Atul Agarwal

Comedy

2.5  

Atul Agarwal

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आम की चोंच

आम की चोंच

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सन २०२० की होली से कुछ दिन पहले, ६० वर्ष की उम्र में बिल्लू की कुछ यादें ताज़ा हो उठी। भांग छाने बिना ही उसने अपने ५२ वर्ष पुराने इतिहास में छांक डाला।   


मुज़फ्फानगर (ऊ।प्र।) के होली एंजेल्स स्कूल से सैकेंड स्टैण्डर्ड पास करने के बाद, बिल्लू का दाखिला बिड़ला विद्या मंदिर, नैनिताल, बोर्डिंग स्कूल में १० जुलाई, १९६७ को पांचवी क्लास में कराया गया।


बिड़ला में छमाही (हाफ इअरली) पेपर का रिजल्ट ९ दिसम्बर को डिक्लेअर हुआ। जेओग्रैफी (भूगोल) में १०० में से २५ नंबर आये। पासिंग मार्क्स ३३ थे, यानिकि बिल्लू एक सब्जैक्ट में फेल थे। रात्री भोजन के बाद व् सोने से पहले, बिड़ला के ब्रेन्टन हाउस के हाउस मास्टर श्री शिब्बन गुरु जी के आदेश पर बैन्ड डाउन हुए (आगे छुके) और पिछवाड़े पर एन सी सी की दो केन खाई।


१० दिसम्बर से सर्दियों की तीन महीनों की छुट्टियाँ पड़ गई, यानिकि होमटाउन वैकेशन।    


मुज़फ्फानगर में आदरणीय पिता जी ने १६ दिसम्बर १९६७ से १५ फरवरी १९६८ (६२ दिन), दो महीने के लिए भूगोल का टयूशन लगवा दिया, क्योंकि पिता जी नहीं चाहते थे की बिल्लू की नीवं पक्की हो, यानि कि किसी कक्षा में दो साल ना पढ़ना पड़े।


बिल्लू के पिता जी बिडला के प्रथम बैच (१९४७ - १९५१) के इन्टर पास। गणित भी बहुत अच्छा था, एक दम कैलकुलेटड। 


टयूशन १ जनवरी से २९ फरवरी (२ महीने) का लगवाते तो ६० दिन की भी उतनी ही टयूशन फीस देनी पड़ती। 

    

मास्टर (गुरु जी) श्री राम गोपाल शर्मा जी (पति श्रीमती शान्ति बहन जी) आठवी कक्षा तक के सभी विषय पढ़ा लेते थे, यानिकि हिंदी, अंग्रेजी, गणित, साइंस, संस्कृत, सोशल स्टडीज अर्थात इतिहास व् भूगोल। बस आर्ट, ड्राइंग व् पेंटिंग (आर्ट) नहीं पढाते थे।


मास्टर श्री राम गोपाल शर्मा जी व् उनकी पत्नी श्रीमती शान्ति बहन जी, बिल्लू के पूरे परिवार को बरसों से पढ़ा रहे थे। उन दोनों ने जो कुछ भी बिल्लू को पढ़ाया, वह उसके काफी समय तक तो काम आता रहा। जैसे की भूगोल के नक्शे बना बना कर के बिल्लू को याद हो गया था कि नेपाल उत्तर प्रदेश के ऊपर है और गंगा जी उत्तर प्रदेश के गंगोत्री शहर (गोमुख) से ही शुरू होती हैं।


परन्तु सन २००० में उत्तर प्रदेश के एक बड़े भाग को विभक्त कर के एक अलग राज्य उत्तराखण्ड बना दिया गया। इसी तरह से अन्य कई राज्य बी विभक्त हो, छततीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, आदि नए राज्य बनते गए और बिल्लू का भूगोल ज्ञान भी छिन्न-भिन्न होता गया।  


वापस मुख्य कहानी पर आते हैं। अगले साल विषय को छोड़ कर बाकी सब घटनाक्रम की पुनरावृति हुई यानिकि छठी कक्षा की छमाही में संस्कृत में फेल हो गए, संस्कृत का टयूशन पढ़ा।


इतिहास गवाह है कि बिल्लू कभी भी इतिहास में फेल नहीं हुआ। बिड़ला के इतिहास के गुरु जी ने कुछ तरकीबें (ट्रिक) बताई थी, जैसे कि ज्यादा से ज्यादा लिख कर कई कापियां भरना, लड़ाई में घोड़े दौड़ना, तलवारे चलाना, तारीख सन की जगह इसवी की कोई भी मनगढ़ंत तारीख लिखना (क्योंकि परीक्षक को भी तारीखें याद नहीं होती)।


अगले साल बिल्लू टयूशन से बचने के लिए सोच समझ कर आर्ट में लुढ़क (फेल हो) गया। लेकिन पिता जी के अनुरोध पर मास्टर श्री राम गोपाल शर्मा जी ने आर्ट के टयूशन के लिए मास्टर (गुरु जी) श्री मोहन लाल शर्मा (प्रथम) जी को ला खड़ा किया।


मास्टर श्री मोहन लाल शर्मा (प्रथम) जी पजामा कमीज पहनते थे। बहुत चौड़ी मोहरी का पजामा यानिकि २८ इंची। बहुत आरामदायक, नाड़ा दिन में केवल एक दो बार ही खोलना पड़ता था।एक और कमाल की बात, माससाहब शिष्यों की गलती पर उनको पजामे की उपाधि से ही नवाजते थे। २ महीने के टयूशन के दौरान बिल्लू को भी कई बार यह सम्मान मिला, यानिकि बिल्कुल पजामा हो।   


टयूशन के प्रथम दिन माससाहब ने बिल्लू से फेल होने का कारण पूछा। बिल्लू ने आदतन झूठ बताया कि आम की चोँच नहीं बनी थी, जैसे की आर्ट की किताब में बनी होती है या फिर थोड़ी सी चोँच छोटे सफेदा आम में होती है।


सभी आम में ऊपर की तरफ चेपक होता है और सफेदा या कुछ आमों में नीचे की तरफ एक घुमाव (कर्व) होता है जिसे आम की चोँच कहतें हैं।


बिल्लू ने केवल आर्ट सब्जैक्ट में किताब से नक़ल नही की थी I



माससाहब ने फिर पूछा कि कौन सा आम बनाया था। बिल्लू ने जवाब दिया कि आमों का राजा यानिकि दशहरी आम और वो भी असली।



माससाहब बोले यही तो चूक हो गयी। दशहरी आम आर्ट के किसी काम का नहीं होता, क्योंकि उसकी चोँच नहीं होती। आमों का सीजन तो था नहीं। अगले दिन माससाहब अपने घर से दशहरे के मेले से ख़रीदा हुआ मिट्टी का आम ले आये। वह था आर्ट का असली आम, जिससे मिलते जुलते चित्र आर्ट की सभी किताबों में होते हैं।


बिल्लू को तोते की चोँच तो समझ आती थी, पर आम की नहीं।


खैर माससाहब दो महीने तक चोंच वाला आम बनवाते रहे, लेकिन बिल्लू आखिर तक उनके प्यारे शिष्य पजामा ही बने रहे। हाँ, माससाहब से एक चीज जरूर फायदे की सीख ली यानिकि तब से बिल्लू के पजामे की मोहरी माससाहब के पजामे के बराबर है।


माससाहब रंगों से कागजों पर खेलते थे व् बच्चों को खेलना सिखाते थे, पर बिल्लू को होली पर रंग खेलना ही आता व् भाता था, कोई चोँच की बन्दिश नहीं, शोले व् सिलसिला फिल्मों के गानों की तरह बस रंग बरसे।


बिल्लू आज भी जब भी आम खाता है, चाहे दशहरी हो, देशी हो, कलमी हो, चौसा हो, सफेदा हो, मालदा हो या बादाम हो या फिर लंगड़ा हो या फिर कोई अन्य क्रॉस ब्रीड हो, उसे अपने माससाहब, उनका चोँच वाला मिट्टी का आम और उनका पजामा याद आ जाता है। 


हापुस या अलफांसो आम बिल्लू की पहुँच से बहार है, वैसे भी उनकी कौन चोँच होती हैं।


मास्टर श्री मोहन लाल शर्मा (द्वितीय) जी ने कालांतर (नवी व् दसवी कक्षाओं) में बिल्लू को गणित का टयूशन पढ़ाया, जबकि गणित में बिल्लू कभी फेल नहीं हुआ था। भरी सर्दियों की वही तारीखें, बस समय ब्रह्म मुहूर्त का यानिकि प्रातः ४ बजे से।   


बिल्लू के सभी गुरुजनों मय श्री मोहन लाल शर्मा (प्रथम व् द्वितीय) को सादर नमन।             


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