खोखले रिश्ते
खोखले रिश्ते
अविनाश और वंदना का प्यार सच्चा था, लेकिन चाचा धर्मराज ने समाज और प्रतिष्ठा के नाम पर उनके रिश्ते को नामंजूर कर दिया। वंदना की शादी अजय से कर दी गई, और अविनाश अकेला रह गया। उसने खुद को अपने काम में व्यस्त कर लिया, मगर दिल अब भी वंदना का इंतजार कर रहा था। वक्त बीतता गया। धर्मराज अब भी परिवार के मुखिया थे, लेकिन अविनाश और उनके रिश्ते में पहले जैसा अपनापन नहीं रहा। वे एक ही घर में रहते थे, लेकिन उनके बीच खामोशी की एक मोटी दीवार खड़ी हो चुकी थी। अविनाश बाहर से उन्हें सम्मान देता, लेकिन दिल में एक टीस थी—एक ऐसा दर्द, जिसे वह कभी शब्दों में नहीं ला पाया। एक दिन वंदना वापस आ गई एक शाम अविनाश अपने घर के बरामदे में बैठा था, जब दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला और सामने वही चेहरा खड़ा था, जिसे वह सालों से यादों में संजोए हुए था—वंदना। उसकी आँखें नम थीं। कुछ पल तक दोनों खामोश रहे। फिर वंदना ने भारी आवाज़ में कहा, "अविनाश, मैं वापस आ गई हूँ।" अविनाश के भीतर भावनाओं का तूफान उमड़ पड़ा। उसे समझ नहीं आया कि यह सपना है या हकीकत। उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, "अजय...?" वंदना ने सिर झुका लिया। "हमारा रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल सका। वो मुझे कभी समझ ही नहीं पाया। जब भी कोई मुश्किल आई, उसने मुझसे दूरी बना ली। और आखिरकार, हम अलग हो गए।" अविनाश के दिल में मिले-जुले भाव थे। वह वंदना से प्यार करता था, लेकिन बीते सालों ने उसे बहुत कुछ सिखाया था। उसने एक गहरी सांस ली और कहा, "मैंने तुम्हारा इंतजार किया, वंदना... लेकिन अब मैं नहीं चाहता कि कोई और हमारे बीच फैसला ले। अगर अब भी तुम्हारे दिल में मेरे लिए जगह है, तो मैं तुम्हें अपनाने के लिए तैयार हूँ।" वंदना की आँखों में आँसू थे, मगर इस बार ये आँसू दुख के नहीं, सुकून के थे। और धर्मराज? जब धर्मराज को यह बात पता चली, तो वे चौंक गए। उन्होंने फिर से अपने पुराने तर्क देने चाहे, लेकिन इस बार अविनाश ने उनकी एक नहीं सुनी। उसने पहली बार अपने चाचा के सामने खड़े होकर कहा, "आपने मुझसे मेरा प्यार छीन लिया था, लेकिन इस बार मैं अपना फैसला खुद लूंगा। यह रिश्ता मेरे दिल से जुड़ा है, और मैं इसे खोखला नहीं बनने दूंगा।" धर्मराज के पास कोई जवाब नहीं था। वे चुपचाप सब देखते रहे। शायद उन्हें अहसास हो गया था कि उनके फैसले ने सालों पहले एक मासूम प्यार को बर्बाद कर दिया था। इस बार अविनाश और वंदना साथ थे—किसी और के फैसले पर नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से।
सीख: रिश्तों को समाज के नियमों और झूठी प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि दिल से जोड़ा जाता है। जब कोई रिश्ता सच्चा हो, तो वक्त चाहे जितनी भी दूरियां बना दे, सही समय पर वह वापस आ ही जाता है।

