आप गरीब माँ की संतान जो ठहरे!!
आप गरीब माँ की संतान जो ठहरे!!


उसका चेहरा बता रहा था मारा है भूख ने!, सरकार कह रही है कुछ खा के मर गया है!!
मुज्जफरपुर रेलवे स्टेशन पर उस एक साल के बच्चे का दूध पिलाने के लिए अपनी माँ (अरविना खातून) पर पड़े चादर को बार-बार हटाना क्या बिचलित नहीं करता है आपको? उसे क्या पता की वो चादर जिसे हटाने का प्रयास वो कर रहा है चादर नहीं कफ़न है असल मे। माँ से मदद न मिल पाने की स्थिति में उसी अरविना खातून के दूसरे तीन वर्षीय बच्चे को पानी के लिए शायद तड़पते नहीं देखा आपने उसी स्टेशन पर वरना अंतड़ियाँ मुँह को आ गई होती श्रीमान।
सरकार कह रही है कुछ खा के मर गया है।।आपने शायद उरेज खातून की मानसी स्टेशन पर पड़ी वो लाश नहीं देखी? स्ट्रेचर की अनुपस्थिति में ऐसे ही प्लेटफार्म पर पड़ी उस महिला की लाश हमे इस बात का एहसास दिलाती है श्रीमान की हम कितने समीप हैं विश्वगुरु बनने की राह पे?
विशिष्ठ महतो ने दानापुर रेलवे स्टेशन पर दम तोड़ दिया एक लम्बी कतार है ऐसे श्रमिक ट्रेनों से यात्रा करने वाले मजदूरों की वैसे ठीक भी है हमारी सरकार इन्हे देश का नागरिक समझती भी नहीं है और इनके होने या ना होने से सरकार को कोई फरक भी कहा पड़ता है और पड़े भी क्यों, ये लोग कोई गवर्नर थोड़े ही थे? खैर आप तो गवर्नर को भी इनसे ज्यादा नहीं समझते।
ये सारी मौतें श्रमिक ट्रेन से यात्रा के दौरान भूख से हुई हैं जो की शर्मनाक हैं संसार को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले देश के लिए।
रेल मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक श्रमिक ट्रेन को चलाने में सरकार का करीब-करीब 80 लाख खर्चा आता है जो सरकार इन श्रमिकों के लिए 80 लाख की ट्रेन चला सकती है तो क्या उनके लिए 32 रूपये प्रतिव्यक्ति के हिसाब से पूरी ट्रेन के मजदूरों के लिए 38400 खाने के नाम पर खर्च नहीं कर सकती? अगर नहीं तो
प्रधानमंत्री जी आप बताइये की 2014-2019 में विदेश यात्राओं में आपने कितना खर्च किया था शायद याद नहीं होगा आपको आप गरीब माँ की संतान जो ठहरे, चलिए मै याद दिलाता हूँ सर 565 करोड़ रूपये।
रिश्ते खूब निभाए लेकिन,क्यों मझधार में हमको छोड़ दिया? जिस राह चले थे ठीक था फिर,वो राह भला क्यों मोड़ दिया? विश्वास बहुत था हमको तुम पर,अब माफ़ नहीं कर पाएंगे!!! पाली जो मुगालते थी हमने,सुन्दर वो भरम क्यों तोड़ दिया?
सबसे अंतिम अमेरिका यात्रा किया आपने 2018 में खर्च किया 23 करोड़ सिर्फ एक यात्रा आपने ना किया होता श्रीमान! तो सैकड़ों की जिंदगियां बच जाती। आप तो नेपाल भ्रमण पे भी उतना खर्च कर देते हैं जिसमे श्रमिक ट्रेन से यात्रा करने वालों की कई पीढ़ियां अपनी जिंदगियां काट सकती है प्रभु!
2014 में लोक सभा के गलियारे में मत्था टेकने की जगह आपने इन समस्याओं के सामने अगर अपना 56 इंची सीना तान दिया होता तो निश्चित ही हम भारत माँ के बहते इन आंसुओं को रोकने में सफल हो गए होते श्रीमान!
देश में भूख से हो रही मौतों को अनदेखा कर विश्वगुरु बनने की कतार में धक्का-मुक्की करना ठीक है? क्या विश्वगुरु बनना इतना जरूरी है? क्या ये तमगा कतार में भूख से बिलबिलाते आंसुओं को अनदेखा करके अपने माथे पर सजाना जरूरी है?