आंदोलनजीवी
आंदोलनजीवी
होनहार बिरवान के होत चीकने पात। बचपन में गुड्डू को जुलूस बहुत पसंद थे। कोई भी जुलूस उसके घर के नजदीक सड़क से गुजरता था तो वह उसमें शामिल हो जाता था। जो नारे जुलूस में लोग लगा रहे होते थे वह भी लगाता था। थोड़ी दूर तक जुलूस में चलने के बाद वह वापस लौट आता था ।
मुहल्ले में एक रामदीन चचा थे। वे पाँच बार नगर पालिका सदस्य का चुनाव लड़कर हार चुके थे। उन्होंने गुड्डू को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उनकी राय थी कि गुड्डू जरूर राजनीति के क्षेत्र में कुछ करेगा।
अब गुड्डू बड़ा हो गया है और वह राजनैतिक रैली, आंदोलन, धरना प्रदर्शन के लिये ठेके पर जन सप्लाई करता है।
कुछ दिनों में ही राजनीतिक गलियारों में उसकी पैठ हो गयी है। गुड्डू राजनीतिक आंदोलन और धरना प्रदर्शन के लिये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक का इंतजाम कर देता है ।
उसने खादी के कुर्ते पाजामे और अलग अलग पार्टियों की टोपियाँ थोक में सिलाकर रखीं हैं ।
विशेष आवश्यकता पड़ने पर वह किसी भी पार्टी को किराये के कार्यकर्ता भी देता है जो खादी का परिधान और उस पार्टी की टोपी पहन कर बताई हुई जगह पर पहुँच जाते हैं। उन्हें अक्सर पार्टी की रैली में भीड़ दिखाने के लिये या किसी आंदोलन के जुलूस को लंबा करने के लिए मंगाया जाता है। उनकी रोजन दारी या तो उन्हें दे दी जाती और गुड्डू का कमीशन उसके पास पहुँच जाता है या इकट्ठा पैसा गुड्डू को दे दिया जाता है। वो अपना कमीशन काट कर कार्य कर्ताओं का पैसा उनमें बाँट देता है ।
आजकल आंदोलनों के लिये लोगों की मांग अधिक है। शहर में एक दिन में दो तीन धरना, प्रदर्शन या जुलूस हों तो वे समय बाँट लेते हैं ।
गुड्डू के आदमी ओवर टाइम करते हैं या दुहरी शिफ्टों में काम करते हैं ।
गुड्डू साधारण जन सप्लाई करता है। सुनने में तो ये भी आता है कुछ बहुत बड़े ठेकेदार आंदोलन करने के लिये नेता और गुंडे भी सप्लाई करते हैं।
इनमें से कुछ की तो इतने आंदोलनों, विरोध और धरना प्रदर्शनों में मांग रहती है कि लगता है उनकी गुजर बसर आंदोलनों पर ही हो रही है। वे आंदोलनजीवी बन गए हैं।