प्यार की अनकही कहानी
प्यार की अनकही कहानी
हर की हल्की बारिश में खिड़की से बाहर देखते हुए वंदना अपने अतीत में खो गई थी। उसकी शादी को तीन साल हो चुके थे, लेकिन आज भी जब वह अविनाश के साथ बिताए हर पल को याद करती, उसकी आँखों में वही चमक आ जाती। अविनाश उसका पहला प्यार था—शांत, समझदार और बेहद गहरा। वह दोनों कॉलेज में मिले थे। पहली बार जब अविनाश ने उसे देखा था, तो वह उसकी सादगी पर मोहित हो गया था। वंदना भी उसकी गंभीरता और समझदारी की दीवानी थी। धीरे-धीरे दोस्ती हुई, फिर मुलाक़ातें बढ़ीं, और कब दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे लगने लगे, पता ही नहीं चला। एक अधूरी शाम उस दिन दोनों कॉफ़ी शॉप में बैठे थे। अविनाश ने वंदना का हाथ पकड़ते हुए कहा, "तुम्हें पता है, जब तुम मेरे पास होती हो, तो मुझे दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं रहती।" वंदना मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में कुछ सवाल थे। "हमेशा पास रहोगे न?" उसने पूछा। अविनाश ने उसकी आँखों में झाँका और कहा, "हर जन्म में, वंदना।" लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। हालात ऐसे बने कि वंदना की शादी किसी और से तय हो गई। अविनाश ने कभी उसे रोका नहीं, बस एक आखिरी बार उसके सामने खड़ा होकर कहा, "अगर कभी ज़िंदगी में कोई मोड़ आए और तुम मुझे याद करो, तो बस इतना जान लेना कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारी यादों में, तुम्हारी हर साँस में।" आज की रात आज, तीन साल बाद, वंदना की ज़िंदगी में सब कुछ था—एक परिवार, एक ज़िम्मेदार पति, और एक स्थिर जीवन। लेकिन जब बारिश होती, जब पुरानी यादें आतीं, जब हवा हल्के-से उसके बालों को छूकर गुजरती, तो उसे लगता जैसे अविनाश अभी भी कहीं उसके आसपास है, उसी प्यार के अहसास के साथ, जो कभी अधूरा रह गया था। कभी-कभी प्यार का मतलब साथ रहना नहीं होता, बल्कि किसी को दिल में ज़िंदा रखना होता है—हमेशा के लिए।
"वंदना और अविनाश: एक नई शुरुआत"
रात का सन्नाटा था। खिड़की से हल्की ठंडी हवा आ रही थी, और चाँदनी कमरे में उजास फैला रही थी। वंदना बालकनी में खड़ी थी, उसके हाथों में कॉफी का मग था, लेकिन मन कहीं और था—अविनाश के पास। तीन साल हो गए थे, लेकिन यादें अब भी ताज़ा थीं। अचानक, उसका फोन बजा। स्क्रीन पर नाम चमका—अविनाश। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने धीरे से फोन उठाया, "हैलो?" "कैसी हो, वंदना?" आवाज़ वही थी—गहरी, स्थिर और बेहद अपनापन लिए हुए। उसने खुद को संभाला, "मैं... ठीक हूँ। तुम कैसे हो?" "अभी भी वहीं, जहाँ तुमने छोड़ा था..." अविनाश की आवाज़ में हल्की उदासी थी। वंदना के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे। शादी के बाद उसने खुद को रिश्ते में ढालने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन कहीं न कहीं वह अपने दिल को समझा नहीं पाई थी। "क्या हम मिल सकते हैं?" अविनाश ने धीरे से कहा। वंदना कुछ सेकंड चुप रही, फिर बोली, "कल शाम 6 बजे, उसी कॉफी शॉप में?" "मैं इंतज़ार करूंगा," कहकर अविनाश ने फोन रख दिया। वो मुलाक़ात अगले दिन वंदना थोड़ी घबराई हुई थी। जब वह कॉफी शॉप पहुँची, तो देखा कि अविनाश पहले से ही वहाँ बैठा था, वही पुरानी मुस्कान लिए। "मैं नहीं जानता था कि तुम आओगी," उसने हल्के से कहा। वंदना ने लंबी साँस ली, "मैं भी नहीं जानती थी... लेकिन शायद कुछ बातें कहनी बाकी थीं।" दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे—पुरानी यादें, हँसी-मज़ाक, और अधूरी कसमें। वंदना ने महसूस किया कि आज भी उसकी धड़कनें उसी के लिए तेज़ हो रही थीं। "तुम्हें पता है, वंदना?" अविनाश ने कहा, "कभी-कभी ज़िंदगी हमें दूसरा मौका देती है। बस हमें हिम्मत करनी होती है उसे अपनाने की।" वंदना ने उसकी आँखों में देखा, और पहली बार लगा कि हाँ, उसे भी अपनी ज़िंदगी को फिर से जीने का मौका मिल सकता है। एक नई शुरुआत कुछ महीनों बाद, वंदना ने हिम्मत जुटाई और अपनी शादी को खत्म करने का फैसला किया। यह आसान नहीं था, लेकिन उसने अपने दिल की सुनी। अविनाश ने उसे सहारा दिया, हर कदम पर उसका साथ दिया। और फिर, एक साल बाद… वहीं कॉफी शॉप, वही टेबल, लेकिन इस बार एक नई शुरुआत के साथ। अविनाश ने उसकी ओर अंगूठी बढ़ाई, "अबकी बार, हमेशा के लिए?" वंदना की आँखें नम थीं, लेकिन इस बार खुशी के आँसू थे। "हमेशा के लिए," कहते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।

