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AVINASH KUMAR

Romance

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AVINASH KUMAR

Romance

तुम्हें पढ़ना तो था आँखें मेरी

तुम्हें पढ़ना तो था आँखें मेरी

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तुम कहती थी ना कि मेरी आँखें इस दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत आँखें हैं.. सच कहती थी तुम, मेरी आँखें सबसे ख़ूबसूरत आँखें हैं क्योंकि इन आँखों में तुम बसती हो और जहाँ तुम बसने लगो वो भला फिर कैसे कमहसीन हो सकता है? तुम सिर्फ़ मेरी आँखों की बातें करती थी अगर उन आँखों को इक दफ़ा भी पढ़कर देखती तो तुमको उन आँखों में तुम पूरी मिल जाती। मैं ये बात अपने ईमान से कहता हूँ सिवाय तुम्हारे इन आँखों में और कोई नहीं बसता.. अगर कोई बनने लगे तो ख़ुद ही उसकी शक्ल बिगाड़ देता हूँ। बुरा लगता है तब बहुत लेकिन मेरे पास अलावा इसके और कोई चारा भी तो नहीं होता है। 

तुम जो बार-बार मुझसे मिलकर पूछती थी ना- कैसे हो? मैं चाहकर भी नहीं बता सकता था कि मैं तुम्हारे बग़ैर कैसा हूँ? तुम तब क्यों नहीं पढ़ लेती थी मेरी आँखें.. मेरी आँखें तुम्हारे दीद को बेचैन रहती थी और तुम उन आँखों की मरहम थी। ये सबकुछ बयान कर देना मेरी मुहब्बत का इज़हार होता और मैं अपने इज़हार-ए-इश्क़ से डर जाता हूँ। तुम नहीं जानती ना कि हम जिससे मुहब्बत करने लगते हैं फिर उसके ही मुताबिक़ जीने लगते हैं। वो बातें करते हैं जो उसे पसंद हो.. वो पहनते हैं जो उसे अच्छा लगता है.. वो बनने की ज़िद पर अड़ जाते हैं जिससे मुहब्बत को ख़ुशी मिले.. यहाँ तक खाना भी उसकी ही मर्ज़ी पर खाते हैं अगर वो इजाजत ना दें तो फिर सबकुछ होते हुए भी फ़ाके रात गुज़ार देते हैं। इसलिये मुझे तुमसे तब भी कहना था और अब भी कहता हूँ - तुम्हें पढ़ना तो था आँखें मेरी


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