कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Abstract Romance Tragedy

4.0  

कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Abstract Romance Tragedy

आखिरी मुलाकात

आखिरी मुलाकात

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यह कहानी दो ऐसे प्रेमियों की है जो एक तो होना चाहते थे मगर हो ना सके। क्योंकि इनके बीच जाति की कभी ना पटने वाली गहरी खाई थी। इसके मुख्य किरदार निकुंज और वंदना है


निकुंज एक गणित के शिक्षक है और उन्हें लड़कियों से बात करने में शर्म आती थी क्योंकि वह ऐसे परिवेश में पले बड़े है जहां लड़कियों से बात करने का अलग ही मतलब निकाला जाता था परंतु जब वह शिक्षक बने तो उन्हें शहर में जाना पड़ा और उनमें एक जोश और जुनून रहता था कि जिस काम में हाथ लगाओ उसे हर हाल में पूरा करो वह बच्चों को पूरे दिल से पढ़ाते और ना पढ़ने पर सजा भी देते केवल उत्साहित करने के लिए सभी बच्चे उनसे प्यार से पढ़ते और बोर्ड की परीक्षाओं में अधिक से अधिक अंक लाते दो साल बीत गए।


फिर स्कूल में गणपति महोत्सव का त्यौहार आया।


उसमें पंडित जी को बुलाया गया जो कि मूल रुप से उन्हीं के गाँव के थे अरे हाँ एक चीज़ तो मैं बताना ही भूल गया निकुंज अपने ही चाचाजी के स्कूल में पढ़ाते थे जो कि निकुंज को बहुत प्यार करते थे। उस गणपति महोत्सव में निकुंज के चाचाजी पंडित जी से कह रहे थे कि मुझे अपने कालेज के लिए टीचर की आवश्यकता है जो कि कामर्स की हो तो पंडित जी ने कहा मेरी बेटी वंदना M.Com कर रही है चलेगा क्या फिर चाचा जी कहा चलेगा फिर वंदना कालेज आने लगती है कुछ दिन बीत जाने पर निकुंज और वंदना की मुलाकात होती है वे एक दूसरे को पसंद करने लगते है और यह बात निकुंज वंदना से कह दे ता है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ।


और तुमसे ही विवाह करना चाहता हूँ वंदना कहती हैं सारी चीजें मन की पूरी नहीं होती है और मुझमें और आप में सबसे बड़ी खाई हमारी जाति ही आएगी आप पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और मैं ब्राह्मण कुल से हूँ और हमारे रिश्ते को कोई स्वीकार नहीं करेगा बस निकुंज को पता चल गया कि आग दोनों तरफ लगी है तो वह कहता कोई बात नहीं मैं अपने चाचा से बात करता हूँ वो अवश्य हमारा साथ देंगे पर उन्हें यह कहा पता था कि अब उनकी मुलाकात भी शायद ना हो निकुंज वंदना के वियोग में आत्महत्या का प्रयास करता है परंतु उसका दोस्त शहनावाज उसे बचा लेता है और कहता है सच्चे प्यार में जुदाई तो होती ही है तुम्हें अपने माँ बाप के लिए जीना चाहिए पर निकुंज वंदना के लिए आज भी बरकरार जबकि वंदना की शादी उसके मां बाप ने जबरदस्ती किसी और लड़के से करा दी


निकुंज आज भी वंदना के इंतज़ार में है

सच कहे वो आज भी वंदना के प्यार में है

क्यों तोड़ देते है हम प्यार भरा दिल

जाति पाति के नाम पर

मिला दे बिछड़े दिलों को ऐसा तू काम कर

वक्त की गर्दिश और ना जमाना बदला

पेड़ जब सूखा परिंदों ने भी तब ठिकाना बदला

हवाएं अब भी बह रही कुछ मौसम के खिलाफ 

मुसाफिर ने थक कर फिर अपना जनाजा बदला।


बड़ी देर तक दोनों खामोश बैठे रहे, दोनों में में कुछ भी बातें ना हुई। आखिरकार निकुंज हंसकर वंदना के बाल सहलाने लगा।

हाथ झटकते हुए वंदना नें कहा, “थोड़ा हद में रहो I am not your assets..Got it..

निकुंज अचंभित होकर वंदना को एक टक देखने लगा। फिर अपना हाथ हौले से हटाकर अपने चेहरे को ढाँप लिया।

पिछले एक महीने से वो वंदना के व्यवहार में एक अजीब सा बदलाव देख रहा लेकिन ये 6 सालो में पहली बार था जब वंदना नें इतना rudely बात किया था।एक पल में ही निकुंज की आँखों के सामने जाने कितनी यादें आ कर चली गयी ,जाने क्यों निकुंज की आँखों के किनारे भीगने लगे थे।” और ये इमोशनल ड्रामा बंद करो. मेरा दिमाग खराब हो जाता. पागलपन अपने पॉकेट में रखा करो ” वंदना नें गुस्से में कहा ”मैं रो नहीं रहा हूँ बोलो कौन सी बात करनी” निकुंज डूबती आवाज में बोला। ”हाँ तो सुनो !! तुम्हारे साथ रहकर मेरी ज़िंदगी कैद हो गयी है। हर चीज का हिसाब देना पड़ता। कहाँ जाती हूँ क्या करती हूँ सब कुछ।

ये सब से मैं अब पक चुकी हूँ... सो तुम मेरे बगैर जीना शुरू कर दो। ना तुम्हें दिक्कत ना मुझे दिक्कत.” वंदना ने दो टूक सा जवाब दिया।

“अरे ऐसा कहाँ है? कौन किसकी आजादी छीन रहा है ?

मैं तो तुम्हारा खयाल रखने की वजह से ऐसा कहता रहता हूँ. जो वजह है वो बताओ ना मेरा दिल नहीं मान रहा.” निकुंज ने खुद को सम्हालते हुए बोला...Care My Foot…तुम सब care का हवाला देकर हम लड़कियों की आजादी पर डाँका डालते हो और इस मुलाक़ात को आखिरी समझना दुबारा मेरे से कांटैक्ट करने की कोशिश भी मत करना। मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती।

I Hate You … Hate You …. Hate You

” वंदना …वंदना…एक बात मेरी भी … “बाकि के शब्द निकुंज के मुँह से निकलने से पहले ही वंदना नें अपना बैग उठाया और बिना पीछे मुड़े सीधा चलती गयी.उसके कदम तेज और तेज चलते जा रहे थे। मानो वो किसी दायरे से बाहर भागने की कोशिश में हो...निकुंज ठगा सा वहीं बैठा रहा।

उसको कुछ बातें समझ नहीं आ रही थी।ये वही पार्क था जहां से उसकी ज़िंदगी नें नई करवट ली थी. अचानक से वंदना का व्यवहार उसको पच ही नहीं रहा था। क्यूंकि 6 साल इतना कम समय न होता की कोई एक दूसरे को जान-पहचान ना पाए। फिर भी जो हो रहा था उसपर वो विश्वास कैसे ना करे। अजीब सा असमंजस था , निकुंज के सामने दुश्मनों से तो लड़ा जा सकता पर यादों से लड़ना आसान काम कहाँ ? निकुंज थोड़ा शांत हुआ तो देखा एक रंग-बिरंगा कार्ड उसके बगल में गिरा हुआ था। ” वंदना वेड्स अजय” बस बाकी माजरा निकुंज के आगे आईने के समान साफ था। वंदना का बदलाव इसीलिए था कि वो मेरे दिल में नफरत भर सके।


वो धीरे धीरे पार्क से निकलने लगा तो देखा वंदना पार्क के एक कोने में बैठी धीमे धीमे सिसक रही थी।” वंदना….एक बार सुनो तो मेरी बात …” वंदना नें आवाज़ लगाई. निकुंज की आवाज़ सुनकर वंदना आँसू पोछते हुए झट से पीछे घूमी और बोली….”गधे… नालायक…तुम्हारे भेजे में कोई बात आसानी से आती है की नहीं. मैं तुमसे प्यार नहीं करती ,नहीं करती , नहीं करती.” “तो किससे करती हो प्यार अजय से ? “, निकुंज नें कार्ड दिखाते हुए बोला.

अब वंदना को खुद को रोक पाना नामुमकिन था। उसके आँसू अब निकुंज के आगे ही बिखर पड़े। वंदना लिपट गयी निकुंज से , दोनों के आँसू ने ही जाने कितने सवालों के जवाब खुद ब खुद दे दिये।

“I will love you फोरेवेर….” जहां से कहानी शुरू हुई थी आज शायद वही पर आकर थम गयी….थम जाना कहना थोड़ा गलत होगा.

प्यार थमता नहीं , रुकता नहीं, चलता जाता है … बस चलता जाता है।

हाँ वो मुलाकात जरूर आखिरी थी।


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