आलसी
आलसी
टिंगटोंग ............टिंगटोंग ..........टिंगटोंग ........घड़ी में सुबह के 6 बजते ही अलार्म बज उठा। रूपल ने अलार्म बंद किया और उठ गयी। सौरभ ने रूपल को कहा भी कि ,"कभी तो अलार्म को अनसुना कर दिया करो। ब्रेकफास्ट में हम सब कॉर्नफ्लेक्स खा लेंगे। "
रूपल ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा ," अपनी आदत नहीं बिगाड़ना चाहती। लोग की क्या कहेंगे सारा दिन घर पर रहती है, फिर भी अपने पति और बच्चों को ढंग का नाश्ता बनाकर नहीं देती। "
रूपल ने फटाफट उठकर अपने लिए चाय बनाई , चाय पीते हुए उसने कल रात को भिगोकर रखे हुए छोले भी कुकर में चढ़ा दिए।छोले चढ़ाकर वह फटाफट फ्रेश होने गयी। फ्रेश होने के बाद उसने घर समेटना शुरू कर दिया था। वह अपनी घेरलू सहायिका के आने से पहले ही घर समेट देना चाहती थी ताकि वह कम से कम एक बार तो अच्छे से झाड़ू -पोंछा कर दे। घर समेट कर रूपल नहाने चली गयी थी, बिना नहाये वह किचेन में खाना जो नहीं बना सकती थी।
अभी बाथरूम में ही थी कि दरवाज़े की घण्टी बज गयी। किसी तरह २ मिनट में नहाना खत्म करके वह दरवाज़ा खोलने चली गयी। रूपल को याद नहीं कि अंतिम बार वह कब अच्छे से शावर ले पायी थी। शादी से पहले कम से कम आधा घंटा लगाकर नहाने वाली रूपल अब ५ मिनट में जैसे -तैसे नहाकर आ जाती है। मलाई सी कोमल रहने वाली उसकी एड़ियाँ फटी रहती हैं।
घेरलू सहायिका कुसुम को झाड़ू -पोंछा करने के निर्देश देकर रूपल वापस किचन में चली गयी थी .उसने चाय का पानी चढ़ा दिया था और जितनी देर चाय बन रह थी ,उतनी देर उसने पूड़ियों का आटा गूँथ दिया। सौरभ को चाय देने क बाद ,रूपल बच्चों को उठाने चली गयी थी। बच्चों को तैयार करके ऑनलाइन क्लासेज के लिए भी तो बैठाना था।
बच्चों और सौरभ को खिला -पिलाकर रूपल किचेन में वापस चली गयी थी। रूपल हमेशा यही कोशिश करती थी कि किचन के सिंक में एक भी जूठा बर्तन न रहे और न ही किचन फैली हुई दिखे ,अगर कोई आएगा तो क्या सोचेगा कि सारा दिन घर पर रहती है, फिर भी किचेन फैलाकर रखती है। रूपल नहीं चाहती है कि कोई भी उसे कामचोर या आलसी समझे। किचन को साफ़ सुथरा रखने के चक्कर में ही तो वह अपने घेरलू सहायिका कुसुम से बर्तन साफ़ नहीं करवाती। कुसुम तो सुबह -शाम आकर ही बर्तन साफ़ करेगी, कुसुम के नहीं आने तक झूठे बर्तन और गन्दा सिंक रूपल को बार -बार चिढ़ाते ही रहेंगे।
डस्टिंग कर कपड़े धोते-धोते लंच का टाइम हो गया था। सौरभ कितना ही मना करे, लेकिन रूपल लंच में एक सब्जी ,दाल ,रोटी और चावल तो कम से कम बनाती ही है। अब जब बच्चे और सौरभ सब ही घर पर ही होते हैं तो वह रायता और सलाद भी जरूर बनाती है। बच्चों की पसंद का ध्यान रखते हुए वह एकाध दिन में मीठा भी कुछ जैसे हलवा, ख़ीर आदि बना देती है। घर में रहकर भी अगर एक प्रॉपर थाली न बनाये तो कामचोर ही कही जायेगी न। सौरभ के बार -बार कहने पर भी वह उन लोगों के साथ बैठकर लंच नहीं कर पाती। सौरभ और बच्चों को गरम -गरम रोटी जो बनाकर देनी होती है। सारी रोटियां एक साथ बनाकर क्यों रखे ,उसे साथ की साथ गरम रोटी बनाकर देने में ज़रा भी आलस नहीं आता।
सबको खिलाकर खुद खाना खाने के बाद बर्तन समेटने और किचन और बर्तन साफ़ करते -करते बच्चों को सुलाने का समय हो जाता है। बच्चों को सुलाकर वह कपड़े समेटती है। सुबह -सुबह हुए झाड़ू -पोंछे के कारण फर्श थोड़ा गन्दा हो ही जाता है ,पैरों में मिट्टी चुभने लगती है। अतः रूपल दोबारा झाड़ू लगाती है और जहाँ जरूरत होती है ,वहां पोंछा भी मारती है। शाम की चाय का समय हो जाता है ,वह जल्दी -जल्दी चाय पीती है और शाम के खाने की तैयारी करने चली जाती है। सब कुछ परफेक्ट रखने और अपने आपको परफेक्ट होम मेकर साबित करने के चक्कर में रूपल ने अपने आपको भुला ही दिया था।
सौरभ ने कई बार रूपल को समझाने की कोशिश भी की थी कि ,"कभी -कभी आलसी होने में नुकसान से ज्यादा फायदे होते हैं।" लेकिन रूपल को आलसी कामचोर होम मेकर का तमगा नहीं चाहिए था।
सौरभ ने इस बार लॉक डाउन का फायदा उठाते हुए ,एक दिन रूपल का अलार्म बंद कर दिया। रूपल देर से उठने के कारण सबके लिए प्रॉपर नाश्ता नहीं बना पायी ,अतः बिना नहाये -धोये उसने सभी को कॉर्न -फ्लेक्स खिला दिया आज जैसे ही रूपल घर समेटने लगी, सौरभ ने कहा ," अरे ,तुमने आज नाश्ता भी अच्छा नहीं करवाया। कम -से कम खाना तो बढ़िया बना लो। कुछ स्पेशल बना देना। "
रूपल नहाने के लिए चली गयी, सौरभ ने बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया। रूपल ने २-४ बार आवाज़ लगाईं, लेकिन सौरभ ने लगभग आधा घंटे बाद ही दरवाज़ा खोला। आज रूपल को नहाकर बड़ा ही अच्छा सा महसूस हुआ ,इतने लम्बे समय बाद उसने आधा घंटा सिर्फ खुद को जो दिया था।
रूपल जैसे ही बाहर आयी, सौरभ ने कहा ,"मुझ लगता है कि आज पेट में कुछ गड़बड़ है। तुम आज लंच में खिचड़ी ही बना लेना। बच्चे भी वही खा लेंगे ।आज तो वैसे भी तुम्हारा schedule बिगड़ ही गया है तो आज बाकी के काम भी रहने दो। "
अपने लिए आज थोड़ा समय निकालने के बाद रूपल को अच्छा ही लगा था, अतः वह सौरभ की बात मान गयी। उसने अपने लिए कॉफ़ी बनाई और अपनी पसंद की किताब उठाई और धूप में बैठकर पढ़ने लगी रूपल ने स्टोर में लम्बे समय से रखा अपन गिटार निकाला, देखा कि उसके तारों पर जंग लग गया था। उसने सौरभ से गिटार के तार बदलवा कर लाने के लिए कहा। आज रूपल को कभी -कभी आलस दिखाने का महत्व समझ आ गया था।
आज के बाद से जब कभी उसे सौरभ घर के अधूरे पड़े कामों को लेकर छेड़ता तो वह इतना ही कहती ,"
बरतनों के ढेर से ,
कपड़ों के अम्बार से ,
बिखरे घर से ,
शर्मिंदा होना छोड़ दिया है ,
क्यूंकि अब मैंने अपने लिए भी जीना सीख लिया है।"
"अच्छा और आज बच्चों को टिफ़िन में क्या दोगी। "सौरभ ने मुस्कुराकर पूछा ।
रूपल ने कहा ,"टिफ़िन में हमेशा सब्जी परांठा ही नहीं ,
कभी ब्रेड बटर भी हो सकता है।
रसोई मेरी पूरी ज़िन्दगी नहीं,
ज़िन्दगी का एक हिस्सा भर जो है।"
