपने उस महल को बेचने के लिए कैसे राजी हो गयी.. पर कभी फोन ही नहीं मिला उसका जो मैं उसको समझाती.. नव वर्ष भी आ गया पर न ही उसका कोई मैसेज और न ही कोई कॉल..
अब तो उससे मिलने का मन भी होने लगा था.. सोच रही थी कि कभी वृन्दावन जाऊँगी तो राशि से जरूर मिलूँगी.. यही सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी..
यह रात के 12 बजे कौन मैसेज कर रहा है.. अलसाई आंखों से मोबाइल ऑन किया तो जैसे पूरे शरीर का खून जम सा गया..मैं कुछ सोचने समझने की हालत में नहीं थी.. यह सोसाइटी के ग्रुप में राशि का फोटो और यह क्या लिखा है..ओम् शान्ति... फांसी लगा ली... मेरे आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.. मेरे आंसुओं को भी उस अन्जान से इतना अपनापन हो गया था कि वह उसके पास भागने के लिए बहे जा रहे थे..
और आज भी मेरे और उसके रिश्ते का अपनापन यह मानने को बिल्कुल तैयार नहीं कि जिस राशि ने कभी किसी को अवसाद का पहला अक्षर भी नहीं पढ़ने दिया वह स्वयं उसकी बलि कैसे चढ़ गयी.. जो पूरी जिंदगी सबकी मदद के लिए हमेंशा तत्पर रही कहीं वह सबसे मदद तो नहीं मांगती रही और हम उस अपनेपन के भावनात्मक रिश्ते पर खरे नहीं उतर पाये!