जिम्मेदारी नहीं.......कर्तव्य
जिम्मेदारी नहीं.......कर्तव्य
15 दिन बचें हैं बस रिया के ब्याह में... सोच सोच कर रिया की माँ सुमित्रा का दिल बैठा जा रहा था.. सोच रही थी कि यह कैसी रीति है समाज की.. कैसे कर दूं किसी के सुपुर्द अपने कलेजे के टुकड़े को.. इसी सोच में अनगिनत आंसू आंखों से बहे जा रहे थे.. रिया भी अपनी माँ की इस हालत से अनभिज्ञ नहीं थी.. पर करे भी तो क्या करे.. एक दिन उसने अमित से भी फोन पर इस बात का जिक्र किया था.. अमित के साथ ही वह सात फेरे लेने वाली थी.. बहुत ही सुलझा हुआ लड़का था..
अगले दिन सुबह ही रिया अपनी सहेली के साथ ब्यूटी पार्लर निकल गयी.. करीब 10 बजे किसी ने डोरबेल बजायी .. रिया के छोटे भाई ने दरवाजा खोला और हक्का बक्का रह गया.. सामने अमित खड़ा था.. घर में सभी ने उसकी बहुत आवभगत की.. सुमित्रा जैसे ही
उसके लिए जलपान लेने के लिए रसोई में गयी.. अमित भी रसोई में आ गया और बोला, "माँ, मैं आपके बेटे की तरह नहीं बल्कि आपका बेटा बनकर इस घर में आया हूँ और हमेशा आऊँगा.. आप अपने मन की हर बात मुझसे कह सकती हैं.. आपको कभी भी मैं यह अहसास नहीं होने दूंगा कि रिया आपसे दूर रह रही है.. मैं आपसे वादा करता हूँ माँ कि मैं रिया को इस संसार के सारे सुख दूंगा और उसके साथ साथ आप सभी लोगों का ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी नहीं बल्कि मेरा कर्तव्य होगा.. रिया किसी भी समय आपसे मिलने आ सकती है और अगर वह किसी कारण से नहीं आ पायी तो माँ तो अपने बेटे के पास कभी भी आ सकती है..." सुमित्रा का दिल भर आया लेकिन इस बार आंसुओं के बहने के साथ साथ उसका दिल हल्का हो गया था और ममता भरी आँखों से वह अमित को निहारे जा रही थी।